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अब राजस्थान और छत्तीसगढ़ में OPS का क्या होगा? कांग्रेस की सरकार तो गई... BJP मानेगी नहीं

अशोक गहलोत लगातार चुनावी सभाओ में कह रहे थे कि कांग्रेस पार्टी ने गारंटी दी है कि दूसरी बार सरकार बनते ही कर्मचारियों के लिए राजस्थान में 'ओपीएस' को कानून के जरिए पक्का कर दिया जाएगा.

बीजेपी OPS के पक्ष में नहीं बीजेपी OPS के पक्ष में नहीं
अमित कुमार दुबे
  • नई दिल्ली,
  • 04 दिसंबर 2023,
  • अपडेटेड 3:00 PM IST

हिमाचल प्रदेश और कर्नाटक में कांग्रेस को शानदार जीत मिली थी.यहां के विधानसभा चुनावों में कांग्रेस ने ओल्ड पेंशन स्कीम (OPS) को जोर-शोर से उठाया था. कांग्रेस को लग रहा था, ये एक ऐसा मुद्दा है, जो सरकारी कर्मचारियों और उनके परिवारों को आसानी से अपने पाले में लाया जा सकता है. इसी कड़ी में अभी हुए 5 राज्यों में विधानसभा चुनावों में भी OPS को कांग्रेस ने हथियार के तौर पर इस्तेमाल किया. लेकिन हिंदी बेल्ट के तीन राज्यों मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ के जनादेश ने OPS की राग को फीका कर दिया है. 

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दरअसल, हिंदी बेल्ट के तीनों राज्यों में बीजेपी को बंपर जीत मिली है.इन तीन राज्यों में से दो पर कांग्रेस की सरकारें थीं, और यहां चुनाव में OPS एक बड़ा मुद्दा था, क्योंकि राजस्थान और छत्तीसगढ़ में कांग्रेस OPS लागू करने का ऐलान कर दिया था, इसके लिए बकायदा नोटिफिकेशन भी जारी हो गया था. जबकि मध्य प्रदेश में कांग्रेस नेतृत्व लगातार ये नारा दे रहा था कि राज्य में कांग्रेस की सरकार बनते ही सबसे पहले सरकारी कर्मचारियों को OPS का तोहफा दिया जाएगा. लेकिन अब चुनावी नतीजों से तो यही लग रहा है कि जनता ने OPS को भाव नहीं दिया है. 

इस बीच अब बड़ा सवाल ये है कि राजस्थान और छत्तीसगढ़ में OPS का क्या होगा? क्योंकि अशोक गहलोत सरकार और भूपेश बघेल की सरकार ने यहां OPS को लागू करने के लिए कदम बढ़ा दिए थे. 

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देश में सबसे पहले अप्रैल-2022 राजस्थान की अशोक गहलोत सरकार ने अपने यहां OPS लागू करने का ऐलान किया था. गहलोत इस मुद्दे को लेकर फ्रंट फूट खेल रहे थे, लगातार चुनावी सभाओ में वो कह रहे थे कि कांग्रेस पार्टी ने गारंटी दी है कि दूसरी बार सरकार बनते ही कर्मचारियों के लिए राजस्थान में 'ओपीएस' को कानून के जरिए पक्का कर दिया जाएगा.राजस्थान में नौ से दस लाख सर्विंग/रिटायर्ड कर्मचारी हैं, उनके परिवार भी हैं. जिसे गहलोत साध रहे थे.  

यही नहीं, चुनाव से पहले एक पत्रकार वार्ता में गृह मंत्री अमित शाह ने कहा था कि हमने OPS पर एक कमिटी बनाई है.कमेटी की सुझाव पर गौर करेंगे, इस बयान पर पलटवार करते हुए अशोक गहलोत ने कहा था, 'शाह जी कमेटी नहीं, कमिटमेंट चाहिए. गारंटी चाहिए. हम गारंटी दे रहे हैं.' बता दें, राजस्थान में कांग्रेस ने अपनी सात चुनावी गारंटियों में 'पुरानी पेंशन स्कीम' को कानूनी गारंटी का दर्जा देने के लिए इसे पहले नंबर पर रखा था. 

गहलोत की अपील

लेकिन अब राजस्थान से कांग्रेस सरकार की विदाई हो चुकी है. जाते-जाते अशोक गहलोत ने आने वाली बीजेपी सरकार से OPS को जारी रखने रखने की अपील की है.

वहीं छत्तीसगढ़ में भी OPS को कांग्रेस ने जोर-शोर से उठाया था, कांग्रेस पार्टी की महासचिव एवं स्टार प्रचारक प्रियंका गांधी अपनी रैलियों में 'ओपीएस' के मुद्दे को जबर्दस्त तरीके से उठा रही थीं. छत्तीसगढ़ में कांग्रेस सरकार ने 1 अप्रैल, 2022 से ओल्ड पेंशन स्कीम (ओपीएस) को लागू करने की नोटिफिकेशन जारी किया था. सरकार लगातार इस मुद्दे पर बैठकें कर रही थीं. OPS लागू करने वाली राज्य सरकारें लगातार केंद्र से NPS में जमा उनके राज्यों के कर्मचारियों के पैसे मांग रहे थे.लेकिन केंद्र ने फंड देने से साफ इनकार कर दिया. जिसके बाद छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने केंद्र सरकार को चेतावनी दी थी कि उसके पास फंसी राज्य के कर्मचारियों के पेंशन की 17 हजार 240 करोड़ रुपये की राशि को वे हर हाल में लेकर रहेंगे. 

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OPS को लेकर एक्सपर्ट की राय

दरअसल, OPS को लागू करना किसी भी राज्य के आसान नहीं रहने वाला है. इससे सरकारी खजाने पर बोझ बढ़ जाएगा. यही नहीं, कानूनी तौर पर केंद्र से इजाजत की जरूरत होगी. फिलहाल कुछ गैर बीजेपी शासित राज्यों ने ओल्ड पेंशन स्कीम को बहाल करने का फैसला किया है. जिसमें राजस्थान, छत्तीसगढ़, पंजाब, झारखंड और हिमाचल प्रदेश अहम हैं. लेकिन अब राजस्थान और छत्तीसगढ़ में बीजेपी की सरकार बनने जा रही है, तो क्या यहां OPS कानून को निरस्त कर दिया जाएगा. क्योंकि बीजेपी OPS के पक्ष में बिल्कुल नहीं है. 

यही नहीं, बाकी राज्यों में भी OPS दांव में सियासी पेंच फंस सकता है. एनपीएस का पैसा केंद्र सरकार के पास जमा है. भले ही वह पैसा कर्मियों का है, लेकिन बिना केंद्र की सहमति के उसे राज्य सरकार को ट्रांसफर नहीं किया जा सकता. ओपीएस को अगर राज्य में कानूनी दर्जा मिल भी गया तो इस बात की कोई गारंटी नहीं कि किसी दूसरे दल की सरकार उस कानून को निरस्त नहीं करेगी. ऐसे में कानूनी दर्जे की खास अहमियत नहीं रह जाएगी. जिसका ताजा उदाहरण जल्द ही राजस्थान और छत्तीसगढ़ में देखने को मिलेगा.

RBI ने किया आगाह  
हाल के दिनों में भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) ने OPS को लेकर एक स्टडी की है. आरबीआई की रिपोर्ट के हिसाब से अगर देश में एनपीएस की जगह ओल्ड पेंशन स्कीम को लागू किया जाता है, तो सरकारी खजाने का बोझ 4.5 गुना बढ़ जाएगा. इसके कारण सरकारी खजाने पर पड़ने वाला बोझ भी बढ़कर 2060 तक जीडीपी का 0.9 फीसदी तक पहुंच सकता है. केंद्रीय बैंक के मुताबिक, ओपीएस को बहाल करने से राज्यों की वित्तीय हालत पर भी असर होगा और ये खराब हो सकती है.

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सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनॉमी (CMIE) के मुताबिक जिन राज्यों में पेंशन में योगदान के लिए वहां की सरकारें खर्च करती हैं. वह NPS लागू करने के समय यानी 2004 में उनके रिवेन्यू का 10 प्रतिशत था. जबकि 2020-21 में बढ़कर ये 25 फीसदी हो चुका है. अब जो 5 राज्य NPS से OPS पर लौटने का फैसला कर चुके हैं, उनका बोझ और बढ़ेगा.

भारतीय स्टेट बैंक ने अपनी मासिक रिपोर्ट इकोरैप (अक्टूबर 2022) में कहा था कि अगर सभी राज्य OPS पर लौट जाते हैं, तो सरकारी खजाने का बोझ 31.04 लाख करोड़ रुपये हो जाएगा. सिर्फ तीन राज्य छत्तीसगढ़, झारखंड और राजस्थान के सरकारी खजाने पर कुल 3 लाख करोड़ रुपये का बोझ आएगा.

योजना आयोग के पूर्व उपाध्यक्ष मोंटेक अहलूवालिया ने पुरानी पेंशन स्कीम को लेकर कहा था कि कुछ राज्य सरकारों द्वारा पुरानी पेंशन योजना को फिर से शुरू करना वित्तीय दिवालियापन की रेसिपी है.

Old Pension Scheme (OPS) है क्या? 
ओल्ड पेंशन स्कीम के तहत रिटायर्ड कर्मचारी को अनिवार्य पेंशन का अधिकार मिलता है. ये रिटायरमेंट के समय मिलने वाले मूल वेतन का 50 फीसदी होता है. यानी कर्मचारी जितनी बेसिक-पे पर अपनी नौकरी पूरी करके रिटायर होता है, उसका आधा हिस्सा उसे पेंशन के रूप में दे दिया जाता है.

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Old Pension Scheme में रिटायरमेंट के बाद कर्मचारी को वर्किंग एंप्लाई की तरह लगातार महंगाई भत्ता समेत अन्य भत्तों का लाभ भी मिलता है, मतलब अगर सरकार किसी भत्ते में इजाफा करती है, तो फिर इसके मुताबिक पेंशन में बढ़ोतरी देखने को मिलेगी. 

New Pension Scheme (OPS) है क्या? 

साल 2004 से लागू हुई नई पेंशन स्‍कीम (NPS) का निर्धारण कुल जमा राशि और निवेश पर आए रिटर्न के अनुसार होता है. इसमें कर्मचारी का योगदान उसकी बेसिक सैलरी और DA का 10 फीसदी कर्मचारियों को प्राप्त होता है. इतना ही योगदान राज्य सरकार भी देती है. 1 मई 2009 से एनपीएस स्कीम सभी के लिए लागू की गई.

पुरानी पेंशन योजना में कर्मचारी की सैलरी से कोई कटौती नहीं होती थी. NPS में कर्मचारियों की सैलरी से 10% की कटौती की जाती है. पुरानी पेंशन योजना में  GPF की सुविधा होती थी, लेकिन नई स्कीम में इसकी सुविधा नहीं है. पुरानी पेंशन स्कीम में रिटायरमेंट के समय की सैलरी की करीब आधी राशि पेंशन के रूप मिलती थी, जबकि नई पेंशन योजना में निश्चित पेंशन की कोई गारंटी नहीं है. क्योंकि पुरानी पेंशन एक सुरक्षित योजना है, जिसका भुगतान सरकारी खजाने से किया जाता है. वहीं, नई पेंशन योजना शेयर बाजार पर आधारित है, जिसमें बाजार की चाल के अनुसार भुगतान किया जाता है.

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