
आईटी इंडस्ट्री (IT Industry) में इन दिनों 'मूनलाइटिंग (Moonlighting)' टर्म चर्चा का केंद्र बना हुआ है. दिग्गज आईटी कंपनियों के सीईओ समेत सीनियर एक्जीक्यूटिवस तक इस बहस में कूद पड़े हैं. एक तरफ विप्रो (Wipro) के एक्जीक्यूटिव चेयरमैन रिशद प्रेमजी (Rishad Premji) और टीसीएस (TCS) के एक्जीक्यूटिव डायरेक्टर एन गणपति सुब्रमण्यम (N Ganapathi Subramaniam) जैसे लोग हैं, जिनका मानना है कि मूनलाइटिंग अनैतिक है. वहीं दूसरे खेमे में इंफोसिस (Infosys) के पूर्व डाइरेक्टर मोहनदास पई (Mohandas Pai) और टेक महिंद्रा (Tech Mahindra) के चीफ एक्जीक्यूटिव ऑफिसर सीपी गुरनानी (CP Gurnani) जैसे दिग्गज हैं, जो मूनलाइटिंग को गलत नहीं मानते.
आज तक की सहयोगी वेबसाइट बिजनेस टुडे ने इस बारे में टॉप आईटी कंपनियों के 'जॉब कॉन्ट्रैक्ट' की छानबीन की. पड़ताल का कारण यह पता करना था कि कंपनियों के करार में मूनलाइटिंग यानी 'किसी एक कंपनी में फुल टाइम जॉब करते हुए अलग से किसी अन्य कंपनी या पार्टी का कोई फ्रीलांस काम करने' के बारे में क्या कहा गया है...
टीसीएस (TCS): भारत की सबसे बड़ी आईटी कंपनी टीसीएस अपने कर्मचरियों को कोई दूसरा काम करने की इजाजत नहीं देती है. अगर कोई कर्मचारी ऐसा करना चाहता है, तो उसका एकमात्र तरीका है कि वह कंपनी से पहले से ही लिखित में इसकी मंजूरी ले. अगर कोई कर्मचारी ऐसा नहीं कर पाता है तो उसकी नौकरी चली जाएगी. कंपनी के सीईओ एवं एक्जीक्यूटिव डायरेक्टर गणपति सुब्रमण्यम ने हाल में बिजनेस टुडे के एक कार्यक्रम में कहा था कि मूनलाइटिंग से तत्काल तो फायदा मिल जाता है, लेकिन बाद में इससे कर्मचारियों को नुकसान होता है.
इंफोसिस (Infosys): देश की दूसरी सबसे बड़ी आईटी कंपनी इंफोसिस भी मूनलाइटिंग की इजाजत नहीं देती है. कंपनी ने नियम व शर्तों में साफ-साफ कहा है, 'आप इस बात पर सहमत हैं कि बिना इंफोसिस की सहमति के आप कोई फुल टाइम या पार्ट टाइम जॉब नहीं करेंगे, किसी भी प्रकार के बिजनेस में सक्रिय संगठनों में डायरेक्टर या पार्टनर नहीं बनेंगे.' हालांकि कंपनी के पूर्व निदेशक मोहनदास पई मूनलाइटिंग को बिल्कुल भी गलत नहीं मानते हैं. उनका कहना है कि कंपनी के काम के घंटों के बाद कोई कर्मचारी क्या करता है, यह उसकी मर्जी है. वहीं इंफोसिस के कांट्रैक्ट में एक शर्त ये भी है कि उसकी नौकरी छोड़ने के बाद अगले 06 महीने तक कर्मचारी प्रतिस्पर्धी कंपनियों के साथ काम नहीं कर सकते हैं. इन कंपनियों में टीसीएस, एसेंचर, आईबीएम, कॉग्निजेंट और विप्रो का नाम शामिल है.
विप्रो (Wipro): विप्रो के अप्वाइंटमेंट लेटर में साफ-साफ कहा गया है कि कर्मचारियों को पूरी तरह से कंपनी के लिए ही काम करना होगा. अगर कोई कर्मचारी विप्रो के काम के अलावा कुछ करना चाहता है तो उसे अपने बिजनेस यूनिट हेड से मंजूरी लेनी होगी. यह नौकरी की अनिवार्य शर्त है. विप्रो के एक्जीक्यूटिव चेयरमैन ने तो इस बहस को सोशल मीडिया पर काफी हवा दे दी थी. उन्होंने न सिर्फ इसे गलत बताया था बल्कि कंपनी के साथ चीटिंग करार दिया था.
टेक महिंद्रा (Tech Mahindra): टेक महिंद्रा के एम्पलॉयमेंट एग्रीमेंट की मानें तो बिना कंपनी की मंजूरी के कोई दूसरा काम उठा लेने का परिणाम बिना नोटिस के नौकरी से निकाला जाना हो सकता है. हालांकि कंपनी मैनेजिंग डायरेक्टर एवं चीफ एक्सीक्यूटिव ऑफिसर सीपी गुरनानी की राय इस बारे में काफी उदार है. उन्होंने बिजनेस टुडे के एक हालिया कार्यक्रम में कहा था कि उन्हें इससे कोई दिक्कत नहीं है. उन्होंने तो यहां तक कहा था कि वह इस बारे में पॉलिसी बनाना पसंद करेंगे. बकौल गुरनानी, अगर कोई कर्मचारी अपने हिस्से का काम निपटा दे रहा है तो वह अपनी कमाई बढ़ाने के लिए दूसरा काम कर सकता है, बस वह काम फ्रॉड नहीं होना चाहिए.
एचसीएल टेक (HCL Tech): यह आईटी कंपनी भी अपने कर्मचारियों को कोई दूसरा काम करने से मना करती है. कंपनी के कांट्रैक्ट में साफ शब्दों में कहा गया है कि अगर एचसीएल टेक का कोई कर्मचारी किसी अन्य कंपनी या संगठन के लिए कोई काम करता है तो उसकी नौकरी जा सकती है, भले ही दूसरी कंपनी या संगठन किसी अन्य सेक्टर की ही क्यों न हो. एचसीएल टेक ने भी इसे नौकरी के लिए अनिवार्य शर्त बताया है.