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शौक बड़ी चीज है! अरबपति के हाथ में 5 रुपये वाला Parle-G और चाय का कप...

IndiGo MD Rahul Bhatia: पारले-जी भारत में घर-घर में जाना पहचाना बिस्किट ब्रांड है. इसके 5 रुपये के पैकेट की देश में खूब बिक्री होती है. बता दें, साल 2020 में लॉकडाउन के दौरान पारले-जी की रिकॉर्ड बिक्री हुई थी.

पारले-जी का आनंद लेते बिजनेसमैन राहुल भाटिया (Photo: Twitter) पारले-जी का आनंद लेते बिजनेसमैन राहुल भाटिया (Photo: Twitter)
aajtak.in
  • नई दिल्ली,
  • 25 जुलाई 2022,
  • अपडेटेड 12:22 PM IST
  • 5 वाली पारले के साथ राहुल भाटिया की तस्वीर वायरल
  • खास स्वाद की वजह से पारले-जी की मजबूत पकड़

भले ही समय के साथ पारले-जी (Parle-G) बिस्किट की पैकेज की साइज और गिनती कम होती गई. लेकिन जो नहीं बदला वो है टेस्ट. टेस्ट की वजह से ही Parle-G ने घर-घर पहचान बनाई है. गरीब से लेकर अमीर तक इसके टेस्ट के दीवाने हैं. इसलिए कंपनी ने भी पैकेट साइज कम दी, लेकिन कीमत अभी भी केवल 5 रुपये. 

दरअसल, सोशल मीडिया में एक वीडियो वायरल हो रहा है. जिसमें इंडिगो एयरलाइंस के को-फाउंडर और एमडी राहुल भाटिया हवाई सफर के दौरान चाय और 5 रुपये वाली Parle-G का आनंद लेते नजर आ रहे हैं.

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स्वाद से समझौता नहीं 

उद्योगपति राहुल भाटिया Parle-G बिस्किट को चाय में डुबोकर खा रहे हैं, और उनके सामने टैबल पर 5 रुपये वाली Parle-G बिस्किट की पैकेट रखी है. दरअसल, इस तस्वीर से पारले-जी की लोकप्रियता का अंदाजा लगता है. गरीब के लिए तो पारले-जी सफर का साथी है ही, साथ-साथ ही अमीर भी इसके स्वाद के कायल हैं. 

वैसे सादगी के लिए राहुल भाटिया जाने जाते हैं. फोर्ब्स के मुताबिक, राहुल भाटिया और उनके पिता कपिल भाटिया की रियल टाइम नेटवर्थ लगभग 4.7 अरब डॉलर (लगभग 38,000 करोड़ रुपये) है. 
 
गौरतलब है कि पारले-जी भारत में घर-घर में जाना पहचाना बिस्किट ब्रांड है. इसके 5 रुपये के पैकेट की देश में खूब बिक्री होती है. बता दें, साल 2020 में लॉकडाउन के दौरान पारले-जी की रिकॉर्ड बिक्री हुई थी. इस दौरान पारले-जी बिस्किट की इतनी अधिक बिक्री हुई कि पिछले 82 सालों का रिकॉर्ड टूट गया.

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पारले के सफर पर एक नजर 
पारले के सफर की शुरुआत साल 1929 से हुई थी. ये वो वक्‍त था, जब ब्रिटिश शासन के खिलाफ देश में स्‍वदेशी आंदोलन ने रफ्तार पकड़ ली थी. स्वदेशी आंदोलन, महात्मा गांधी के स्वतंत्रता आंदोलन का केन्द्र बिन्दु था. उन्होंने इसे स्वराज की आत्मा भी कहा था. इसके जरिए ब्रिटिश हुकूमत के माल का बहिष्‍कार किया जाता था और खुद की चीजों के निर्माण पर जोर दिया जा रहा था. 

इसी सोच के साथ 1929 में मोहनलाल दयाल ने मुंबई के विले पार्ले में 12 लोगों के साथ मिलकर पहली फैक्‍ट्री लगाई थी. कहते हैं कि इस कस्‍बे के नाम से ही कंपनी को 'पारले' नाम दिया गया. पारले ने पहली बार 1938 में पारले-ग्‍लूको (पारले ग्‍लूकोज) नाम से बिस्किट का उत्पादन शुरू किया था. 1940- 50 के दशक में कंपनी ने भारत के पहले नमकीन बिस्‍किट 'मोनाको' को पेश किया. पारले ने 1956 में एक खास स्‍नैक्‍स बनाया, जो पनीर कट की तरह होता है.

 

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