
साल 2022 आर्थिक लिहाज से पूरी दुनिया के लिए बुरा साबित हो रहा है. कोरोना महामारी और चिप क्राइसिस से उबरने का प्रयास कर रही ग्लोबल इकोनॉमी को 2022 में एक के बाद एक झटके लगते रहे हैं. तेजी से बदलते जियो-पॉलिटिकल घटनाक्रमों ने रिकवरी की राह में रोड़े खड़े किए. हालात यह है कि अभी साल को खत्म होने में 3 महीने बचे हुए हैं, लेकिन दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था अमेरिका समेत कई देश आर्थिक मंदी की चपेट में आ चुके हैं. इसके साथ-साथ दशकों की रिकॉर्ड महंगाई और महंगे होते ब्याज भी चुनौतियां खड़े कर रहे हैं. हालांकि इन सबके बीच सितंबर के अंतिम सप्ताह में अर्थव्यवस्था के लिहाज से दो महत्वपूर्ण खबरें सामने आ रही हैं. भारत के लिहाज से देखें इनमें से एक परेशानियां और बढ़ाने वाली खबर है, जबकि दूसरी खबर भारत के लिए राहत प्रदान करने वाली है.
महंगाई ने बिगाड़ा अमेरिका का हाल
सबसे पहले हम बुरी खबर की बात कर लेते हैं. चूंकि अमेरिका दुनिया की सबसे बड़ी इकोनॉमी है, पूरी दुनिया की अर्थव्यवस्था पर अमेरिकी बाजार की चाल का असर होता है. अमेरिकी शेयर बाजार इस साल लगातार गिरता गया है. कुछेक मौकों की रिकवरी को छोड़ दं तो वॉल स्ट्रीट के लिए यह बिकवाली का साल साबित हो रहा है. पिछले सप्ताह शुक्रवार को भी यही कहानी दोहरा गई. दरअसल अमेरिकी सेंट्रल बैंक फेडरल रिजर्व के लगातार प्रयासों के बाद भी महंगाई कम नहीं हो पा रही है. करीब 4 दशकों के उच्च स्तर पर पहुंची महंगाई आम लोगों का जीना मुहाल कर रही है. हाल यह है कि अधिकांश अमेरिकी पेचेक-टू-पेचेक जीवन जी रहे हैं. इसका मतलब हुआ कि उन्हें जो भी कमाई हो रही है, वह जरूरतों को पूरा करने में ही खर्च हो जा रहा है और महीने के अंत में वे अगली सैलरी की राह ताकने को विवश हैं.
वॉल स्ट्रीट में मचा है इस तरह कोहराम
फेडरल रिजर्व ने पिछले सप्ताह फिर से ब्याज दर में 0.75 फीसदी की बढ़ोतरी की. ब्याज दर में आक्रामक तरीके से बढ़ोतरी इस कारण खतरनाक हो जाती है कि अमेरिकी अर्थव्यवस्था पहले से ही मंदी की चपेट में आ चुकी है. ऐसे में बाजार उम्मीद करता है कि रेट घटे या स्थिर रहे, लेकिन फेडरल रिजर्व भी महंगाई के चलते विवश है. इसके साथ ही फेडरल रिजर्व ने आने वाले समय में अमेरिकी अर्थव्यवस्था की ग्रोथ को लेकर भी नकारात्मक संकेत दिया. उसके बाद से वॉल स्ट्रीट के इंडेक्स फ्री फॉल में हैं. शुक्रवार को डाउ जोन्स इंडस्ट्रियल एवरेज (Dow Jones Indutrial Average) 1.62 फीसदी कमजोर होकर 29,590.41 अंक पर बंद हुआ था. टेक फोकस्ड इंडेक्स नास्डैक कंपोजिट (Nasdaq Composite) 1.80 फीसदी गिरकर 10,867.93 अंक पर रहा था. एसएंडपी500 (S&P 500) सूचकांक में 1.72 फीसदी की गिरावट देखने को मिली थी. इस तरह वॉल स्ट्रीट अपने नए 52-वीक लो लेवल पर आ गया है.
भारतीय बाजार में भी जमकर बिकवाली
अमेरिकी बाजार की गिरावट का असर भारतीय शेयर बाजार पर भी हो रहा है. दरअसल गहराती आर्थिक मंदी, रिकॉर्ड महंगाई, डॉलर की बढ़ती वैल्यू, बॉन्ड मार्केट की बिकवाली जैसे फैक्टर्स निवेशकों को डरा रहे हैं. इस कारण इन्वेस्टर्स सुरक्षित निवेश की ओर भाग रहे हैं. वे खासकर भारत जैसे उभरते बाजारों से पैसे निकाल रहे हैं और उसे डॉलर में झोंक रहे हैं. इसका परिणाम भी साफ दिख रहा है. आज भारतीय बाजार लगातार चौथे दिन भारी गिरावट दर्ज की गई है, निफ्टी 17 हजार के करीब पहुंच गया है.इससे पहले पिछले सप्ताह के आखिरी दिन 23 सितंबर को भी बाजार में बड़ी गिरावट आई थी. शुक्रवार को कारोबार समाप्त होने के बाद सेंसेक्स 1,020.80 अंक (1.73 फीसदी) गिरकर 58,098.92 अंक पर बंद हुआ था. निफ्टी 302.45 अंक (1.72 फीसदी) के नुकसान के साथ 17,327.35 अंक पर रहा था. दोपहर के कारोबार में सेंसेक्स और निफ्टी एक-एक फीसदी से ज्यादा के नुकसान में थे. इस साल अब तक भारतीय बाजार करीब 03 फीसदी के नुकसान में हैं.
राहत देने लगा है कच्चे तेल का भाव
अच्छी खबर की बात करें तो कुछ महीने पहले खजाने में सेंध लगा रहे कच्चे तेल की उबाल नरम पड़ी है, जो भारत के लिए राहत की बात है. भारत उन देशों में शामिल है, जो अपनी पेट्रोलियम जरूरतों को पूरा करने के लिए आयात पर निर्भर हैं. इस कारण कच्चे तेल की कीमत भारत के खजाने पर सीध्धा असर डालती है. चालू खाता घाटा से लेकर व्यापार घाटा तक पर कच्चे तेल का बड़ा असर होता है. आज ब्रेंट क्रूड करीब 02 फीसदी गिरकर 84 डॉलर प्रति बैरल के पास है. वहीं वेस्ट टेक्सास इंटरमीडिएट क्रूड शुक्रवार को 6 फीसदी से ज्यादा टूटकर 80 डॉलर प्रति बैरल के नीचे आ गया था. जनवरी 2022 के बाद ऐसा पहली बार हुआ है, जब क्रूड ऑयल 80 डॉलर के स्तर से नीचे आया है.
फरवरी में रूस और यूक्रेन की जंग शुरू होने के बाद से कच्चा तेल लगातार चढ़ रहा था. अब मंदी की आशंका और 20 साल के उच्च स्तर पर पहुंचे डॉलर ने इसके भाव को गिरा दिया है. सस्ता कच्चा तेल भारत के लिए तेजी से घटते विदेशी मुद्रा भंडार को बचाने में मददगार साबित हो सकता है. इसके साथ ही अगर कच्चा तेल सस्ता होता है तो भारत के लोगों को डीजल और पेट्रोल समेत सस्ती सीएनजी-पीएनजी का भी लाभ मिल सकता है.
कमजोर रुपया बढ़ा रहा है चिंता
हालांकि कमजोर रुपया इस मोर्चे पर भारत के लिए चिंता की बात है. सोमवार के कारोबार में रुपया शुरुआत में ही 44 पैसे गिरकर डॉलर के मुकाबले 81.53 पर आ गया था. इससे पहले पिछले सप्ताह रुपये ने पहली बार डॉलर के मुकाबले 81 के लेवल को पार किया था. रिजर्व बैंक की कवायद भी रुपये को नहीं बचा पा रही है. ऐसे में क्रूड ऑयल के सस्ता होने से मिली राहत का बड़ा हिस्सा कमजोर रुपये के कारण गायब हो सकता है. हालांकि अच्छी बात यह है कि अन्य प्रमुख मुद्राओं की तुलना में रुपये ने फिर भी ठीक परफॉर्म किया है. डॉलर इस साल पहली बार यूरो को मात दे चुका है और अब पाउंड की वैल्यू की बराबरी कर रहा है. देखना होगा कि आने वाले समय में रुपया किस तरह परफॉर्म करता है. जानकारों का कहना है कि रुपया डॉलर के मुकाबले 82 के लेवल तक गिर सकता है.