
बिहार में पिछले कुछ दिनों से जारी राजनीतिक उठापटक के नतीजे सामने आ चुके हैं. जदयू (JDU) के नीतीश कुमार (Nitish Kumar) एक बार फिर से बिहार के मुख्यमंत्री पद की शपथ ले चुके हैं. एक दिन पहले भाजपा (BJP) के साथ गठबंधन तोड़ने के बाद नीतीश कुमार ने आज बुधवार को राजद (RJD), कांग्रेस (Congress) और वाम दलों (Left Parties) के साथ मिलकर नई सरकार का गठन किया है. बिहार की राजनीति की बात करें तो पिछले दो दशक से नीतीश कुमार केंद्र में जमे हुए हैं. नीतीश कुमार की पैठ का अंदाजा इस बात से लगा सकते हैं कि पिछले 22 साल के दौरान उन्होंने 8वीं बार बिहार के मुख्यमंत्री पद की शपथ ली है. बीच के कुछ साल को हटा दें तो 2005 से अब तक नीतीश कुमार ही बिहार की सत्ता के शिखर पर विराजमान हैं. इस दौरान करीब 15 साल जदयू और भाजपा की गठबंधन सरकार सत्ता में रही है. आइए ये जानने का प्रयास करते हैं कि नीतीश कुमार की अगुवाई में जदयू-भाजपा की सरकार बिहार के लोगों व राज्य की अर्थव्यवस्था के लिए क्या बदलाव लाने में सफल रही और कहां पर सरकार अच्छा करने से चूक गई...
पिछले 15-17 साल के दौरान बिहार के आर्थिक हालात कैसे रहे, ये जानने से पहले बैकग्राउंड की थोड़ी चर्चा कर लेते हैं. आजादी के बाद 1951 में जब देश में प्रथम पंचवर्षीय योजना (First Five Years Plan) लागू हो रही थी, उस समय बिहार भारत के उद्योग जगत की रीढ़ था. धीरे-धीरे हालात बदले और साथ में बिहार भी बदला. जहां देश के अन्य राज्यों ने तरक्की की ट्रेन पकड़ी, वहीं बिहार की गाड़ी बैक गियर में दौड़ने लगी. अपराध का बोल-बाला, नरसंहारों का दौर, नक्सलवाद आदि के कारण बिहार से उद्योगों और व्यापार का पलायन हुआ. रही-सही कसर 2000 में झारखंड के विभाजन ने पूरी कर दी. झारखंड के अलग होने के बाद बिहार की राजनीति में एक टर्म बहुत प्रचलित हुआ था कि अब बिहार के पास सिर्फ तीन चीजें बची हैं...आलू, बालू और लालू. स्थिति का सही-सही अनुमान लगाने में प्रतिष्ठित वैश्विक पत्रिका 'इकोनॉमिस्ट (Economist)' की एक टिप्पणी बड़ी मददगार साबित हो सकती है. यह 21वीं सदी की शुरुआत यानी सन 2000 के आस-पास की बात है. इकोनॉमिस्ट ने उस समय के बिहार को 'An Area Of Darkness' करार दिया था, जिसे नीतीश कुमार समेत भाजपा व अन्य पार्टियां जंगलराज बताते आई हैं. बहरहाल उसके बाद के दो दशक बीत चुके हैं और इसके साथ ही परिस्थितियों में भी बदलाव आया है, जिसे हम आंकड़ों की मदद से समझने का प्रयास करेंगे.
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प्रति व्यक्ति आय (Per Capita Income): बिहार के 16वीं आर्थिक समीक्षा रिपोर्ट (Bihar Econimic Survey 2021-22) के अनुसार, राज्य की प्रति व्यक्ति आय 2020-21 के दौरान 50,555 रुपये रही. भारत की बात करें तो देश की औसत प्रति व्यक्ति आय 2020-21 में 86,659 रुपये थी. देश के सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में प्रति व्यक्ति आय के आधार पर बिहार 33वें पायदान पर है. भारत में आर्थिक तरक्की का तेज दौर 1991 के सुधारों के बाद शुरू हुआ. 1990-91 में बिहार की प्रति व्यक्ति आय 2,660 रुपये थी, जबकि पूरे भारत के मामले में यह आंकड़ा 5,365 रुपये था. यानी उदारीकरण के समय बिहार की प्रति व्यक्ति आय राष्ट्रीय औसत के 49 फीसदी के बराबर थी. साल 2004-05 में बिहार की प्रति व्यक्ति आय बढ़कर 7,914 रुपये हो पाई, जबकि पूरे देश के मामले में यह बढ़कर 24,143 रुपये हो गई. यानी 1991 से 2005 के दौरान बिहार में प्रति व्यक्ति आय देश की तुलना में कम रफ्तार से बढ़ी और राष्ट्रीय औसत के 33 फीसदी के बराबर रह गई.
जीडीपी (GDP): इस साल पेश बजट के अनुसार, बिहार की जीडीपी के 2021-22 में 7,57,026 करोड़ रुपये पर पहुंच जाने का अनुमान है. साल 2017 में जब आखिरी बार नीतीश कुमार ने भाजपा का दामन थामा था और डबल इंजन की सरकार बनाई थी, उस समय बिहार का सकल राज्य घरेलू उत्पाद यानी स्टेट जीडीपी (Bihar GSDP) का साइज करीब 4,21,051 करोड़ रुपये था. इसके बाद 2018-19 में बिहार की जीडीपी ने पहली बार 5 लाख करोड़ रुपये का और 2019-20 में 6 लाख करोड़ रुपये के पार निकला. साल 2005 में जब नीतीश कुमार पहली बार मुख्यमंत्री बने थे तब राज्य की जीडीपी का साइज महज 78,500 करोड़ रुपये था.
सड़क व पुल (Roads&Bridges): मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की सरकार की उपलब्धियों में सड़क और पुल का अहम स्थान है. आर्थिक समीक्षा रिपोर्ट के अनुसार, बिहार सड़कों की डेंसिटी के मामले में देश में तीसरे स्थान पर है. रिपोर्ट में कहा गया है कि राज्य में प्रति 100 वर्ग किलोमीटर के इलाके में 219 किलोमीटर लंबी सड़कें हैं. वहीं देश के मामले में यह औसत घनत्व 143 किलोमीटर ही है. इस तरह देखें तो सड़कों के घनत्व के मामले में बिहार देश के औसत से काफी आगे है. सड़कों समेत बुनियादी संरचना के मामले में नीतीश सरकार के शुरुआती कुछ साल खास तौर पर उल्लेखनीय हैं. 2005 से 2010 के दौरान यानी नीतीश कुमार के पहले पूरे कार्यकाल में राज्य में 23,606 किलोमीटर सड़कें बनाई गईं, 1925 किलोमीटर सड़कों की मरम्मत की गई, मुख्यमंत्री पुल निर्माण योजना के तहत प्रदेश में 1671 पुल बनाए गए और 18457 नए प्राथमिक स्कूलों का निर्माण हुआ. 2005 के समय की बात करें तो बिहार में उस समय बुनियादी संरचना के नाम पर खस्ताहाल सड़कें और टूटी इमारतों वाले खंडहरनुमा स्कूल ही थे.
सुशासन (Good Governance): नीतीश कुमार खुद भी सुशासन पर बहुत जोर देते रहे हैं. वह पहली बार मुख्यमंत्री ही सुशासन के दम पर बन पाए थे. उस समय भाजपा और जदयू गठबंधन ने राज्य के लोगों को जंगलराज से मुक्ति दिलाकर सुशासन देने का वादा किया था. नीतीश कुमार के मुख्यमंत्री बनने से पहले बिहार में कानून व्यवस्था चरमराई हुई थी और भ्रष्टाचार का बोलबाला था. बिहार में उस समय भ्रष्टाचार का क्या आलम था, उसे समझने के लिए ट्रांसपैरेंसी इंटरनेशनल इंडिया (Transparency International India) की 2005 की एक स्टडी पर बना ये चार्ट देखिए...
बहरहाल बाद में हालात में सुधार आया. 2020-21 के लिए जारी गुड गवर्नेंस इंडेक्स में बिहार प्रमुख 18 राज्यों में 15वें स्थान पर और ग्रुप बी के राज्यों में छठे स्थान पर था. भारत सरकार के इस इंडेक्स में खराब रैंकिंग के बाद भी बिहार ने कुछ पैमानों पर शानदार परफॉर्म किया था. सरकारी बुनियादी संरचना और यूटिलिटी सेक्टर के मामले में बिहार पूरे देश में पहले स्थान पर था. इस सेक्टर में पानी, ग्रामीण सड़क और बिजली जैसी चीजें गिनी जाती हैं.
उद्योग और शहरीकरण (Industry & Urbanization): उद्योग और शहरीकरण के मोर्चे पर मामूली सुधार ही देखने को मिले हैं. 2005 में बिहार में शहरीकरण का स्तर महज 5-7 फीसदी के पास था. साल 2011 की जनगणना के अनुसार, बिहार में शहरीकरण का स्तर थोड़ा सुधरकर 11.3 फीसदी हुआ था. अभी भी इसमें बहुत सुधार नहीं हुआ है और फिलहाल राज्य में शहरीकरण का स्तर 15.3 फीसदी पर है. इसे अच्छा तो नहीं कहा जा सकता है लेकिन 2005 के जिस स्तर से शुरुआत की गई, उसके लिहाज से यह ठीक-ठाक सुधार है.