
वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण (Nirmala Sitharaman) 1 फरवरी 2025 को अपना 8वां बजट पेश करेंगी. वैसे तो बजट से हर सेक्टर्स को उम्मीदें होती हैं. लेकिन इस बार हेल्थ सेक्टर चाहता है कि बजट में उसकी मांगें पूरी हों. इनमें स्वास्थ्य सेवा में टैक्स सुधारों के साथ ही इनोवेशंस को बढ़ावा देने वाले उपाय किए जाने की मांग की जा रही है.
दरअसल, हेल्थ सर्विस प्रोवाइडर्स और मेड-टेक बिजनेस ऐसे सुधारों पर जोर दे रहे हैं, जो इस क्षेत्र को नया आकार दे सकते हैं और देश को स्वास्थ्य सेवाओं में इनोवेशन और इनकी पहुंच के मामले में ग्लोबल लीडर के रूप में स्थापित किया जा सके. ऐसे में हेल्थकेयर सेक्टर चिकित्सा उपकरणों पर आयात शुल्क में कटौती और एडवांस्ड टेक्नोलॉजी में रिसर्च और डेवलपमेंट (R&D) को बढ़ावा देने के उपायों के साथ-साथ स्थानीय विनिर्माण और ग्रामीण स्वास्थ्य सेवा को बढ़ावा देने वाली नीतियों का आग्रह कर रहे हैं.
दरअसल, भारतीय चिकित्सा उपकरण उद्योग संघ (AiMeD) ने बजट से पहले वित्त मंत्रालय को खत लिखकर कई समस्याओं से अवगत कराया है, हिंदुस्तान सिरिंज एंड मेडिकल डिवाइसेज लिमिटेड (HMD) के मैनेजिंग डायरेक्टर राजीव नाथ (Rajiv Nath) ने बताया कि मेडिकल उपकरण निर्माताओं ने भारत में आयातित चिकित्सा उपकरणों के अधिकतम खुदरा मूल्य (MRP) की निगरानी की मांग की है, ताकि भारतीय उपभोक्ता/मरीज को वास्तव में सस्ती कीमतों पर उपकरण उपलब्ध हो सके. बता दें, राजीव नाथ अखिल भारतीय सिरिंज एंड नीडल्स विनिर्माण संघ (AISNMA) के अध्यक्ष भी हैं.
मेडिकल उपकरणों की कीमतों को रेगुलेट करने की मांग
AiMeD ने इस बात पर प्रकाश डाला है कि उपकरणों पर आयात शुल्क में कमी करना सरकार का जो प्रयास है, वो व्यर्थ जा रहा है, क्योंकि उपभोक्ता/मरीज उपकरणों के आयातित मूल्य का 10-30 गुना भुगतान करना पड़ रहा है. इसलिए शून्य शुल्क से मरीजों को कोई लाभ नहीं पहुंच रहा है. भारतीय उपकरण निर्माताओं ने रियायती शुल्क अधिसूचना को वापस लेने की मांग की है.
राजीव नाथ का कहना है कि वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण अपने पिछले बजट भाषण में आश्वासन दिया था कि शून्य शुल्क छूट अधिसूचनाओं को हटाने की आवश्यकता है. इसलिए AiMeD ने रियायती शुल्क अधिसूचना को वापस लेने की मांग की है, जो शुल्क को घटाकर 0-7.5% कर देती है और चिकित्सा उपकरणों के आयात पर 5%-15% शुल्क लगाने की मांग करता है.
रियायत का फायदा मरीजों को नहीं
उनका कहना है कि मौजूदा शुल्क ढांचा सरकार के 'मेक इन इंडिया' के अनुकूल भी नहीं है. सरकारी की थोड़ी सी मदद से घरेलू निर्माताओं को बल मिल जाएगा, जिससे निर्यात को भी बढ़ावा मिलेगा, साथ ही आयात पर भारत की निर्भरता में गिरावट आएगी. AiMeD ने कहा कि पिछले तीन वर्षों से आयात लगातार 61,000 करोड़ रुपये से ऊपर है और पिछले वित्त वर्ष (2023-2024) में तो 13% बढ़कर 69,000 करोड़ रुपये तक पहुंच गया था.
AiMeD ने इस बात पर जोर दिया है कि भारतीय निर्माताओं में 1.4 बिलियन लोगों की जरूरतों को पूरा करने की क्षमता है और वे पर्याप्त घरेलू उत्पादन कर सकते हैं. लेकिन दुख की बात है कि मेडिकल उपकरणों के क्षेत्र में 70% आयात पर निर्भरता है, अगर घरेलू उद्योग के लिए कुछ उचित संरक्षण हो, जैसा कि मोबाइल फोन उद्योग के लिए प्रदान किया गया है, तो इस निर्भरता को पूरी तरह से कम किया जा सकता है.
चिकित्सा क्षेत्र की सबसे बड़ी डिमांड
इसके अलावा मोदी सरकार से बजट (Modi Govt Budget) में हेल्थकेयर सेक्टर की तमाम मांगें हैं, उनमें सबसे ऊपर चिकित्सा उपकरणों पर लगने वाले टैक्स को एक समान करने की मांग सबसे ऊपर हैं. इसे 12% की एक समान जीएसटी दर पर स्थिर करने की डिमांड की जा रही है और ये लंबे समय से इस सेक्टर की एक प्रमुख मांग रही है. गौरतलब है कि फिलहाल चिकित्सा उपकरणों पर जीएसटी दरें 5% से 18% तक हैं, जिससे मैन्युफैक्चरर और डिस्ट्रिब्यूटर्स के लिए जटिलताएं पैदा होती हैं.
70% मेडिकल उपकरणों का आयात
स्वास्थ्य सेवा उद्योग की ओर से लंबे समय से जीवन रक्षक चिकित्सा उपकरणों पर आयात शुल्क और टैक्स को कम करने की वकालत की जा रही है. इसके पीछे की वजह पर गौर करें, तो भारतीय चिकित्सा उपकरण उद्योग (IMDI) के मुताबिक, भारत अपने लगभग 70% चिकित्सा उपकरणों का आयात करता है और आयात शुल्क कम करने से हेल्थ सर्विस प्रोवाइडर्स और रोगियों के लिए स्वास्थ्य सेवा की लागत को कम करने में मदद मिल सकती है. इसके साथ ही हेल्थ सेक्टर ने निर्यात किए जाने वाले उत्पादों पर शुल्क और टैक्स में छूट (RODTEP) योजना (जो वर्तमान में 0.6-0.9% का निर्यात प्रोत्साहन प्रदान करती है) को 2-2.5% तक बढ़ाने की सिफारिश की है, जिससे भारतीय चिकित्सा उपकरण वैश्विक बाजार में अधिक प्रतिस्पर्धी बनेंगे.
नीति आयोग का भी यही मानना
स्वास्थ्य सेवा क्षेत्र में उठ रही इस मांग को लेकर नेशनल इंस्टीट्यूट फॉर ट्रांसफॉर्मिंग इंडिया (Niti Aayog) की 2023 की रिपोर्ट में कहा गया है कि एक समान टैक्स स्ट्रक्चर अनुपालन को सरल बना सकता है और साथ ही परिचालन दक्षता में सुधार करने वाला साबित हो सकता है, इसके आलावा हेल्थ सेक्टर में लागत को भी कम कर सकता है. इंडियन हेल्थ बिजनेस इस सेक्टर से जुड़ी PLI Scheme के विस्तार की मांग भी कर रहा है. फ्रॉस्ट एंड सुलिवन की एक रिपोर्ट के अनुसार, वित्त वर्ष 24 में भारत के घरेलू चिकित्सा उपकरण बाजार का मूल्य लगभग ₹75,000 करोड़ था और अगले पांच वर्षों में चिकित्सा उपकरण सेगमेंट में 12-15% की CAGR से वृद्धि होने की उम्मीद है.
ये मांगें भी लिस्ट में शामिल
एक्सपर्ट्स का मानना है कि तकनीकी उन्नति, खास तौर पर आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) में, स्वास्थ्य सेवा परिवर्तन के लिए एक महत्वपूर्ण कारक हो सकती है. PwC की एक रिपोर्ट के अनुसार, भारत में स्वास्थ्य सेवा बाजार में एआई की वैल्यू 2022 में ₹5,000 करोड़ थी और 2030 तक 40% की CAGR से बढ़कर ₹50,000 करोड़ तक पहुंचने की उम्मीद है. एआई उपकरण रोग का शीघ्र पता लगाने, इमेजिंग एनालिसिस समेत अन्य तरीकों से इस सेक्टर तो महत्वपूर्ण रूप से आगे बढ़ाने वाले साबित हो सकते हैं.
स्वास्थ्य सेवा पर खर्च बढ़ाना भी इस सेक्टर की एक और अहम मांग है. वर्तमान में, भारत अपने सकल घरेलू उत्पाद का करीब 1.5% हेल्थ सर्विसेज पर खर्च करता है, जो वैश्विक औसत 3.5% से बहुत कम है. विश्व बैंक (World Bank) द्वारा 2023 में किए गए एक अध्ययन में पाया गया कि स्वास्थ्य सेवा पर खर्च को सकल घरेलू उत्पाद के 2.5-3% तक बढ़ाने से बुनियादी ढांचे, स्वास्थ्य सेवा तक पहुंच और परिणामों में बड़ा सुधार हो सकता है. इसके अलावा भारतीय ग्रामीण स्वास्थ्य सेवा का ढांचा एक बड़ी चुनौती बना हुआ है. स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय (MoHFW) के अनुसार, भारत की लगभग 70% आबादी ग्रामीण क्षेत्रों में रहती है, लेकिन केवल 38% स्वास्थ्य सुविधाएं इन क्षेत्रों में स्थित हैं.