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सुप्रीम कोर्ट ने आपके लोन को NPA बनने से रोक दिया है, जानें-क्या होगा इससे फायदा?  

एक अंतरिम आदेश में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अगर अगस्त तक कोई बैंक लोन अकाउंट एनपीए यानी नॉन परफॉर्मिंग एसेट घोषित नहीं है तो उसे अगले दो महीने तक एनपीए न घोषित किया जाए. किसी बैंक लोन की किस्त या लोन 90 दिनों तक यानी तीन महीने तक नहीं चुकाया जाता तो NPA मान लिया जाता है.

मोरेटोरियम मामले में थोड़ी राहत मोरेटोरियम मामले में थोड़ी राहत
दिनेश अग्रहरि
  • नई दिल्ली ,
  • 05 सितंबर 2020,
  • अपडेटेड 6:09 PM IST
  • लोन मोरेटोरियम पर सुप्रीम कोर्ट में चल रही सुनवाई
  • सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में अंतरिम राहत दी है
  • दो महीने तक लोन को एनपीए नहीं घोषित करेंगे बैंक

लोन मोरेटोरियम (यानी लोन चुकाने की अवधि टालने) के  मामले में सुप्रीम कोर्ट ने लोगों को अंतरिम राहत दी है. गुरुवार को एक अंतरिम आदेश में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अगर अगस्त तक कोई बैंक लोन अकाउंट एनपीए यानी नॉन परफॉर्मिंग एसेट घोषित नहीं है तो उसे अगले दो महीने तक एनपीए न घोषित किया जाए. आइए जानते हैं कि इसका मतलब क्या है और इससे कर्जधारकों को क्या फायदा होगा? 

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क्या होता है एनपीए 

गौरतलब है कि भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) के नियमों के मुताबिक यदि किसी बैंक लोन की किस्त या लोन 90 दिनों तक यानी तीन महीने तक नहीं चुकाया जाता तो उसे नॉन परफॉर्मिंग एसेट (NPA) मान लिया जाता है. अन्य वित्तीय संस्थाओं के मामले में यह सीमा 120 दिन की होती है. यानी अगर किसी लोन की ईएमआई लगातार तीन महीने तक न जमा की जाए तो बैंक उसे एनपीए घोषित कर देते हैं. एनपीए का मतलब यह है कि बैंक उसे फंसा हुआ कर्ज मान लेते हैं. एनपीए बढ़ना किसी बैंक की सेहत के लिए अच्छा नहीं माना जाता. 

किसी लोन को ​एरियर यानी बकाया माना जाता है यदि उस पर ग्राहक मूलधन या ब्याज का भुगतान में चूक कर देता है. लेकिन यह चूक जब लगातार तीन महीने तक हो तो इसे एनपीए घोषित कर दिया जाता है. जितना  लोन एनपीए होता है उतना बैंक को अपने बहीखाते में प्रोविजनिंग करनी पड़ती है यानी उतनी राशि एक किनारे रखनी पड़ती है, उसे फंसा कर्ज मानते हुए.

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जब कई साल तक तक यह लोन नहीं मिलता तो बैंक उसे राइट-ऑफ कर देता है यानी बट्टा खाते में डाल देता है. इसकी 100 फीसदी प्रोविजनिंग कर दी जाती है. तब इसे पूरी तरह से बैंक के बहीखाते में नुकसान के रूप में दर्ज किया जाता है और यानी जितना कर्ज राइट-ऑफ हुआ उतना  प्रॉफिट में से घटा दिया गया. इसी वजह से जब नीरव मोदी, विजय माल्या जैसे किसी बड़े डिफॉल्टर का कर्ज राइट-ऑफ  किया जाता है तो बैंकों को उस साल भारी घाटा होता है.

क्या होता है NPA का कर्ज लेने वाले को नुकसान?

अगर किसी कर्जधारक के लोन को एनपीए घोषित कर दिया जाए तो ऐसे कर्जधारकों की सिबिल रेटिंग खराब हो जाती है. सिबिल रेटिंग खराब होना बहुत नुकसानदेह है, क्योंकि ऐसे कस्टमर्स को आगे किसी भी बैंक से किसी भी तरह का लोन मिलना काफी मुश्किल हो सकता है. यही नहीं आजकल तो लोन की ब्याज दरें भी सिबिल रेटिंग से जुड़ गई हैं. कर्ज लेने वाले की अच्छी सिबिल रेटिंग हुई तो बैंक आपसे कम ब्याज लेंगे और खराब हुई तो ज्यादा ब्याज दर. 

क्या होगा आपको फायदा 

आपने क्रेडिट कार्ड, होम लोन, व्हीकल लोन जैसा कोई टर्म लोन लिया है और कोरोना संकट में उसकी ईएमआई नहीं दे पा रहे तो 31 अगस्त तक के आपके इस डिफॉल्ट पर बैंक कोई कार्रवाई नहीं करेंगे और आपके लोन को NPA घोषित नहीं करेंगे. 31 अगस्त के बाद के डिफॉल्ट पर बैंक पेनाल्टी, ब्याज लगा सकते हैं, क्योंकि रिजर्व बैंक ने लोन मोरटोरियम की सुविधा खत्म कर दी है. लेकिन ऐसे लोन को ​अगले दो महीने तक यानी अक्टूबर तक एनपीए बैंक घोषित नहीं कर पायेंगे. हो सकता है कि सुप्रीम कोर्ट लोन मोरिटोरियम को आगे बढ़ाने या मोरेटोरियम पर ब्याज वसूली को बंद करने के बारे में कोई निर्णय दे तो आपको इसका भी लाभ आगे मिल सकता है. 

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तो मोरेटोरियम की कुछ सुविधा आगे बढ़ गई है 

तो आप यह मान सकते हैं कि मोरेटोरियम की वह सुविधा आगे बढ़ गई, जिसके तहत आपके लोन डिफॉल्ट करने पर उसे एनपीए नहीं माना जा रहा था. लेकिन जैसे पहले कई बैंकों में मोरेटोरियम की सुविधा अपने आप मिल जाती थी, वैसा अब नहीं होगा. बैंक से आपको लोन की किस्त चुकाने के लिए बार-बार मैसेज, फोन कॉल आ सकता है. इस दौरान आपसे लेट पेमेंट या ब्याज पर ब्याज भी लिया जा सकता है. लेकिन अभी तक बैंकों को इस बारे में स्पष्ट निर्देश नहीं मिले हैं, इसलिए आपको खुद अपने बैंक से बात कर सारी चीजें क्लीयर करनी होंगी. 

क्या है पूरा मामला?

लोन मोरेटोरियम मामले में अब सुनवाई अगले हफ्ते 10 सितंबर को जारी रहेगी. लोन मोरेटोरियम पर सरकार ने सोमवार को सुप्रीम कोर्ट में अपना हलफनामा दिया है. सरकार ने यह संकेत दिया है कि मोरेटोरियम को दो साल तक बढ़ाया जा सकता है. लेकिन यह कुछ ही सेक्टर्स को मिलेगा. 

कोविड-19 महामारी के मद्देनजर, आरबीआई ने 27 मार्च को एक सर्कुलर जारी किया था, जिसमें कर्जधारकों को तीन महीने की अवधि के लिए किश्तों के भुगतान के लिए मोहलत दी गई थी.  22 मई को, RBI ने 31 अगस्त तक के लिए तीन महीने की मोहलत की अवधि बढ़ाने की घोषणा की, नतीजतन लोन EMI पर ये मोहलत छह महीने के लिए बढ़ गई. 

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लेकिन सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल कर कहा गया कि बैंक EMI पर मोहलत देने के साथ- साथ ब्याज लगा रहे हैं जो कि गैरकानूनी है. ईएमआई का ज्यादातर हिस्सा ब्याज का ही होता है और इस पर भी बैंक ब्याज लगा रहे हैं. यानी ब्याज पर भी ब्याज लिया जा रहा है. इसी याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने RBI और केंद्र से जवाब मांगा 


 

 

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