
बीते 5 साल में बैंकों के डूबे कर्ज का आंकड़ा कम हुआ है. आंकड़ों के मुताबिक पिछले 5 साल में करीब 10 लाख करोड़ रुपये का बैड घटा है. इतना बड़ा आंकड़ा सुनने में तो बेहद आकर्षक लगता है, क्योंकि ये रकम वाकई बैंकों के NPA से घटी है. बैंकों की कुल मिलाकर 10,09,510 करोड़ रुपये की रकम बतौर कर्ज डूब चुकी थी, जो पिछले 5 वर्ष में बैंकों के NPA से साफ हो गई है. इस बोझ के हटने से बैंकों के बही-खाते को वाकई राहत मिली है.
बट्टे खाते में डालने से घटे NPA!
अब इन आंकड़ों का एक दूसरा पहलू देखते हैं, तो लगता है कि ये कर्ज वसूली इतनी भी आकर्षक नहीं है जितनी की NPA के घटने से दिखाई दे रही है. दरअसल, NPA की कुल रकम 10,09,510 करोड़ रुपये थी, लेकिन बैंकों की जेब में इसमें से महज 13 फीसदी यानी 1.32 लाख करोड़ रुपये ही आए हैं. बाकी रकम घटने की वजह है कि बैंकों ने पिछले 5 साल में इसे बट्टे खाते में डाल दिया है. बट्टा खाता यानी जिस रकम को वसूला ना जा सके. वहीं NPA वो फंसे कर्ज होते हैं जिनको वसूलने की प्रक्रिया जारी रहती है.
RBI ने RTI के जरिए दी जानकारी
ये जानकारी RTI के जरिए RBI से मिली है. नियमों के हिसाब से वो कर्ज NPA के दायरे में आते हैं जिनका 3 महीने (90 दिनों) से ज्यादा समय तक भुगतान नहीं किया जाता है. अगर किसी कर्ज का 3 महीने के भीतर ही भुगतान हो जाता है तो फिर वो NPA में शामिल नहीं किया जाता है. RBI ने RTI का जवाब बैंकों से लिए गए डेटा के आधार पर दिया है.
डिफॉल्टर्स के नाम का खुलासा नहीं
बैंकों ने बीते कई साल में हर आकार के कई लोन को बट्टे खाते में डाला है. लेकिन बैंकों ने कभी भी इस कर्ज को ना चुकाने वाले लोगों के नाम का खुलासा नहीं किया है. यानी किसने कितना कर्ज लेकर बैंकों को वापस नहीं किया और वो राइट ऑफ कर दिया गया है इसकी जानकारी सामने नहीं आई है. इस तरह से डिफॉल्टर्स के नाम का खुलासा नहीं किया गया है.
SBI ने सबसे ज्यादा लोन राइट ऑफ किया
जिन बैंकों ने सबसे ज्यादा लोन राइट ऑफ किया है उसमें पहला नाम देश के सबसे बड़े बैंक स्टेट बैंक ऑफ इंडिया का है जिसने बीते 5 साल में राइट-ऑफ की वजह से 2,04,486 करोड़ रुपये का NPA बट्टे खाते में डाल दिया है. इसके बाद दूसरे नंबर पर पंजाब नेशनल बैंक का नाम है जिसने 67,214 करोड़ रुपये का कर्ज राइट ऑफ कर दिया है. वहीं बैंक ऑफ बड़ौदा 66,711 करोड़ रुपये का लोन बट्टे खाते में डालने के बाद तीसरे नंबर पर मौजूद है.
NPA से बैंकों और अर्थव्यवस्था पर बढ़ता है बोझ
NPA यानी नॉन परफॉरमिंग एसेट्स उन कर्जों को कहा गया है जिनका वापस आने की आशंका नहीं होता है. इसको इस तरह भी समझ सकते हैं कि जिस भी रकम को बैंक बतौर लोन किसी ग्राहक को देता है वो उसके खाते में संपत्ति के तौर पर दर्ज होती है. जबकि अगर ये लोन वापस आने की संभावना ना हो तो फिर ये NPA हो जाता है. जिस बैंक का NPA जितना ज्यादा होगा उसकी फाइनेंशियल कंडीशन उतनी ही खराब मानी जाएगी. यही नहीं इनमें बढ़ोतरी होने से बैंकिंग सिस्टम कमजोर हो जाता है. अगर किसी देश का बैंकिंग सिस्टम ही कमजोर हो जाएगा तो फिर उसकी इकोनॉमी भी मजबूत नहीं मानी जा सकती.
डूबे कर्ज का बड़ा असर
भारत में बैड लोन पिछले कुछ साल में बड़ी समस्या बनकर उभरा है. इसके समाधान के लिए नेशनल एसेट रीकंस्ट्रक्शन लिमिटेड (NARCL) यानी बैड बैंक का भी गठन किया गया है. ये बैंकों के डूबे कर्ज खरीदकर उनकी रिकवरी का काम करेगा. इससे बैंकों को डूबे कर्ज की कुछ हद तक रिकवरी हो जाएगी और कर्ज वसूलने की सिरदर्दी से छुटकारा मिल जाएगा. हालांकि ये अभी बेहद शुरुआती दौर में है और चंद सौदों में ही इसकी बैंकों से बातचीत चल रही है जिसमें डूबे कर्ज की इसने बेहद कम वैल्यू लगाई है.