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नोटबंदी और उसके बाद डिजिटल ट्रांजैक्शन को बढ़ावा देने के लिए अभियान चलाने के चार साल बीत चुके हैं. लेकिन हैरान करने वाली बात यह है कि इस दौरान देश में नकदी का इस्तेमाल कम नहीं हुआ और अब तो यह रिकॉर्ड लेवल पर पहुंच गया है.
चार साल पहले हुई थी नोटबंदी
गौरतलब है कि चार साल पहले 8 नवंबर, 2016 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अचानक रात 8 बजे राष्ट्र के नाम संबोधन में यह ऐलान किया था कि 500 और 1000 के नोट उसी दिन रात 12 बजे से अवैध हो जाएंगे, यानी इन नोटों का प्रचलन बंद कर दिया गया.
तब इस नोटबंदी के पक्ष में तर्क देते हुए कहा गया था कि इससे कालाधन पकड़ा जाएगा, कैश ट्रांजैक्शन कम होगा. सरकार ने इसके बाद ज्यादा से ज्यादा डिजिटल ट्रांजैक्शन को प्रोत्साहित करने के लिए कई अभियान चलाए. लेकिन आंकड़े कुछ और ही कहानी कहते हैं.
क्या कहते हैं आंकड़े
इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट के मुताबिक, नोटबंदी से पहले 4 नवंबर 2016 को देश में कुल करेंसी 17.97 लाख करोड़ रुपये की थी. नोटबंदी के तत्काल बाद के महीनों में इसमें भारी कमी जरूर आई, लेकिन अब यह फिर से नए रिकॉर्ड पर पहुंच गई है. नोटबंदी के बाद जनवरी 2017 में देश में करेंसी घटकर 7.8 लाख करोड़ रुपये की रह गई थी.
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कैशलेस सोसाइटी का क्या हुआ असर
इसके बाद सरकार और रिजर्व बैंक द्वारा लगातार नकदी के कम इस्तेमाल और 'कैशलेस सोसाइटी' और डिजिटल ट्रांजैक्शन ज्यादा से ज्यादा करने पर जोर दिया गया. लेकिन हाल के आंकड़े देखें तो 23 अक्टूबर 2020 के पखवाड़े में देश में करेंसी की कुल वैल्यू 26.19 लाख करोड़ रुपये की थी, जो अब तक का एक रिकॉर्ड है. यह 4 नवंबर 2016 के स्तर से 45.7 फीसदी या 8.22 लाख करोड़ रुपये ज्यादा है. सिर्फ 23 अक्टूबर वाले पखवाड़े में ही जनता के पास करेंसी में 10,441 करोड़ रुपये की बढ़त हुई है.
इस साल तेजी से बढ़ा चलन
खासकर कोरोना के दौर वाले पिछले 10 महीनों में देश में करेंसी का मूल्य और प्रसार काफी तेजी से बढ़ा है. 3 जनवरी 2020 को देश में करेंसी का कुल मूल्य 21.79 लाख करोड़ रुपये था, लेकिन 23 अक्टूबर, 2020 तक यह बढ़कर 26.19 लाख करोड़ रुपये हो गया.