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अगस्त में लेबर की कमी रही बड़ी चुनौती, छंटनी के बीच मैन्युफैक्चरिंग में ग्रोथ

अनलॉक के बीच भारत की मैन्युफैक्चरिंग गतिविधियों में अगस्त में ग्रोथ दर्ज की गई है. वहीं, लेबर की कमी सबसे बड़ी चुनौती रही.

आर्थिक गतिविधियां एक बार फिर ट्रैक पर आर्थिक गतिविधियां एक बार फिर ट्रैक पर
aajtak.in
  • नई दिल्ली,
  • 01 सितंबर 2020,
  • अपडेटेड 3:09 PM IST
  • पीएमआई जुलाई में 46 अंक पर था
  • पीएमआई अगस्त में 52 अंक पर रहा
  • मैन्युफैक्चरिंग में सुधार के हैं संकेत

कोरोना संकट काल के बीच देश अनलॉक के दौर से गुजर रहा है. इस अनलॉक में आर्थिक गतिविधियां एक बार फिर ट्रैक पर लौटने लगी हैं. यही वजह है कि अगस्त की मैन्युफैक्चरिंग गतिविधियों में इजाफा हुआ है. हालांकि, इस दौरान लेबर की कमी समेत कई चुनौतियों का भी सामना करना पड़ा है. 

क्या कहते हैं आंकड़े
आईएचएस मार्किट इंडिया का विनिर्माण खरीद प्रबंधक सूचकांक (पीएमआई) अगस्त में बढ़कर 52 हो गया है. यह जुलाई में 46 पर था. इससे मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर के परिचालन में सुधार का संकेत मिलता है. इससे पहले लगातार चार महीनों तक मैन्युफैक्चरिंग गतिविधियों में गिरावट आई थी. आपको बता दें कि लगातार 32 माह तक वृद्धि दर्ज करने के बाद अप्रैल में यह इंडेक्स नीचे चला गया था. पीएमआई के 50 से ऊपर होने का मतलब गतिविधियों में सुधार से है. अगर यह 50 से नीचे रहता है, तो इसका आशय है कि गतिविधियां घटी हैं.

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सुधार लेकिन नौकरियों में कटौती जारी 
आईएचएस मार्किट की अर्थशास्त्री श्रेया पटेल ने कहा, ‘‘अगस्त के आंकड़े भारत के मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर की सेहत में सुधार को दर्शाते हैं. घरेलू बाजारों की मांग बढ़ने से उत्पादन में सुधार हुआ है.’’ हालांकि, नए ऑर्डर बढ़ने के बावजूद मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर में नौकरियों में कटौती का सिलसिला जारी है.’  पटेल ने आगे कहा, ‘‘हालांकि, अगस्त में सभी कुछ सकारात्मक नहीं था. कोविड-19 की वजह से पैदा हुई अड़चनों के चलते आपूर्ति का समय बढ़ गया है. इस बीच, क्षमता पर दबाव के बावजूद नौकरियों में गिरावट जारी है. 

उपयुक्त श्रमिक नहीं मिल पा रहे
कंपनियों को अपने कामकाज के लिए उपयुक्त श्रमिक नहीं मिल पा रहे हैं. सर्वे में कहा गया है कि नए ऑर्डरों पर विदेशी निर्यात में कमी का असर पड़ा है. कंपनियों का कहना है कि विदेशी बाजारों की मांग कमजोर है. हालांकि, भारतीय मैन्युफैक्चरर को मिले नए ऑर्डरों में फरवरी से सुधार आ रहा है.

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पटेल ने कहा कि मूल्य के मोर्चे पर आपूर्ति में कमी और परिवहन संबंधी विलंब के चलते कच्चे माल की लागत बढ़ी है. इससे अगस्त में उत्पादन की लागत बढ़ी है. सर्वे में कहा गया है कि भारतीय मैन्युफैक्चरर अगले 12 महीनों को लेकर आशान्वित हैं. मैन्युफैचरर्स को उम्मीद है कि इस दौरान कोविड-19 का दौर समाप्त हो जाएगा और ग्राहकों की मांग सुधरेगी.

 

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