
बीते 7 नवंबर को सुप्रीम कोर्ट ने एक एयरलाइन कंपनी को लिक्विडेट करने या संपत्ति बेचने का आदेश दिया था. सर्वोच्च अदालत ने एनसीएलएटी के फैसले को खारिज करते हुए SBI और बाकी क्रेडिटर्स के हक में फैसला सुनाया. अब सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले के बाद जेट एयरवेज (Jet Airways) पूरी तरह से खत्म हो जाएगी, जबकि कभी ये देश की सबसे अच्छी एयरलाइन मानी जाती थी. फिर ये जानने की दिलचस्पी और बढ़ जाती है कि आखिर ऐसा क्या हुआ कि ये बर्बाद हो गई?
पंजाब के संगरूर में एक साधारण परिवार से आने वाले नरेश गोयल ने जेट एयरवेज की शुरुआत की थी. नरेश गोयल ने अपने चाचा की ट्रैवेल एजेंसी में कैशियर की नौकरी करने से लेकर देश की सफल एयरलाइन की स्थापना तक का सफर तय किया. उन्होंने पटियाला के एक कॉलेज में कॉमर्स की पढ़ाई की थी. इसके बाद ही वे ट्रैवेल एजेंट के तौर पर काम करने लगे थे. हालांकि उनके सपने ऊंचे थे, फिर क्या उन्होंने विदेशी एयरलाइनों से संपर्क बनाना शुरू कर दिया.
एयर टैक्सी से शुरुआत
जेट एयरवेज ने 1993 में एक एयर टैक्सी सेवा ऑपरेटर के रूप में शुरुआत की और देखते ही देखते टॉप कैटेगरी की अंतर्राष्ट्रीय सेवाएं प्रदान करने वाली भारत की सबसे बड़ी एयरलाइन बन गई. इसकी शुरुआत कुवैत एयरवेज और गल्फ एयर के साथ 20% इक्विटी साझेदारी से हुई, दोनों बाद में बाहर निकल गए. इसका विदेशी परिचालन 2004 में चेन्नई-कोलंबो मार्ग से शुरू हुआ.
अपने चरम पर इसके पास 120 से अधिक विमान, लगभग 1,300 पायलट और कुल मिलाकर लगभग 20,000 कर्मचारी थे. इसका सफल आईपीओ 2005 में आया था. कुछ भी गलत नहीं हो रहा था, लेकिन फिर, कुछ बड़ा हुआ और इस कगार पर पहुंच गई. गार्जियन ने 2006 में नरेश गोयल पर लिखा था कि वे उस समय सफलता के शिखर पर थे.
कैसे शुरु हुआ संकट?
कई पर्यवेक्षकों का तर्क है कि जेट एयरवेज पर संकट साल 2007 में आया. जो गोयल द्वारा प्रतिद्वंद्वी एयर सहारा को 1,450 करोड़ रुपये में खरीदने के साथ शुरू हुईं. गोयल ने किंगफिशर एयरलाइंस और कम किराए वाली एयरलाइंस एयर डेक्कन, इंडिगो और स्पाइसजेट से मुकाबला करने के लिए सहारा को खरीदा था, लेकिन इस डील ने जेट की प्रतिस्पर्धा से प्रभावी ढंग से निपटने के लिए अतिरिक्त पैसे खर्च करने की क्षमता को कम कर दिया. जेट ने विमान ऑर्डर देने के बाद बची हुई IPO की राशि को यूं ही बर्बाद कर दिया.
ईटी की रिपोर्ट के मुताबिक, छोटी से छोटी बाधा ने भी जेट को बहुत प्रभावित किया. पिछले कुछ सालों में यह अधिक से अधिक बाहरी सकारात्मक कारकों जैसे कि किराए में बढ़ोतरी और ईंधन की कीमतों में कमी पर निर्भर रहा है. किंगफिशर ने 2012 में परिचालन बंद कर दिया. इंडिगो ने चुपचाप जेट को उसके नेतृत्व की स्थिति से हटा दिया. फिर दूसरी बड़ी गलती हुई. गोयल ने 10 चौड़े बॉडी वाले एयरबस ए330 और बोइंग 777 विमानों का मिश्रित बेड़ा खरीदने का फैसला किया. इसे महलों की तरह डिजाइन किया गया 400 की जगह 308 सीटें बनाई गईं. किसी की भी सलाह नहीं मानी और कोई सही प्लानिंग भी नहीं की. जिसका नतीजा रहा कि वजन बढ़ गया और लागत भी बढ़ गई.
2019 में बंद हो गई एयरलाइन
साल 2008 से जेट को अपने वाइड-बॉडीज का 70% तक तुर्की एयरलाइंस , ओमान एयर, थाई एयरवेज, गल्फ एयर और एतिहाद जैसी कंपनियों को पट्टे पर देना पड़ा. धीरे-धीरे करके एयरलाइन पर इतना कर्ज बढ़ गया कि वित्तीय संकटों के कारण इसे अप्रैल 2019 में बंद कर दिया गया. इसके पास पैसे खत्म हो गए और ये अपना कर्ज नहीं दे पा रही थी. यहां तक की कर्मचारियों को सैलरी देने भर के भी पैसे नहीं बचे थे. दिवालिया प्रक्रिया के इंतजार में 20 हजार से ज्यादा नौकरियां चली गईं.
कैसे अर्श से फर्श पर आई ये कंपनी
साल 2019 तक संकट बढ़ने के कारण इसे बंद कर दिया गया. तब जेट एयरवेज का कर्ज 7,500 करोड़ रुपये से ज्यादा हो गया था. फिर इसके बाद एसबीआई और अन्य केडिटर्स एयरलाइन को दिवालिया कार्यवाही के लिए NCLT के पास गए. जिसके बाद कलरॉक कैपिटल और मुरारी लाल जालान जैसे निवेशकों ने दिलचस्पी दिखाई और एक रिवाइवल प्लान रखा जिसे 2021 में NCLT की मंजूरी मिली. हालांकि ये भी प्लान सफल नहीं हो सका. साल 2023 तक जेट के रिवाइवल की उम्मीदें फीकी पड़ने लगी थीं, क्योंकि कलरॉक-जालान कंसोर्शियम वित्तीय दायित्वों को पूरा नहीं कर पाए. अब सुप्रीम कोर्ट के फैसले से जेट एयरवेज के दिवालिया की कहानी का अंत हो चुका है और संपत्ति बेचने का आदेश दिया गया है. शेयर बाजार में इसकी ट्रेडिंग भी बंद हो चुकी है.