
दुनिया के कई देशों के केंद्रीय बैंक अपनी ब्याज दरों में आक्रामक रूप से इजाफा कर रहे हैं. इस वजह से ग्लोबल मंदी की आशंका गहरा गई है. ब्रिटेन पहले से ही आर्थिक मंदी की चपेट में आ चुका है. अमेरिकी फेडरल रिजर्व भी ब्याज दरों को लेकर आक्रामक रुख अपना रहा है. इस वजह से अमेरिका पर मंदी के बादल मंडरा रहे हैं. ऐसे में क्या भारत 2023 में मंदी की चपेट में आएगा? इंडिया टुडे से खास बातचीत में अडानी ग्रुप के चेयरमैन गौतम अडानी ने मंदी पर पूछे गए सवाल के भी जवाब दिए.
मैं कभी उम्मीद नहीं छोड़ता
गौतम अडानी ने कहा कि मैं बहुत ही आशावादी हूं और कभी उम्मीद नहीं छोड़ता. पहले भी ऐसे बहुत सारे लोगों ने 2008 की वैश्विक मंदी के दौरान भारत में आर्थिक संकट की बात कही थी, लेकिन भारत ने इसे गलत साबित किया.
उन्होंने कहा कि मैं आशा करता हूं कि अगला बजट इन सब का ध्यान रखेगा. कैपिटल एक्सपेंडिचर, रोजगार और सामाजिक सुरक्षा पर ध्यान देकर इन विपरीत परिस्थितियों का सामना करके भारत पहले से ज्यादा मजबूत बनेगा.
मंदी के साये में कमाई
साल 2022 में जहां एक ओर दुनिया भर के अरबपतियों (Billionaires) की दौलत में भारी उलटफेर देखने को मिला और ज्यादातर की नेटवर्थ में कमी आई. ऐसे समय में भारतीय उद्योगपति गौतम अडानी (Gautam Adani) एकमात्र ऐसे उद्योगपति रहे जिन्होंने गिरावट के दौर और मंदी (Recession) के साये में भी जोरदार कमाई की. फिलहाल गौतम अडानी दुनिया के तीसरे सबसे रईस (World 3rd richest) इंसान हैं.
भारतीय इकोनॉमी में ताकत
गौतम अडानी की मानें तो भारत की इकोनॉमी तेजी से बढ़ रही है. आजादी के 75 सालों में से 58 साल लगे 1 ट्रिलियन डॉलर जीडीपी के लिए, 12 साल में 2 ट्रिलियन और सिर्फ 5 और सालों में 3 ट्रिलियन. लेकिन अब जिस तेजी से हम बढ़ रहे हैं मुझे लगता है कि अगले दशक में, हर 12 से 18 महीनों में हम जीडीपी में ट्रिलियन डॉलर जोड़ेंगे. मैं भारत की प्रगति और समृद्धि को लेकर बहुत आशावादी हूं. 2050 तक भारत में 160 करोड़ युवा होंगे. हमारे पास दुनिया की सबसे बड़ी मध्यमवर्गीय जनसंख्या होगी. ये सब देश को प्रगति की दिशा में ले जाते हुए भारत को 30 ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था बना देगा. ये शताब्दी भारत की प्रगति की है.
जब किसी भी देश के सकल घरेलू उत्पाद (GDP) में लगातार छह महीने यानी 2 तिमाही तक गिरावट आती है तो इसे अर्थशास्त्र में आर्थिक मंदी कहा जाता है. वहीं अगर अगर लगातार 2 तिमाही के दौरान किसी देश की जीडीपी में 10 फीसदी से ज्यादा की गिरावट आती है तो उसे डिप्रेशन कहा जाता है जो भयावह होता है. आर्थिक मंदी जब भी आती है, जनजीवन पर व्यापक असर छोड़ जाती है. इससे जीडीपी का साइज घट जाता है क्योंकि रोजमर्रा की चीजें महंगी हो जाती हैं. लोगों के खर्चे बढ़ जाते हैं.
बेहतर स्थिति में भारत
अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) ने कुछ साल पहले अपनी रिपोर्ट में कहा था कि दूसरे देशों की तुलना में भारत बेहतर स्थिति में है. नवंबर के महीने में भारत में खुदरा महंंगाई दर में भी गिरावट आई थी. हालांकि, इस महीने रिजर्व बैंक ने रेपो रेट में 0.35 फीसदी का इजाफा किया था.