बीते मार्च में कोरोना संक्रमण के कारण लागू लॉकडाउन की वजह से देश की आर्थिक गतिविधियां ठप हो गई थीं. इसका असर अप्रैल, मई के महीने में भी देखने को मिला. हालांकि, जून, जुलाई और अगस्त में थोड़ी ढील देने की वजह से आर्थिक गतिविधियां एक बार फिर रफ्तार पकड़ रही हैं. लेकिन रिजर्व बैंक के पूर्व गवर्नर डी सुब्बाराव के मुताबिक अभी स्थिति साफ नहीं है. डी सुब्बाराव ने कहा कि आर्थिक गतिविधियों को लेकर सरकार को ज्यादा मतलब नहीं निकालना चाहिए. उन्होंने यह भी कहा कि जो सुधार के संकेत दिख रहे हैं, वे बिना किसी प्रयास के हैं.
क्या कहा सुब्बाराव ने
सुब्बाराव ने कहा, ‘‘जिन आर्थिक पुनरूद्धार के संकेतों का आप जिक्र कर रहे हैं, मुझे नहीं लगता कि उसका ज्यादा मतलब निकालना चाहिए. हम जो भी देख रहे हैं, वह ‘लॉकडाउन’ के दौरान आर्थिक गतिविधियों की तुलना में सुधार है, यह यंत्रवत है.’’ उन्होंने कहा कि भारतीय अर्थव्यवस्था की अल्पकालिक व मध्यकालिक संभावनाएं अभी धुंधली बनी हुई हैं. सुब्बाराव ने कहा, ‘‘हमारी मध्यम अवधि की संभावना इस बात पर निर्भर करेगी कि कितने प्रभावी तरीके से हम इन चुनौतियों का समाधान करते हैं.’’
सुब्बाराव ने कहा, ‘‘महामारी अब भी बढ़ रही है, रोजाना नये मामले बढ़ रहे हैं और कोरोना नये क्षेत्रों में फैल रहा है.’’ मध्यम अवधि में वृद्धि संभावना के बारे में आरबीआई के पूर्व गवर्नर ने कहा कि जब से कोविड-19 संकट सामने आया है, अर्थव्यवस्था समस्या में है. उन्होंने कहा, ‘‘जब यह संकट समाप्त होगा और मैं उम्मीद करता हूं कि यह जल्दी हो, ये समस्याएं काफी बड़ी होने जा रही हैं. राजकोषीय घाटा बहुत अधिक होगा. कर्ज का बोझ बढ़ेगा और वित्तीय क्षेत्र की स्थिति खराब होगी. ’’
ग्रामीण अर्थव्यवस्था में सुधार बेहतर
यह पूछे जाने पर कि क्या वह इस निराशाजनक परिदृश्य में कोई सकारात्मक चीज देखते हैं, उन्होंने कहा कि शहरी अर्थव्यवस्था के मुकाबले ग्रामीण अर्थव्यवस्था में सुधार बेहतर है. इसका एक प्रमुख कारण मनरेगा है जिसका ऐसे समय विस्तार किया गया, जब इसकी काफी जरूरत थी. सुब्बाराव ने कहा कि एक और बड़ी राहत की बात अर्थव्यवस्था में बुनियादी सुरक्षा दायरा का होना है, जिस पर गौर नहीं किया गया.
उन्होंने उदाहरण देते हुए कहा कि कोविड-18 संकट के दौरान करीब 4 करोड़ शहरी प्रवासी मजदूर अपने गांवो को लौटे.इसके बावजूद भुखमरी की कोई रिपोर्ट नहीं है. सुब्बाराव ने कहा, ‘‘अगर 20 साल या 15 साल पहले देखें, तो यह कल्पना करना आसान है कि किस प्रकार इतनी संख्या में प्रवासी मजदूरों के अपने घरों को लौटने से भुखमरी की समस्या उत्पन्न हो जाती. यह केवल इस सरकार का ही नहीं बल्कि पूर्व की सरकारों को किये गये अच्छे कामों का नतीजा है.’’
सरकार ज्यादा खर्च कर रही है!
इस आलोचना के बारे में सरकार देश को आर्थिक संकट से उबारने के लिये बहुत ज्यादा खर्च नहीं कर रही है, आरबीआई के पूर्व गवर्नर ने कहा कि सरकार के लिए ऋण लेना और अधिक खर्च करना महत्वपूर्ण है. उन्होंने कहा, ‘‘वास्तव में सरकार वृद्धि को बढ़ाने वाले अल्पकालिक तत्वों पर खर्च कर रही है.
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निजी खपत, निवेश और निर्यात संकटपूर्ण स्थिति में हैं.’’ सुब्बाराव ने कहा, ‘‘अगर सरकार गिरावट को रोकने के लिये अधिक खर्च नहीं करती है, फंसे कर्ज की समस्या बढ़ेगी और अर्थव्यवस्था पर उसका अधिक प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा.’’ हालांकि उन्होंने यह भी कहा कि सरकार की उधारी एकदम से खुली नहीं हो सकती, उसे स्वयं उस पर एक सीमा लगानी चाहिए.
अधिकतम लाभ पर हो फोकस
यह पूछे जाने पर कि अतिरिक्त खर्च कहां करने की जरूरत है, उन्होंने कहा कि राजकोषीय गुंजाइश सीमित है, इसको देखते हुए, सरकार को खर्च किये गये पैसे से अधिकतम लाभ पर ध्यान देना चाहिए. सुब्बाराव ने कहा, ‘‘खर्च या तो खपत अथवा उत्पादन के लिए जा सकता है.’’ उनका मानना है कि खपत के ऊपर उत्पादन को तरजीह दिया जाना चाहिए.
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