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वैक्सीन पर ढील के लिए WTO में दबाव बनाती रही सरकार, देश में खुद महीनों तक नहीं ​दी मंजूरी 

केंद्र सरकार ने पिछले साल अक्टूबर में ही WTO में दक्षिण अफ्रीका के साथ इस बात के लिए गठजोड़ किया था कि वैक्सीन आसानी से मिलना सुनिश्चित करने के लिए नियमों में ढील दी जाए. देश में कोवैक्सीन के टेक्नोलॉजी ट्रांसफर की फाइल पर सरकार छह महीने तक कुंडली मारे बैठी रही.

कोवैक्सीन को लाइसेंस मुक्त करने में देरी (फाइल फोटो) कोवैक्सीन को लाइसेंस मुक्त करने में देरी (फाइल फोटो)
आनंद पटेल
  • नई दिल्ली ,
  • 13 मई 2021,
  • अपडेटेड 2:26 PM IST
  • कोविड वैक्सीन की अब देश में भारी किल्लत
  • कोवैक्सीन को लाइसेंस मुक्त करने में देरी

देश में कोविड वैक्सीन को लेकर हुई किल्लत के बीच इसे हर तरफ से हासिल करने का प्रयास बढ गया है. केंद्र सरकार ने पिछले साल अक्टूबर में ही विश्व व्यापार संगठन (WTO) में दक्षिण अफ्रीका के साथ इस बात के लिए गठजोड़ किया था कि विकासशील देशों को वैक्सीन आसानी से मिलना सुनिश्चित करने के लिए नियमों में ढील दी जाए. 

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लेकिन दूसरी तरफ, यह भी सच है कि देश में कोवैक्सीन (COVAXIN) टेक्नोलॉजी ट्रांसफर की फाइल पर सरकार छह महीने तक कुंडली मारे बैठी रही. इसके लिए पिछले साल मध्य अप्रैल में ही तीन पीएसयू को शॉर्टलिस्ट किया गया था. को​वैक्सीन का विकास भारत बायोटेक और इंडियन कौंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च (ICMR) ने किया है. 

भारत-दक्षिण अफ्रीका सहयोग 

 पिछले साल अक्टूबर में भारत ने दक्षिण अफ्रीका के साथ मिलकर WTO में इस बात के लिए अभियान चलाया था कि बौद्धिक संपदा अधिकार के व्यापार संबंधी पहलुओं के (TRIPS Agreement) कुछ प्रावधानों में ढील दी जाए, ताकि वैक्सीन और दवाओं के उत्पादन के लिए जरूरी टेक्नोलॉजी तक सबकी पहुंच आसान हो सके. ट्रिप्स कौंसिल में अपनी अपील में भारत सरकार ने कहा था कि बौद्धिक संपदा अधिकार से मरीजों को किफायती वैक्सीन और दवाएं तेजी से पहुंचाने के लक्ष्य में बाधा आ सकती है. 

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भारत सरकार जहां विदेशी टीकों को हासिल करने के लिए लॉबिइंग कर रही थी, वहीं इसने देश में वैक्सीन के उत्पादन को तेज करने के​ लिए खास प्रयास नहीं किया. सीरम इंस्टीट्यूट द्वारा उत्पादित कोविशील्ड अंतरराष्ट्रीय साझेदारी के तहत बनी थी, इसलिए उसमें अनिवार्य लाइसेंसिंग जैसी कानूनी अड़चनें आ सकती थीं. लेकिन भारत बायोटेक-ICMR के द्वारा विकसित कोवैक्सीन के साथ तो ऐसा कोई मसला नहीं था. 

अनिवार्य लाइसेंसिंग को खत्म करने का कोई प्रयास नहीं

सीरम इंस्टीट्यूट द्वारा हर महीने 5 करोड़ डोज और भारत बायोटेक द्वारा 90 लाख डोज देश की विशाल मांग को पूरा करने के लिए नाकाफी था. लेकिन केंद्र सरकार ने अनिवार्य लाइसेंसिंग को खत्म करने का कोई प्रयास नहीं किया. अगर ऐसा होता तो यह वैक्सीन आराम से दूसरी कंपनियों द्वारा बनाया जाता और उत्पादन कई गुना बढ़ सकता था. 

पिछले साल अप्रैल में जब कोरोना रफ्तार पकड़ने लगा तब सार्वजनिक क्षेत्र की तीन कंपनियों को टेक्नोलॉजी ट्रांसफर के लिए शॉर्टलिस्ट किया गया. इनमें से एक हाफकाइन कॉरपोरेशन  (Haffkine) महाराष्ट्र सरकार का पीएसयू है. यह सितंबर तक हर महीने 2 करोड़ डोज की उत्पादन क्षमता हासिल कर सकती है. नेशनल डेयरी डेवलपमेंट बोर्ड से जुड़ी संस्था इंडियन इम्युनोलॉजिकल्स और बायोटेक्नोलॉजी विभाग के तहत आने वाले भारत इम्युनोलॉजिकल्स और बायोलॉजिकल्स लिमिटेड (BIBCOL), बुलंदशहर द्वारा अगस्त, सितंबर 2021 तक हर महीने 1 से 1.5 करोड़ डोज तैयार हो सकते हैं. 

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गौरतलब है कि हाल में दिल्ली और आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्रियों ने भी केंद्र सरकार से यह अपील की है कि कोवैक्सीन के उत्पादन में निजी क्षेत्र की कंपनियों को लगाया जाए. 

 

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