
जनवरी से चल रहे विवाद के बाद अशनीर ग्रोवर (Ashneer Grover) ने फिनटेक स्टार्टअप भारतपे (BharatPe) से इस सप्ताह इस्तीफा दे दिया. इस्तीफा देते हुए उन्होंने बोर्ड को संबोधित करते हुए लंबा लेटर भी लिखा. लेटर में ग्रोवर ने कई इमोशनल बातों का जिक्र किया. उन्होंने लिखा कि वह जिस कंपनी के फाउंडर्स में से एक रहे हैं, उससे बाहर निकलने के लिए उन्हें मजबूर किया जा रहा है. हालांकि तथ्यों को देखें तो कुछ अलग ही कहानी पता चलती है. इस बीच अशनीर को कंपनी के सभी पदों से भी हटा दिया गया है.
ऐसे हुई थी स्टार्टअप की शुरुआत
बिजनेस टुडे की रिपोर्ट में लिखा गया है कि Tracxn से मिले डिटेल्स के अनुसार ग्रोवर भारतपे के को-फाउंडर (BharatPe Co-Founder) नहीं हैं. इस फिनटेक कंपनी को भाविक कोलडिया (Bhavik Koladiya) और शाश्वत नकरानी (Shashwat Nakrani) ने मिलकर मार्च 2018 में इनकॉरपोरेट किया था. भारतपे को 1 लाख रुपये के इनिशियल कैपिटल के साथ शुरू किया गया था. आईआईटी दिल्ली से ड्रॉपआउट नकरानी और अमेरिका में एक दशक काम कर चुके कोलडिया ने मिलकर रेसिलिएंट इनोवेशंस की स्थापना की, जो भारतपे की पैरेंट कंपनी है.
इस तरह भारतपे से जुड़े अशनीर ग्रोवर
भारतपे के शुरुआती दिनों में कोलडिया के पास सबसे ज्यादा हिस्सेदारी थी, लेकिन बाद में वह अपनी पूरी हिस्सेदारी बेचकर कंपनी से एक्जिट कर गए. कंपनी की फाइलिंग से पता चलता है कि भारतपे के इनकॉरपोरेशन के बाद नकरानी और कोलडिया ने कुछ स्टेक ट्रांसफर ग्रोवर को कंपनी में शामिल किया. जुलाई 2018 में ग्रोवर के पास भारतपे की 31.9 फीसदी हिस्सेदारी थी. इस तरह देखें तो तकनीकी तौर पर ग्रोवर भारतपे के को-फाउंडर नहीं हैं.
भारतपे की सफलता में ग्रोवर का अहम योगदान
नकरानी ने हाल ही में कहा था कि भारतपे उनका अपना ब्रेनचाइल्ड है. कॉलेज के दिनों में जब उन्होंने एक अन्य वेंचर bookmyhaircut.com की शुरुआत की थी, तभी उन्हें भारतपे का आइडिया आया था. दूसरे को-फाउंडर कोलडिया ताजा विवाद में खुलकर भारतपे के मौजूदा सीईओ सुहैल समीर के साथ खड़े हैं. ग्रोवर भले ही भारतपे के को-फाउंडर्स में एक नहीं हों, लेकिन वह एकदम शुरू से कंपनी के साथ हैं. भारतपे की सफलता में ग्रोवर के योगदान से इनकार भी नहीं किया जा सकता है.
3 साल में मालामाल हुए भारतपे के शुरुआती इन्वेस्टर्स
कंपनी को मर्चेंट पेमेंट, मर्चेंट लेंडिंग और यूपीआई से काफी सफलता हाथ लगी. इसका अंदाजा इस बात से लगा सकते हैं कि जिस कंपनी की वैल्यू जुलाई 2018 में सीड राउंड फंडिंग में महज 1.9 करोड़ रुपये थी, करीब 3 साल बाद अगस्त 2021 में उसकी वैल्यू कई गुणा बढ़कर 20,082.5 करोड़ रुपये हो चुकी थी. कंपनी की फाइलिंग के हिसाब से ग्रोवर अभी तक अपनी कुछ हिस्सेदारी बेचकर 8.4 करोड़ रुपये का रिटर्न पा चुके हैं. वहीं कंपनी के कुछ शुरुआती एंजल इन्वेस्टर्स को 100 से 200 गुणा तक रिटर्न मिल चुका है.