
कच्चे तेल की कीमतों में एक बार फिर से आग लगी (Crude Oil Price Rise) है और इसमें तेजी का सिलसिला जारी है. शुक्रवार को अंतरराष्ट्रीय बाजार में Crude Oil का भाव 94 डॉलर प्रति बैरल के पार पहुंच गया. आपूर्ति संबंधी बाधाओं और सऊदी अरब व रूस द्वारा कच्चे तेल के उत्पादन में कटौती के फैसले के बाद से क्रूड की कीमतों में इजाफा देखने को मिल रहा है. अगर कच्चे तेल के दाम में तेजी इसी रफ्तार से जारी रही, तो आने वाले त्योहारी सीजन में महंगाई (Inflation) का तड़का लग सकता है और लोगों की मुसीबतें बढ़ सकती हैं.
10 महीने के हाई पर पहुंच गया भाव
दरअसल, शुक्रवार को इंटरनेशनल मार्केट में कच्चे तेल की कीमत (Crude Oil Price) 94 डॉलर प्रति बैरल तक पहुंच गया. वहीं WTI Crude 91 डॉलर प्रति बैरल पर पहुंच चुका है. कच्चे तेल की कीमत का ये आंकड़ा 10 महीने में सबसे ज्यादा है. इसमें जारी तेजी ने तेल कंपनियों के बजट पर असर दिखाना शुरू कर दिया है. अगर इसी तरह कच्चे तेल की कीमतों में तेजी जारी रहती है तो फिर आने वाले दिनों में तेल कंपनियां पेट्रोल-डीजल के दाम में बढ़ोतरी का फैसला कर सकती हैं. जिससे महंगाई बढ़ने का खतरा भी बढ़ सकता है.
बीते साल भी आई थी जोरदार तेजी
बीते साल 2022 में अंतरराष्ट्रीय मार्केट में कच्चे तेल की कीमतों में जोरदार इजाफा देखने को मिला था और रूस-यूक्रेन युद्ध (Russia-Ukraine War) के बीच इसका भाव 139 डॉलर के स्तर पर पहुंच गया था और काफी समय तक इस स्तर के आस-पास बना रहा था. हालांकि फिर इसके भाव में कमी आई और ये 90 डॉलर के नीचे पहुंच गया. Crude Oil का ऑल टाइम हाई लेवल 147.27 डॉलर प्रति बैलर है, जिसे इसने साल 2008 में जुलाई महीने छुआ था. अब एक बार फिर से इसमें तेजी देखी जा रही है.
कच्चे तेल के दाम बढ़ने की वजह
बता दें कि सितंबर की शुरुआत में सऊदी अरब और रूस (Russia) ने कच्चे तेल के उत्पादन में कटौती करने का फैसला किया था. इसके तहत दोनों ही देश दिसंबर 2023 तक 1.3 मिलियन बैरल कच्चे तेल के उत्पादन को घटाएंगे. सऊदी अरब के अगले महीने फिर से Crude Oil Production घटाने या बढ़ाने को लेकर समीक्षा करेगा. सऊदी अरब के समान अब रूस भी कच्चे तेल के उत्पादन को घटा रहा है. वहीं इस अवधि में रूस ने प्रति दिन 3 लाख बैरल तक कच्चे तेल के निर्यात को कम करने का भी फैसला किया है. ये बड़ा कारण है कि कच्चे तेल की कीमतों में इजाफा देखने को मिल रहा है. यही नहीं कच्चे तेल का बड़ा आयातक होने के नाते भारत के लिए ये मुसीबत का सबब बन सकता है.
इसलिए भारत की मुसीबत बढ़ा सकता है क्रूड
भारत कच्चे तेल का बड़ा आयातक है और यह अपनी जरूरत का 85 फीसदी से ज्यादा कच्चा तेल बाहर से खरीदता है. आयात किए जा रहे कच्चे तेल की कीमत भारत को अमेरिकी डॉलर में चुकानी होती है, ऐसे में कच्चे तेल की कीमत बढ़ने और डॉलर के मजबूत होने से घरेलू स्तर पर पेट्रोल-डीजल के दाम (Petrol-Diesel Price) प्रभावित होते हैं यानी इनकी कीमतों में इजाफा देखने को मिलता है. अगर कच्चे तेल की कीमत अंतरराष्ट्रीय बाजार में बढ़ती है तो जाहिर है भारत का आयात बिल बढ़ जाएगा और इसकी भरपाई के लिए तेल कंपनियों को ईंधन के दाम बढ़ाने का कठोर निर्णय लेना पड़ सकता है.
कच्चे तेल में तेजी का पेट्रोल-डीजल पर असर
अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अगर कच्चे तेल की कीमतों में अगर एक डॉलर का इजाफा होता है तो देश में पेट्रोल-डीजल के दाम 50 से 60 पैसे बढ़ जाते हैं. ऐसे में प्रोडक्शन कम होने और सप्लाई में रुकावट के चलते इसके दाम में तेजी आना तय है. अगर ऐसा होता है तो फिर तेल कंपनियां भारत में पेट्रोल-डीजल की कीमतों में बढ़ोतरी का फैसला ले सकती हैं और लोगों पर बोझ बढ़ सकता है. अगर पेट्रोल-डीजल के दाम बढ़ते हैं, तो फिर महंगाई की मार पर पड़ सकती है.
देश में ऐसे तय होती हैं ईंधन की कीमतें
तेल वितरण कंपनियां अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की कीमत, एक्सचेंज रेट, टैक्स, पेट्रोल-डीजल के ट्रांसपोर्टेशन का खर्च और बाकी कई चीजों को ध्यान में रखते हुए रोजाना पेट्रोल-डीजल की कीमत निर्धारित करती हैं. साल 2014 तक कीमतों के निर्धारण का काम सरकार के कंधों पर था और हर 15 दिनों में इनकी कीमतें बदलती थीं। लेकिन जून 2014 के बाद ये काम तेल कंपनियों को सौंप दिया गया था और कच्चे तेल की कीमत में जारी वृद्धि से अगर इन तेल कंपनियों का बजट प्रभावित होता है, तो फिर उन्हें Petrol-Diesel Price बढ़ाने का फैसला लेना पड़ सकता है.