
टेक सेक्टर में भारत की तीसरी सबसे बड़ी सॉप्टवेयर कंपनी एचसीएल टेक्नोलॉजिस (HCL Technologies) ने वैश्विक स्तर पर बड़ी छंटनी की है. इसके तहत 350 कर्मचारियों को बाहर का रास्ता दिखाया गया है. निकाले गए कर्मचारी ग्वाटेमाला, फिलीपींस और भारत सहित कुछ देशों से हैं.
30 सितंबर होगा आखिरी दिन
HCL Technologies से निकाले गए इन कर्मचारियों का कंपनी में आखिरी दिन 30 सितंबर होगा. इस बड़ी भारतीय कंपनी की ओर से उठाए गए कदम ने इस सेक्टर में मंदी (Recession) की चिंताओं को बढ़ा दिया है. रिपोर्ट के मुताबिक, जिन कर्मचारियों को कंपनी से बाहर का रास्ता दिखाया गया है, वो कंपनी की क्लाइंट माइक्रोसॉफ्ट (Microsoft) के न्यूज रिलेटेड प्रोडक्ट्स पर काम कर रहे थे.
HCL ने नहीं की कोई टिप्पणी
बिजनेस टुडे के मुताबिक, वैश्विक मुद्रास्फीति के बीच बढ़ती चिंताओं के बीच एचसीएल की ओर से उठाए गए इस कदम से आईटी सेक्टर के लिए आगे मुश्किल हालात के संकेत मिल रहे हैं. मनीकंट्रोल की रिपोर्ट में कहा गया है कि इस मामले से जुड़े लोगों की मानें तो कर्मचारियों को हाल ही में हुई एक टाउन हॉल मीटिंग में इस छंटनी के बारे में बताया गया था. हालांकि, इस बड़ी छंटनी के बारे में एचसीएल की ओर से अभी कोई आधिकारिक टिप्पणी नहीं की गई है.
आईटी सेक्टर पर मुद्रास्फीति का दबाव
रिपोर्ट में कहा गया कि एचसीएल टेक्नोलॉजीज (HCL Technologies) अकेली ऐसी भारतीय आईटी कंपनी नहीं है, जो दुनिया भर से व्यापक आर्थिक दबावों के कारण संघर्ष कर रही है. वैश्विक मुद्रास्फीति की बढ़ती चिंताओं ने अन्य भारतीय आईटी दिग्गजों जैसे टीसीएस (TCS), विप्रो (Wipro) और इंफोसिस (Infosys) के लिए भी परेशानी पैदा कर दी है. लागत बढ़ने के कारण इन कंपनियों को मार्जिन के दबाव का सामना करना पड़ रहा है.
विशेषज्ञों ने बताया ये बड़ा कारण
प्रोफिशिएंट इक्विटीज के संस्थापक और निदेशक मनोज डालमिया (Manoj Dalmia) ने बिजनेस टुडे को बताया कि 2,970 रुपये का डाउनसाइड टारगेट के साथ HCL की संरचना अन्य भारतीय आईटी कंपनियों की तुलना में थोड़ी बेहतर है. लेकिन यह एक साइडवेज अस्थिर चरण से गुजर सकता है. इसके अलावा Tips2Trades की को-फाउंडर और ट्रेनर पवित्रा शेट्टी (Pavitraa Shetty) का मानना है कि यह मामला कमजोर वैश्विक आर्थिक संकेतों के कारण देखने को मिल रहा है.