
पारले-जी (Parle G) भारत के घर-घर में सालों से जाना-पहचाना नाम है. शहर हो या गांव, बच्चा-बच्चा भी पारले-जी के नाम से परिचित है. भारतीय बिस्किट बाजार में पारले-जी (Parle G Biscuit) की बादशाहत के 2-3 दशक हो चुके हैं. कोई भी अन्य ब्रांड पारले-जी की लोकप्रियता के आस-पास नहीं पहुंच पाया है. अगर इसका कारण आपको बताया जाए तो आप हैरान हो सकते हैं. पारले-जी की इस सफलता के पीछे 90 के दशक का लोकप्रिय सुपरहीरो कैरेक्टर शक्तिमान (Shaktiman) है. शक्तिमान के कारण एक महीने में पारले-जी बिस्किट की बिक्री 50 टन से उछलकर 2000 टन के पार निकल गई थी.
बच्चों-बच्चों की जुबान पर शक्तिमान का नाम
यह कहानी है 1990 के दशक के अंतिम सालों की. उस दौर में भारतीय सुपरहीरो शक्तिमान पर बना टीवी शो बेहद लोकप्रिय था. खासकर बच्चे शक्तिमान के कैरेक्टर को खूब पसंद करते थे. यह धारावाहिक टेलीविजन पर 1997 से 2005 के दौरान प्रसारित हुआ था. एक्टर मुकेश खन्ना (Mukesh Khanna) उस धारावाहिक में शक्तिमान बने थे. मार्केटिंग सट्रेटजिस्ट संजय मुडनानी (Sanjay Mudnani) बताते हैं कि किस तरह से मुकेश खन्ना को साथ लेकर प्रचार का एक प्रयोग बेहद सफल साबित हुआ था. यहां तक कि उस समय के सबसे मुश्किल बाजारों में से एक तमिलनाडु (Tamilnadu) में भी पारले-जी का वर्चस्व स्थापित हो गया था.
मिल्क बिस्किट के बाजार में मिली जगह
मुडनानी ने उस दौर में अपनी पहली इंटीग्रेटेड मार्केटिंग कंपनी स्थापित की थी. पारले-जी भी उनकी क्लाइंट थी. मुडनानी बताते हैं कि करीब 25 साल पहले पारले प्रोडक्ट के मार्केटिंग हेड प्रवीण कुलकर्णी ने उन्हें तमिलनाडु बाजार की चुनौतियों के बारे में अवगत कराया था. उन्होंने बताया था कि बाजार में मिल्क बिस्किट का दबदबा है और ब्रिटानिया की मिल्क बिकीज सबसे ज्यादा बिकती है. पारले-जी ग्लुकोज बिस्किट है और उस समय मार्केट में उसकी उपस्थिति नहीं थी, लेकिन वह दक्षिण के बाजार में हिस्सेदारी चाह रही थी.
पारले-जी से रिलेट किया कैरेक्टर
बकौल मुडनानी, 'हमने एक प्रयोग करने का निर्णय लिया. शक्तिमान सुपरहीरो कैरेक्टर तमिलनाडु में बच्चों के बीच काफी लोकप्रिय था. वह कैरेक्टर पारले-जी का नेशनल ब्रांड एंबैसडर भी था. शक्तिमान के कैरेक्टर में एनर्जी, स्टेमिना, स्ट्रेंथ और गुड वैल्यूज जैसी वे तमाम बातें थीं, जिनसे पारले-जी बिस्किट को रिलेट किया जाता था.' इस कारण मुडनानी ने शक्तिमान यानी मुकेश खन्ना को चेन्नई ले जाकर बच्चों से मिलवाने का निर्णय लिया. इसके लिए एक ग्राउंड को बुक किया गया और हर व्यक्ति के लिए एंट्री टिकट के रूप में पारले-जी के दो खाली रैपर की शर्त रखी गई. उनकी टीम ने इस इवेंट का स्कूलों में प्रचार किया और अखबारों में विज्ञापन दिए गए.
शक्तिमान से मिलने आए लाखों बच्चे
मुडनानी कहते हैं कि उनकी टीम यह मान कर चल रही थी कि इवेंट में कुछेक हजार बच्चे अपने माता-पिता के साथ आएंगे. लेकिन बाद में जो हुआ, उसने हर किसी को हैरान कर दिया. वह बताते हैं, 'सुबह के नौ बजे कोई भीड़ नहीं थी और महज कुछ बच्चे अपने माता-पिता के साथ आ रहे थे. शक्तिमान स्टेज पर इंतजार कर रहे थे और मुझे चिंता हो रही थी. उसके बाद कुछ स्कूल बसें आकर रुकीं, फिर कुछ और बसें आईं और देखते-देखते अफरातफरी पसर गई. शाम के छह बजे तक यही हाल रहा और इवेंट में शक्तिमान से मिलने लाखों बच्चे आए. भीड़ में हर कोई अपने हीरो को छू लेना चाहता था.'
एक प्रयोग ने बना दिया ब्रांड को सफल
मुडनानी ने कहा कि इसके बाद उनकी टीम ने पीआर को सक्रिय किया. 'चेन्नई में शक्तिमान' हर अखबारों के पहले पन्ने की खबर बना. परिणाम ये हुआ कि पारले-जी की बिक्री 50 टन प्रति माह से बढ़कर 2000 टन के पार निकल गई.' वह शक्तिमान के साथ किए गए प्रयोग को लेकर कहते हैं कि उन्होंने शक्तिमान कैंपेन से ये सब उस दौर में हासिल किया, जब इंटरनेट का जमाना नहीं था. वह कहते हैं, सोचिए कि फ्यूचर में मेटावर्स के जमाने में और अभी के दौर में सही अप्रोच के साथ क्या-कुछ हासिल किया जा सकता है...