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Jamsetji Tata Birth Anniversary: जमशेदजी ने ऐसे की थी Tata कंपनी की शुरुआत, जानें- क्या था पहला कारोबार?

Jamsetji Tata Birth Anniversary Special: Tata Group के संस्थापक जमशेदजी टाटा (Jamsetji Tata) का ये 183वां जन्मदिन है. भारतीय उद्योग जगत के ‘भीष्म पितामह’ के तौर पर पहचाने जाने वाले जमशेदजी टाटा ने अपने जीवनकाल में भारत को नई पहचान देने वाले कई काम किए.

Tata Group के संस्थापक जमशेदजी टाटा (Photo : Tata Group) Tata Group के संस्थापक जमशेदजी टाटा (Photo : Tata Group)
aajtak.in
  • नई दिल्ली,
  • 03 मार्च 2022,
  • अपडेटेड 8:20 AM IST
  • शुरू की थी Tata Line नाम से जहाज कंपनी
  • दूरदर्शी था नागपुर में कपड़ा मिल लगाने का प्लान
  • मैसूर सिल्क से भी जमशेदजी टाटा का वास्ता

Tata Group के संस्थापक जमशेदजी टाटा (Jamsetji Tata) को हम सभी Tata Steel, Taj Hotel और IISC Bangalore जैसे ऑर्गनाइजेशन की स्थापना करने के लिए जानते हैं. उस समय ये सभी अपने समय से बहुत आगे थे. साथ ही इन सभी ने भारत को दुनिया में एक नई पहचान भी दिलाई, लेकिन क्या आप जानते हैं कि इनसे पहले भी जमशेदजी टाटा ने कई तरह के कारोबारों में हाथ आजमाया था, जानें क्या था उनका पहला कारोबार...

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21,000 रुपये के निवेश से शुरू की ट्रेडिंग कंपनी

जमशेदजी टाटा का जन्म 3 मार्च 1839 को गुजरात के नवसारी में हुआ था. वही नवसारी जो आज दांडी बीच के लिए जाना जाता है. उनका पारसी परिवार लंबे समय से पुजारी का काम करता था, लेकिन जमशेदजी के पिता नुसेरवानजी टाटा (Nusserwanji Tata) अपने परिवार में पहले व्यक्ति थे जिन्होंने व्यापार में हाथ आजमाया. जमशेदजी टाटा ने 14 वर्ष की उम्र में अपने पिता के साथ मुंबई (तब के बंबई) में हाथ बंटाना शुरू किया और वहीं ग्रेजुएशन तक की पढ़ाई की और ग्रेजुएट होने के करीब 10 साल बाद 1868 में अपना पहला वेंचर शुरू किया.

तब जमशेदजी टाटा ने सिर्फ 21,000 रुपये के निवेश से ट्रेडिंग कंपनी शुरू की थी. लेकिन जल्द ही जमशेदजी टाटा इंग्लैंड चले गए और वहां से कपड़ा व्यापार (Tata Textile Business) की समझ लेकर लौटे.

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दूरदर्शी था नागपुर में कपड़ा मिल लगाने का प्लान

इंग्लैंड से लौटने के बाद 1869 में ही जमशेदजी टाटा ने कपड़े के व्यापार में हाथ आजमाया. उन्होंने बंबई के इंडस्ट्रियल हब चिंचपोकली में एक दिवालिया हो चुकी तेल मिल को खरीदा और इसका नाम बदलकर एलेक्जेंड्रा मिल (Alexandra Mill) मिल रख दिया. इस मिल को उन्होंने एक कॉटन मिल में बदला और दो साल बाद ही एक अच्छे प्रॉफिट के साथ इसे एक स्थानीय व्यापारी को बेच दिया. वो फिर इंग्लैंड गए और लैंकशायर के कपड़ा व्यापार को गहराई से समझा. उस समय बंबई कपड़ा मिलों की सबसे पसंदीदा जगह थी, लेकिन जमशेदजी टाटा ने अपने प्रॉफिट को बढ़ाने के लिए दूरदर्शी सोच को अपनाया. उन्होंने 3 बिंदुओं के आधार पर 1.5 लाख रुपये के निवेश से 1874 में महाराष्ट्र के नागपुर में सेंट्रल इंडिया स्पिनिंग, वीविंग और मैन्युफैक्चरिंग कंपनी की शुरुआत की. नागपुर को चुनने 3 मुख्य वजह इसका कपास उत्पादक क्षेत्र से पास होना, रेलवे जंक्शन तक आसान पहुंच होना और पानी एवं ईंधन की अच्छी आपूर्ति होना थी.

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शुरू की थी Tata Line नाम से जहाज कंपनी

जमशेदजी टाटा ने अपने कपड़ा व्यापार का सस्ता एक्सपोर्ट करने के लिए 1873 में एक शिपिंग कंपनी भी शुरू की थी. इसके लिए उन्होंने लंदन से Annie Barrow नाम के एक जहाज को 1,050 पाउंड प्रति महीने के किराये पर लिया. जापान की Nippon Yusen Kaisha Line के साथ उन्होंने इसके लिए Tata Line की शुरुआत की हालांकि ये कारोबार लंबे समय तक नहीं चला.

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मैसूर सिल्क से भी जमशेदजी का वास्ता

इतना ही नहीं जमशेदजी टाटा ने देश में सिल्क उद्योग को बढ़ावा देने के लिए भी काम किया. 1893 में जमशेदजी टाटा जापान की यात्रा पर गए, जहां उन्हें वैज्ञानिक तरीके से रेशम कीट पालन की पद्धति का पता चला. जब वह भारत लौटे तो उन्होंने तब के मैसूर स्टेट में इस कारोबार को फैलाया. इसके लिए उन्होंने वहां आवयश्यक जमीन खरीदी और सब्सडाइज तरीके से रेशम कीट का पालन शुरू किया.  

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वहीं जमशेदजी टाटा ने आम और कोल्ड स्टोरेज के कारोबार में भी हाथ आजमाया. टाटा की वेबसाइट के मुताबिक टाटा ग्रुप ने देश को पहली बड़ी स्टील कंपनी, पहला लग्जरी होटल, पहली देसी कंज्यूमर गुड्स कंपनी दी. देश की पहली एविएशन कंपनी टाटा एयरलाइंस की शुरुआत भी की, जो बाद में Air India हो गई. समूह की टाटा मोटर्स पहले रेलवे इंजन बनाया करती थी और देश की पहली एसयूवी Tata Sierra भी इसी ने बनाई थी. 

जमशेदजी टाटा को कुछ वक्त पहले हुरुन ने अपनी रिपोर्ट में बीते 100 साल में हुआ सबसे बड़ा परोपकारी व्यक्ति बताया था. हुरुन (Hurun) रिपोर्ट और एडेलगिव फाउंडेशन द्वारा तैयार शीर्ष 50 दानदाताओं की सूची में भारत के दिग्गज उद्योगपति जमशेदजी टाटा एक सदी में 102 अरब अमेरिकी डॉलर (मौजूदा मूल्य के हिसाब से करीब 7.57 लाख करोड़ रुपये) दान देकर दुनिया के सबसे बड़े परोपकारी रहे हैं.

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