
केंद्र और कुछ राज्य सरकारों के बीच जीएसटी क्षतिपूर्ति भुगतान को लेकर तकरार जारी है. इस बीच, केंद्र सरकार ने 20 राज्यों को जीएसटी राजस्व में कमी को पूरा करने के लिए ओपन मार्केट यानी खुले बाजार से 68,825 करोड़ रुपये की उधारी लेने को मंजूरी दे दी है. आपको यहां बता दें कि सोमवार को जीएसटी परिषद की बैठक में केंद्र और कुछ राज्यों में कोई सहमति नहीं बन पाई थी. इसके बाद यह निर्णय किया गया है.
कौन-कौन से राज्य शामिल
वित्त मंत्रालय के अंतर्गत आने वाले व्यय विभाग ने बयान में कहा, ‘‘सकल राज्य घरेलू उत्पाद (जीएसडीपी) के 0.5 प्रतिशत के हिसाब से अतिरिक्त कर्ज लेने की मंजूरी दी गई है. यह मंजूरी उन राज्यों को दी गई है जिन्होंने जीएसटी लागू होने के कारण राजस्व संग्रह में कमी को पूरा करने के लिए वित्त मंत्रालय की तरफ से दिए गए दो विकल्पों में से पहला विकल्प चुना है.’’
बयान के अनुसार, ‘‘जिन बीस राज्यों ने पहला विकल्प चुना है वे इस प्रकार हैं- आंध्र प्रदेश, अरूणाचल प्रदेश, असम, बिहार, गोवा, गुजरात, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, कर्नाटक, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, मणिपुर, मेघालय, मिजोरम, नगालैंड, ओड़िशा, सिक्किम, त्रिपुरा, उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड. वहीं, आठ राज्यों ने अभी किसी विकल्प का चयन नहीं किया है.’’
मिले थे दो विकल्प
बता दें कि केंद्र ने अगस्त में राज्यों को दो विकल्प दिए थे. इसके तहत या तो वे आरबीआई द्वारा उपलब्ध कराई जाने वाली विशेष सुविधा के जरिए 97,000 करोड़ रुपये कर्ज ले सकते थे या फिर बाजार से 2.35 लाख करोड़ रुपये का ऋण ले सकते थे. इसके अलावा उधारी को चुकाने के लिए आरामदायक और समाज के नजरिए से अहितकर वस्तुओं पर लगने वाले सेस 2022 के बाद भी लगाने का प्रस्ताव किया गया था.
इन विकल्पों पर कुछ राज्य सहमत नहीं हैं. इसी को देखते हुए सोमवार को एक बार फिर जीएसटी परिषद की बैठक की गई थी. हालांकि, बैठक से कुछ ठोस निकल कर सामने नहीं आया. आपको बता दें कि चालू वित्त वर्ष में कुल क्षतिपूर्ति 2.35 लाख करोड़ रुपये अनुमानित है. चालू वित्त वर्ष के पहले महीने यानी अप्रैल से जुलाई के बीच जीएसटी क्षतिपूर्ति बकाया 1.5 लाख करोड़ रुपये रहने की आशंका है. अनुमान के मुताबिक चालू वित्त वर्ष में बकाया के तौर पर राज्यों को 3 लाख करोड़ रुपये की जरूरत होगी.