
बॉम्बे हाईकोर्ट (Bombay High Court) से जॉनसन एंड जॉनसन कंपनी को बड़ी राहत मिली है. बॉम्बे हाईकोर्ट (Bombay High Court) ने महाराष्ट्र फूड एंड ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन के उस आदेश को रद्द कर दिया, जिसमें सरकार ने अपने यहां जॉनसन एंड जॉनसन का बेबी पाउडर बनाने का लाइसेंस रद्द कर दिया था, और बिक्री पर रोक लगा दी गई थी. ये पाउडर महाराष्ट्र के मुलुंड स्थित फैक्ट्री में बनता है.
जस्टिस गौतम पटेल और जस्टिस एसजी ढिगे की खंडपीठ ने कहा कि FDA की कार्रवाई अनुचित और न्यायसंगत नहीं है. अदालत ने कहा, 'एक प्रशासक चींटी को मारने के लिए हथौड़े का इस्तेमाल नहीं कर सकता.'
सरकार के तीनों आदेश रद्द
बॉम्बे हाईकोर्ट ने महाराष्ट्र सरकार की कार्रवाई को 'सख्त और अनुचित' करार देते हुए कहा कि पारित तीनों आदेशों को रद्द कर दिया है, जिसमें बेबी पाउडर उत्पादों के प्रोडक्शन, बिक्री और वितरण के लिए कंपनी का लाइसेंस रद्द कर दिया गया था. लेकिन अब अदालत ने कंपनी को अपना बेबी पाउडर बनाने, बेचने और वितरित करने की अनुमति दे दी है.
कंपनी को हाई कोर्ट से राहत
बता दें, महाराष्ट्र सरकार ने अपने आदेश में 15 सितंबर को इसके प्रोडक्ट का लाइसेंस रद्द कर दिया था और 20 सितंबर को एक दूसरे आदेश में बेबी पाउडर के प्रोडक्शन और बिक्री पर भी तत्काल रोक लगा दी गई थी. कंपनी को अपने स्टॉक वापस लेने के लिए भी कहा गया था. जिसके बाद कंपनी ने हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया था. जिसके बाद आज हाई कोर्ट ने कंपनी को बेबी पाउडर बेचने की इजाजत दे दी है. और महाराष्ट्र सरकार के रोक से जुड़े फैसले को रद्द कर दिया है.
इससे पहले पिछले हफ्ते बॉम्बे हाईकोर्ट ने महाराष्ट्र सरकार से कहा था कि वह जॉनसन एंड जॉनसन (J&J) कंपनी के बेबी पाउडर की दोबारा टेस्टिंग करे और प्रॉडक्ट के टेस्ट में फेल होने तुरंत एक्शन ले. दो साल पहले ही कंपनी के बेबी पाउडर के सैंपल्स की जांच में वह उचित मानकों की कसौटी पर खरा नहीं उतर पाया था.
सरकार के रवैये पर नाराजगी
दरअसल, कोर्ट ने FDA द्वारा जांच प्रक्रिया में हो रही देरी पर नाराजगी जाहिर की. इससे पहले भी कोर्ट ने कहा कि था कि आप जांच करने के लिए स्वतंत्र हैं, लेकिन एक टाइम फ्रेम में होना चाहिए. कोर्ट का कहना है कि जांच के नाम पर आप कारोबार पर रोक नहीं लगा सकते.
पिछले हफ्ते भी अदालत ने यही बातें दोहराई थीं, कोर्ट ने कहा था कि आप सैंपल्स टेस्ट करना चाहते हैं तो कल टेस्टिंग कर लीजिए. कुछ समस्या है तो हफ्तेभर के अंदर में कंपनी के खिलाफ एक्शन लीजिए. लेकिन मामला लंबा खींचने से कंपनी को आर्थिक नुकसान के साथ-साथ दूसरे गलत संदेश भी जाते हैं. क्योंकि कंपनी पर उपभोक्ताओं की नजरें टिकी हैं.