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जी नहीं, सरकारी मदद से आलसी या कामचोर नहीं बनते गरीब: अभिजीत बनर्जी 

अर्थशास्त्री अभिजीत बनर्जी ने कहा कि पिछले दशक और उससे पहले एशिया, अफ्रीका और लातिन अमेरिका में विभिन्न अर्थव्यवस्थाओं पर उन्होंने जो अध्ययन किये, उनमें कहीं भी ऐसा नहीं दिखा कि सरकारी मदद लोगों को आलसी या कामचोर बनाती है.

अर्थशास्त्री अभिजीत विनायक बनर्जी (फाइल फोटो) अर्थशास्त्री अभिजीत विनायक बनर्जी (फाइल फोटो)
aajtak.in
  • नई दिल्ली ,
  • 12 अप्रैल 2021,
  • अपडेटेड 8:05 AM IST
  • बनर्जी ने कहा कि इसका कोई प्रमाण नहीं है
  • उल्टे इससे गरीब और रचनात्मक होते हैं

नोबेल पुरस्कार से सम्मानित जाने-माने अर्थशास्त्री अभिजीत विनायक बनर्जी ने गरीबों को मिलने वाली मुफ्त सरकारी सहायता सीमित रखने की विचारधारा की आलोचना की है. उन्होंने कहा कि ऐसा कोई प्रमाण नहीं है कि सरकारी मदद गरीबों को कामचोर बनाती है. 

बनर्जी ने कहा कि पिछले दशक और उससे पहले एशिया, अफ्रीका और लातिन अमेरिका में विभिन्न अर्थव्यवस्थाओं पर उन्होंने जो अध्ययन किये, उनमें कहीं भी ऐसा नहीं दिखा कि सरकारी मदद लोगों को आलसी या कामचोर बनाती है.

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अधिक उत्पादक और रचनात्मक हुए गरीब

बनर्जी के अनुसार उल्टे यह देखने में आया है कि जो लोग सार्वजनिक और गैर-सरकारी सहायता से लाभान्वित हुए हैं और जहां उन्हें मुफ्त में संपत्ति दी गयी, वहां वास्तव में वे अधिक उत्पादक और रचनात्मक हुए हैं. 

न्यूज एजेंसी पीटीआई के अनुसार, लघु वित्त बैंक बंधन बैंक के 20वें स्थापना दिवस को संबोधित करते हुए उन्होंने रविवार को कहा कि इस बात को लेकर कहीं कोई आंकड़ा और व्यवहारिक सबूत नहीं है, जिससे यह स्थापित हो कि गरीबों को मुफ्त में संपत्ति मिलने से वे कामचोर बनते हैं. 

बनर्जी ने कहा कि इस विचार के आधार पर विभिन्न सरकारें गरीबों को कम सहायता उपलब्ध कराती रही हैं ताकि वे आलसी नहीं बने. लेकिन हमें भारत समेत कहीं भी इस बात का सबूत नहीं मिला, बल्कि इसके उलट, हमें हर जगह इस प्रकार की नीति से सुधार ही देखने को मिला है. 

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अर्थशास्त्री ने कहा कि भारत में मनमोहन सिंह द्वारा रोजगार गारंटी योजना के क्रियान्वयन और अन्य ठोस कदमों से पांच साल में ही एक करोड़ से अधिक आबादी को गरीबी की दलदल से बाहर निकाला जा सका.

भारत को वैश्वीकरण का लाभ मिला 

बनर्जी ने कहा, ‘‘भारत को वैश्वीकरण का लाभ मिला है. 1990 की शुरुआत से आज तक भारत का निर्यात अन्य देशों की तुलना में तेजी से बढ़ा है.’ नोबेल से सम्मानित अर्थशास्त्री ने कहा कि वैश्वीकृत दुनिया के साथ बड़ा जोखिम जुड़ा होता है. हम इन जोखिमों से निपट सकते हैं, बशर्ते वैश्वीकरण के साथ संसाधन भी आएं. 

 

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