
रूस और यूक्रेन के बीच युद्ध (Russia-Ukraine War) की वजह से कच्चे तेल की कीमतें गुरुवार को 100 डॉलर प्रति बैरल के स्तर के पार पहुंच गईं. कच्चे तेल की बढ़ती कीमतें सरकार के लिए नई तरह की परेशानी खड़ी कर सकती है और इससे सरकार का राजकोषीय गणित गड़बड़ा सकता है. देश के सबसे बडे लेंडर भारतीय स्टेट बैंक (SBI) की रिपोर्ट में ऐसा कहा गया है.
एक लाख करोड़ रुपये तक का नुकसान
एसबीआई की रिपोर्ट (SBI Report) में कहा गया है कि कच्चे तेल की आसमान छूती कीमतों से वित्त वर्ष 2022-23 में केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार (Narendra Modi Government) को 95 हजार करोड़ रुपये से एक लाख करोड़ रुपये का घाटा हो सकता है. कच्चे तेल की कीमतों में उछाल के बावजूद सरकार ने नवंबर, 2021 से पेट्रोल और डीजल की कीमतों में किसी तरह का कोई बदलाव नहीं किया है.
रेट में आ जाती 9-14 रुपये प्रति लीटर की तेजी
SBI की 'Ecowrap' शीर्षक रिपोर्ट में कहा गया है, "वैट के मौजूदा स्ट्रक्चर और 95-110 डॉलर प्रति बैरल के ब्रेंट क्रूड ऑयल की मौजूदा कीमतों को अगर ध्यान में रखा जाए तो यह कहा जा सकता है कि पेट्रोल और डीजल की कीमतों में अब तक 9-14 रुपये प्रति लीटर की तेजी आ चुकी होती."
हर माह 8,000 करोड़ का नुकसान
इस रिपोर्ट में साथ ही कहा गया है कि अगर सरकार मार्च में चुनावों के बाद पेट्रोल और डीजल की कीमतों में उछाल को रोकने के लिए एक्साइज ड्यूटी में एक बार फिर से सात रुपये प्रति लीटर की कमी करती है तो तब सरकारी खजाने को 8,000 करोड़ रुपये प्रति माह का नुकसान होगा.
रिपोर्ट में कहा गया है कि अगर हम यह मानकर चलें कि एक्साइज ड्यूटी में कमी पूरे वित्त वर्ष (2022-23) के दौरान रहेगी और इस अवधि में पेट्रोल-डीजल की खपत 8-10 फीसदी तक बढ़ जाती है तो सरकार को 95,000 करोड़ रुपये से एक लाख करोड़ रुपये का नुकसान होगा.