
हीरों के व्यापारी गोविंद ढोलकिया (Diamond Tycoon Govind Dholakiya) आज के जमाने में जाने-माने नाम हैं और उनका कारोबार अरबों डॉलर का है. हालांकि वह हमेशा से धनकुबेर नहीं थे. उनकी स्थिति ऐसी थी कि पहले ट्रेड के लिए 920 रुपये की जरूरत पड़ने पर उन्हें दोस्तों और पड़ोसियों से कर्ज लेना पड़ गया था. हाल ही में प्रकाशित ढोलकिया की आत्मकथा 'Diamonds Are Forever, So Are Morals' में यह बात सामने आई है.
ऐसे आया बिजनेस का आइडिया
हीरों की मैन्यूफैक्चरिंग और एक्सपोर्ट करने वाली कंपनी श्री रामकृष्ण एक्सपोर्ट्स प्राइवेट लिमिटेड (Shree Ramkrishna Exports Pvt Ltd) के फाउंडर व चेयरमैन गोविंद ढोलकिया ने आत्मकथा में अपने पहले ट्रेड के बारे में विस्तार से बताया है. वह कहते हैं कि उन्हें जनवरी 1970 में अपना बिजनेस शुरू करने का आइडिया आया था. उन्होंने बताया, 'जनवरी 1970 के आखिरी रविवार की बात है. मैं एक क्रिस्टल बॉल रीडिंग शॉप (Crystal Ball Reading Shop) में गया था और तभी मुझे अनगढ़ हीरों (Rough Diamonds) को तराशने और उन्हें पॉलिश करने के बिजनेस का आइडिया आया.'
इस तरह जुटाए गए 920 रुपये
अपने पहले ट्रेड के बारे में वह बताते हैं, 'हम बाबूभाई रिखवचंद दोशी (Babubhai Rikhavchand Doshi) और भानुभाई चंदुभाई शाह (Bhanubhai Chandubhai Shah) के ऑफिस गए. उन्होंने एक कैरेट का दाम 91 रुपये बताया और कम-से-कम 10 कैरेट लेने की शर्त दी. इस तरह हीरे के दाम 910 रुपये हुए और 10 रुपये ब्रोकरेज के देने थे. मेरे पास सिर्फ 500 रुपये थे. बाकी के रुपये घर से लाने की बात की वहां से निकला, हालांकि घर पर कोई पैसा था ही नहीं. मैं तब अपने दोस्त वीरजीभाई (Virjibhai) के घर गया और पैसे मांगा. उन्होंने घर के खर्च के लिए रखे 200 रुपये दिए. इसके बाद वीरजीभाई ने पड़ोसी से 200 रुपये कर्ज लेकर दिया. बाकी के 20 रुपये ढोलकिया के वॉलेट में थे. इस तरह 920 रुपये का जुगाड़ हो पाया.'
पहले ट्रेड में हुआ इतना प्रॉफिट
ढोलकिया ने बताया कि इस तरह से पूरा पेमेंट कर हीरा खरीदा गया. उन्होंने हीरे को पॉलिश किया और एक सप्ताह बाद उसे बाबूभाई को 10 फीसदी मुनाफे के साथ बेच दिया. ढोलकिया ने बताया कि उनके काम से बाबूभाई खुश हो गए और मनमुताबिक हीरे देने लगे. ढोलकिया हीरे को भगवान मानते हैं. उनका मानना है कि उच्च नैतिकता और मूल्यों का पालन करने से उन्हें जीवन में सही फैसले लेने में मदद मिली.