
सरकारी नौकरी मिलना कितना मुश्किल है ये हम सभी जानते हैं, पर आज हम आपको बताते हैं एक ऐसे उद्यमी की कहानी जिसने सरकारी नौकरी का ऑफर लेटर मिलने के बाद उसे फाड़ दिया और अपना स्टार्टअप शुरू किया. ये स्टार्टअप समय के साथ इतना बढ़ा कि वर्तमान समय में ये देश के सबसे बड़े अगरबत्ती ब्रांड में से एक है.
4 बच्चों का पिता होने के बावजूद नहीं की सरकारी नौकरी
हम बात कर रहे हैं Vasu & Cycle Brand कंपनी के फाउंडर एन. रंग राव (N Ranga Rao) की. उन्होंने साल 1948 में अपनी अगरबत्ती कंपनी की शुरुआत की थी. भारत को आजादी मिले कुछ ही महीने बीते थे, तभी रंग राव को केन्द्र सरकार में नौकरी का ऑफर मिला था.
जिस समय उन्हें ये ऑफर मिला, उस वक्त वो 4 बच्चों के पिता थे. उनका 1946 में शुरू किया डेयरी फार्मिंग का एक बिजनेस असफल हो चुका था. मजबूरी में उन्होंने सरकारी नौकरी के लिए अप्लाई किया, पर जब उन्हें नौकरी मिली तो उन्होंने अपना ऑफर लेटर फाड़ दिया और एंटरप्रेन्योर बनने की ठानी.
मां के गहने गिरवी रख दिए
एन. रंग राव के बेटे और वासु एंड साइकिल ब्रांड अगरबत्ती के एमडी रह चुके मोहन रंग राव ने हाल में एक लिंक्डइन पोस्ट में बताया कि उनके पिता को जब ये ऑफर लेटर मिला, तब वो विनोबा रोड पर एक पत्थर के बेंच पर बैठे और उस लेटर को फाड़ दिया. घर वापस आए और तय किया कि बिजनेस ही करना है.
एन. रंग राव ने इस बिजनेस को शुरू करने के लिए अपनी मां के गहनों को गिरवी रख दिया. मात्र 4,000 रुपये से ये बिजनेस शुरू किया. तब वो ये जोखिम अपनी पत्नी, मां और चार बच्चों के समर्थन से ही ले पाए.
10 साल में 10 लाख रुपये का कारोबार
एन. रंग राव ने अगरबत्ती का बिजनेस महज 4,000 रुपये में शुरु किया. इस बिजनेस से 10 साल के भीतर यानी 1958 तक ही उन्होंने 10 लाख रुपये का कारोबार किया. अगर महंगाई को मिलाकर गणना की जाए, तो 1958 के 10 लाख रुपये आज करीब 9 करोड़ रुपये के बराबर होंगे.