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Moonlighting: एक साथ दो नौकरी पर भारत में बवाल, अमेरिका में 60 साल से लोग कर रहे दो काम!

Moonlighting Policy In India: फूड डिलीवरी प्लेटफार्म स्विगी के मूनलाइटिंग की इजाजत देने के बाद से इस मुद्दे पर देश में बहस तेज हो गई. हालांकि, कंपनी दिग्गजों की राय इस पर अलग-अलग है. जैसे टेक कंपनी विप्रो के चेयरमैन रिशद प्रेमजी का कहना है कि टेक इंडस्ट्री में मूनलाइटिंग सीधी और स्पष्ट भाषा में धोखा है.

Moonlighting दशकों पुरानी पॉलिसी Moonlighting दशकों पुरानी पॉलिसी
आदित्य के. राणा
  • नई दिल्ली,
  • 08 सितंबर 2022,
  • अपडेटेड 10:26 AM IST
इन दिनों मूनलाइटिंग (Moonlighting) पॉलिसी यानी 9 से 5 की फुल टाइम जॉब के बाद किसी दूसरी जगह नौकरी करने की छूट. इसे लेकर लेकर देशभर में बहस छिड़ी हुई है. इस पर चर्चा की शुरुआत विप्रो के चेयरमैन रिशद प्रेमजी (Wipro Chairman Rishad Premji) के एक ट्वीट के साथ शुरु हुई थी, जिसमें उन्होंने मूनलाइटिंग को कंपनी के साथ धोखा करार दिया था. भले ही भारत में यह नया हो, लेकिन हकीकत में ये दशकों पुरानी पॉलिसी है और 60 के दशक में इसे अमेरिका (US) में लागू किया गया था. 

आखिर भारत में क्यों गर्माया ये मुद्दा?
अब समझिए अचानक से मूनलाइटिंग (Moonlighting) का मुद्दा क्यों भारत में गर्मा गया है. इसकी वजह है कि कोरोना काल में कंपनियों ने कर्मचारियों को घर से काम (Work From Home) करने की सहूलियत दी थी. इस सुविधा का फायदा उठाते हुए कोरोना काल में छंटनी, सैलरी कटौती जैसे माहौल के बीच दूसरे काम भी करने शुरू कर दिए.

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वैसे भी कई आईटी कंपनियां अपने नियमित कर्मचारियों से भी प्रोजेक्ट आधारित काम कराती हैं. ऐसे में उन्हें केवल प्रोजेक्ट के लिए काम करने के इच्छुक कर्मचारी मिलने से बड़ा फायदा हुआ. इन कर्मचारियों को प्रोजेक्ट खत्म होने के बाद अगला प्रोजेक्ट देना ना देना कंपनियों की मर्जी पर निर्भर था. वहीं रेगुलर कर्मचारियों को नया प्रोजेक्ट देकर उनकी प्रॉडक्टिविटी का इस्तेमाल करना कंपनियों की ग्रोथ के लिए जरूरी है. इसके साथ ही कहीं रेगुलर जॉब करने वालों के लिए भी ये प्रोजेक्ट बेस्ड नौकरियां करना आसान था. 

कोरोना काल में दिखे कई उदाहरण
कोरोना काल में किस तरह से कर्मचारियों ने मूनलाइटिंग (Moonlighting) की है. इसकी बानगी कोटक इंस्टीट्यूशनल इक्विटीज की हालिया रिपोर्ट से मिल सकती है. इस रिपोर्ट में कहा गया था कि आईटी इंडस्ट्री के 400 कर्मचारियों पर हुए सर्वे में कुछ दिलचस्प नतीजे सामने आए थे. इसमें शामिल 65 फीसदी आईटी कर्मचारियों ने कहा कि वो वर्क फ्रॉम के दौरान किसी पार्ट टाइम नौकरी में व्यस्त थे या उनके सहयोगी इस तरह से एक दूसरी नौकरी भी कर रहे थे.

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जाहिर है अगर इतने बड़े पैमाने पर कर्मचारी दूसरी नौकरी कर रहे थे, तो फिर इसकी भनक कंपनियों को भी लगी होगी. इसमें कोई हैरानी नहीं कि ये बड़ी वजह है कि बीते कई महीनों से आईटी कंपनियां वर्क फ्रॉम होम को खत्म करके कर्मचारियों को वापस बुला रही हैं. जबकि कई सर्वे ऐसे भी सामने आए हैं जिनमें ऑफिस जाने की जगह कर्मचारी दूसरी नौकरी खोज रहे हैं, जहां पर उन्हें वर्क फ्रॉम होम की सुविधा मिल सके.

अमेरिका में इसका चलन दशकों पुराना
अमेरिका की यूनिवर्सिटी ऑफ मिशिगन की लाइब्रेरी में मौजूद 'टेक्नोलॉजी एंड द अमेरिकन इकॉनमी' की रिपोर्ट को देखें, तो अमेरिका में 1964 में 37 लाख लोग एक साथ 2 नौकरियां करते थे. ये आंकड़ा उस वक्त अमेरिका की कुल वर्क फोर्स का 5.2 फीसदी था. इनमें से 10 लाख लोगों की पहली नौकरी कृषि सेक्टर से संबंधित थी.

इसके अलावा ज्यादातर लोगों की पहली या दूसरी नौकरी स्वरोजगार था. इसके बाद 80 के दशक में भी ये चलन  इसके जारी रहा. 1980 में एक साथ कई नौकरियां करने वालों की संख्या 4.9 फीसदी थी और ये आंकड़ा 1989 में बढ़कर 6.2 फीसदी और नवंबर, 1996 में ऐसे कर्मचारियों की संख्या 6.6 फीसदी पर पहुंच गई. इसके बाद इसमें कुछ कमी आई है और फेडरल ब्यूरो ऑफ लेबर स्टैटिस्टिक्स के आंकड़ों के मुताबिक, अमेरिका में जुलाई 2014 तक 68 लाख लोग एक से ज्यादा नौकरियां करते थे, जो कुल वर्कफोर्स के 4.6 फीसदी के बराबर था.

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पिछले साल हुआ था बड़ा सर्वे 
एक नौकरी के साथ दूसरी नौकरी करना लोगों को क्यों रास आता है, इस पर दिलचस्प जानकारी सितंबर 2021 में आए एमटीवी के सर्वे में सामने आई थी. इसके मुताबिक 70 फीसदी लोग तो लोकप्रियता हासिल करने के लिए एक साथ दो नौकरी करते हैं. 69 फीसदी लोग अपने शौक को कमाई का जरिया बनाने के लिए दूसरी नौकरी करते हैं. वहीं अगर रिज्यूमबिल्डर डॉट कॉम के सर्वे की मानें तो ज्यादा खर्च के लिए अधिक कमाई करने के लिए 48 फीसदी लोग दूसरी नौकरी करते हैं. इसके अलावा इस पॉलिसी को अपनाने के कई बड़े कारण सामने आए हैं. 

 

  • कर्ज घटाने के लिए- 46%
  • बचत/निवेश के लि- 45%
  • अनुभव के लिए- 43%
  • करिअर के लिए- 38%
  • बोरियत दूर करने के लिए- 33%

मूनलाइटिंग पर दिग्गजों की राय
दरअसल, फूड डिलीवरी प्लेटफार्म स्विगी के मूनलाइटिंग की इजाजत देने के बाद से इस मुद्दे पर देश में बहस तेज हो गई. हालांकि, कंपनी दिग्गजों की राय इस पर अलग-अलग है. जैसे टेक कंपनी विप्रो के चेयरमैन रिशद प्रेमजी का कहना है कि टेक इंडस्ट्री में मूनलाइटिंग सीधी और स्पष्ट भाषा में धोखा है. टेक महिंद्रा के सीईओ, सीपी गुरनानी का मानना है कि समय के साथ बदलते रहना जरूरी है और जिस माहौल में आईटी इंडस्ट्री के लोग काम करते हैं, उसमें ब्रेक स्वागत योग्य है. हालांकि कर्मचारियों को मूनलाइटिंग का खुलासा करने पर भी उन्होंने जोर दिया है. 

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इसके अलावा इंफोसिस के पूर्व निदेशक, मोहनदास पई ने कहा कि आईटी इंडस्ट्री में नौकरी शुरू करने वालों को कम वेतन मिलता है, जिसकी वजह से वो मूनलाइटिंग करते हैं. कोरोना काल में सबकुछ डिजिटल हो गया और गिग रोजगार के मौकों में इजाफा हुआ है, अगर लोगों को अच्छी सैलरी नहीं मिलेगी, तो वो ज्यादा पैसा कमाने के लिए मूनलाइटिंग के विकल्प का चुनाव करेंगे. तकनीकी युग में लोगों के लिए ये और आसान हो गया है. साथ ही डॉलर में अच्छा भुगतान मिलने से ज्यादा कमाने के मौके भी बढ़े हैं.

पॉलिसी नकारने वालों ने दिया ये तर्क
मूनलाइटिंग पर आपत्ति जताने वालों का कहना है कि एक साथ 2 नौकरियां करने वाला कोई भी कर्मचारी अपनी नौकरी के साथ न्याय नहीं कर सकता. उसकी उत्पादकता पर असर पड़ेगा और वो हमेशा कुछ ना कुछ बहाना करके दूसरी नाव में सवार होता रहेगा. जबकि, इसके विपरीत कर्मचारियों का कहना है कि नौकरी के बाद का समय उनका है और वो उसमें जो मर्जी वो कर सकते हैं. एक नौकरी के लिए दफ्तर आने जाने में लगने वाले वक्त को बचाकर वो दूसरी नौकरी के लिए इस्तेमाल करके अपनी कमाई बढ़ाने की वजह से ही वर्क फ्रॉम होम वाली नौकरी तलाश रहे हैं.

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