
उद्योग जगत के साथ-साथ देश के लिए बेहद मायूसी भरी खबर है. टाटा संस के पूर्व चेयरमैन साइरस मिस्त्री का रविवार को एक सड़क हादसे में निधन हो गया. वे 54 साल के थे. एक समय रतन टाटा के बेहद करीबी थे साइरस मिस्त्री.
दरअसल साइरस पालोनजी मिस्त्री (Cyrus Mistry) को 28 दिसंबर, 2012 को टाटा का चेयरमैन बनाया गया था. मिस्त्री ने छठे चेयरमैन के तौर पर ग्रुप में कार्यभार संभाला था. मिस्त्री को पद से हटाए जाने पर टाटा ग्रुप का कहना था कि बोर्ड ने अपनी सामूहिक बुद्धि और टाटा ट्रस्ट के शेयरहोल्डरों की सलाह पर यह फैसला किया है. टाटा सन्स और टाटा ग्रुप के बेहतरी के लिए यह बदलाव जरूरी था. जब मिस्त्री को हटाया गया था कि उस वक्त टाटा संस के 18.5 फीसदी शेयर इसी परिवार के पास थे और इस तरह से यह सबसे बड़ा शेयरधारक थे.
हटाने के पीछे टाटा बोर्ड का ये था तर्क
अचानक साइरस मिस्त्री (Cyrus Mistry) को हटाए जाने से हर कोई हैरान था. क्योंकि साइरस मिस्त्री जब टाटा सन्स (Tata Sons) के चेयरमैन बने थे, उस समय कंपनी का कारोबार 100 अरब डॉलर के आसपास था. तब मिस्त्री से यह उम्मीद जताई जा रही थी कि वे वर्ष 2022 तक इस कारोबार को 500 अरब डॉलर तक पहुंचा देंगे. लेकिन अचानक टाटा संस के बोर्ड ने 24 अक्टूबर, 2016 को साइरस मिस्त्री को चेयरमैन पद से हटा दिया.
आरोप-प्रत्यारोप का चला लंबा दौर
टाटा बोर्ड ने आरोप लगाया था कि साइरस मिस्त्री की अगुवाई में टाटा ग्रुप की रफ्तार सुस्त हुई और ग्रुप उस रफ्तार से आगे नहीं बढ़ा जैसी अपेक्षाएं उनसे की गई थीं. लेकिन NCALT में मिस्त्री की ओर से याचिका में कहा गया कि मिस्त्री को चेयरमैन पद से हटाने का काम ग्रुप के कुछ प्रमोटर्स ने किया. उनका इस्तीफा इनके उत्पीड़न की वजह से था. याचिका के दूसरे हिस्से में आरोप लगाया गया कि ग्रुप और रतन टाटा के अव्यवस्थित प्रबंधन की वजह से ग्रुप को आय का काफी ज्यादा नुकसान हुआ.
रतन टाटा और साइरस मिस्त्री के बीच रिश्ते
जब साइरस मिस्त्री टाटा ग्रुप (Tata Group) का चेयरमैन बनाया गया था, उसके अगले एक साल तक उनके रतन टाटा के साथ संबंध बेहतरीन रहे थे. टाटा के नियंत्रण में जितने भी ट्रस्ट हैं. एक समय तो ऐसा भी आया था जब वे मिस्त्री को ट्रस्टों में कोई भूमिका देने के बारे में सोच रहे थे और यहां तक पहुंच गए थे कि वे अपने अवकाश लेने के बाद कोई ऐसा रास्ता बनाना चाहते थे, ताकि मिस्त्री इन ट्रस्टों के उनके उत्तराधिकारी बन सकें.
इन मुद्दों पर मतभेद गहराया
कुछ रिपोर्ट्स की मानें तो शुरुआती वर्ष में मिस्त्री सभी अहम मसलों पर रतन टाटा (Ratan Tata) से आगे बढ़कर परामर्श लिया करते थे. हालांकि विरासत में मिली कुछ समस्याओं से निपटने के क्रम में दोनों के बीच मतभेद कायम हुए. मसलन, टाटा नैनो (जिसके बारे में मिस्त्री का मानना था कि अगर कार के कारोबार को बचाना है तो इसे बंद कर दिया जाना चाहिए), इंडियन होटल्स की ओर से देश और विदेश में की गई महंगी खरीदारियां जिन्हें घाटा उठाकर बेचना पड़ा, टाटा स्टील यूके के घाटे से निपटने के तरीके, टाटा डोकोमो का समूचा सौदा और अंततः टाटा पावर की इंडोनेशिया स्थित खदान जैसी कुछ परिसंपत्तियां.
खबरों की मानें तो चार ऐसे बड़े फैसले थे जिनके चलते विशेष रूप से असंतोष पैदा हुआ. टाटा स्टील यूके की बिक्री, वेलस्पन एनर्जी की नवीकरणीय परिसंपत्तियों की खरीद का फैसला, टाटा और उसके साझीदार डोकोमो के बीच झगड़ा और समूह के कर्ज कम करने के लिए अन्य वैश्विक परिसंपत्तियों की बिक्री की खातिर मिस्त्री के किए गए प्रयास.
साइरस मिस्त्री की ऐसे हुई थी टाटा ग्रुप में एंट्री
साइरस मिस्त्री 1991 में शपूरजी पालोनजी एंड कंपनी के बोर्ड में निदेशक के रूप में शामिल हुए थे. तीन सालों बाद उन्हें समूह का प्रबंध निदेशक बना दिया गया था. उनके नेतृत्व में शपूरजी पालोनजी का निर्माण कारोबार दो करोड़ डॉलर से बढ़कर डेढ़ अरब डॉलर का हो गया था. टाटा सन्स में निदेशक के अलावा मिस्त्री टाटा एलक्सी और टाटा पावर में भी निदेशक रहे थे. पालोनजी ग्रुप का कारोबार कपड़े से लेकर रियल एस्टेट, हॉस्पिटेलिटी और बिजनेस ऑटोमेशन तक फैला हुआ है