
भारतीय बैंकों ने बीते दस साल में 16.35 लाख करोड़ रुपये के कर्ज को राइट ऑफ यानी माफ किया है. संसद में पेश किए गए ताजा सरकारी आंकड़ों के मुताबिक, 2018-19 में सबसे ज्यादा 2.36 लाख करोड़ रुपये के कर्ज माफ हुए हैं. जबकि 2014-15 में सबसे कम 58,786 करोड़ रुपये के NPA को बट्टे खाते में डाला था.
2023-24 के दौरान बैंकों ने 1.70 लाख करोड़ रुपये के कर्ज माफ किए, जो 2022-23 के 2.16 लाख करोड़ से कम है. RBI का कहना है कि ये राइट ऑफ नियमों के हिसाब से किए गए हैं. अगर कोई कर्ज चार साल तक नहीं चुकाया जाता तो उसे पूरी तरह से प्रोविजन करना पड़ता है. इससे बैंकों की बैलेंस शीट साफ होती है और उनकी वित्तीय स्थिति मजबूत होती है.
डिफॉल्टर को नहीं मिलेगी राहत!
इस राइट ऑफ करने का मतलब ये नहीं है कि कर्ज लेने वालों को माफी मिल गई है. वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने लोकसभा में कहा कि ये राइट ऑफ कर्जदारों की जिम्मेदारी खत्म नहीं करता. बैंकों का फोकस अब भी इन पैसों को वसूल करने पर है. बैंक केवल RBI के दिशा-निर्देशों और बैंकों के बोर्ड की ओर से स्वीकृत नीति के हिसाब से NPA को बट्टा खाते में डालते हैं. उन्होंने कहा कि इस तरह बट्टे खाते में डालने से कर्जदारों को देनदारियों में छूट नहीं मिलती है और इसलिए उन्हें इससे कोई फायदा नहीं होता.
कौन हैं सबसे बड़े कर्जदार?
31 दिसंबर 2024 तक, 29 बड़े कॉर्पोरेट कर्जदारों पर 61,027 करोड़ रुपये बकाया हैं. इनमें से हर कर्जदार पर 1,000 करोड़ रुपये से ज्यादा का कर्ज है. हालांकि, इन कर्जदारों के नाम गुप्त रखे गए हैं क्योंकि आरबीआई के नियमों में गोपनीयता का प्रावधान है. फिर भी, बैंकों ने इन पैसों को वसूलने के लिए कई कदम उठाए हैं. इन डिफॉल्टर्स पर सिविल कोर्ट, डेट रिकवरी ट्रिब्यूनल और सारफेसी एक्ट के तहत कार्रवाई चल रही है. इसके अलावा, नेशनल कंपनी लॉ ट्रिब्यूनल (NCLT) के जरिए भी कर्ज वसूली की कोशिश हो रही है.
बैंकों की सेहत में सुधार
इन सबके बीच अच्छी खबर ये है कि भारतीय बैंकों, खासकर सरकारी बैंकों की हालत में सुधार हुआ है. RBI की ताजा रिपोर्ट के मुताबिक, बैंकों के खराब कर्ज यानी ग्रॉस NPA सितंबर 2024 में 13 साल के सबसे निचले स्तर 2.5% पर आ गए हैं, जो कि मार्च 2024 में 2.7% थे. नेट NPA भी 0.62% से घटकर 0.57% हो गए हैं. अगर बात करें सरकारी बैंकों के ग्रॉस एनपीए की तो ये सितंबर 2024 में लुढ़ककर 3.12% पर पहुंच गए हैं जबकि मार्च 2018 में ये 14.58% के ऊंचे स्तर पर थे.
बड़े बकाएदार बने मुसीबत
ये सुधार बताता है कि बैंकों के एसेट्स की क्वालिटी बेहतर हुई है. लेकिन बड़े कॉर्पोरेट डिफॉल्टरों से वसूली अभी भी एक बड़ी चुनौती है. वित्त मंत्रालय का कहना है कि बैंकों ने कर्ज वसूलने के लिए कानूनी कार्रवाई और कर्जदारों से सीधी बातचीत तेज कर दी है. फिलहाल, बैंकिंग सेक्टर में सुधार के संकेत तो दिख रहे हैं. लेकिन अगर बड़े कर्जदारों से पैसे नहीं वसूले गए तो ये चिंता का सबब बन सकता है. सरकार और बैंकों को मिलकर इस दिशा में ठोस कदम उठाने होंगे जिससे आम लोगों का भरोसा बना रहे.