
आम लोगों का मानना है कि जब भारत आजाद हुआ, यानी 15 अगस्त 1947 को, तब रुपये और डॉलर की कीमत एक बराबर थी. पर हकीकत में क्या ऐसा था, अगर नहीं तो तब कितने कितनी थी रुपये की वैल्यू और अब इतने साल में कैसे बदला रुपये का हाल...
तब पाउंड से होती थी तुलना
रुपये और डॉलर की वैल्यू को लेकर जानने वाली सबसे जरूरी बात ये है कि आजादी से पहले भारत, एक ब्रिटिश उपनिवेश था. यानी तब इसकी वैल्यू का आकलन ब्रिटेन की मुद्रा पाउंड के आधार पर होता था. माना जाता है तब 1 पाउंड की वैल्यू 13.37 रुपये के बराबर थी. इस तरह अगर पाउंड और डॉलर के तब के एक्सचेंज रेट को देखा जाए तो 15 अगस्त 1947 के दिन 1 डॉलर की वैल्यू 4.16 रुपये होनी चाहिए.
ऐसे बना डॉलर और रुपये का रिश्ता
समय के साथ-साथ रुपया डॉलर के मुकाबले कमजोर होता गया. इसकी कई वजह रही, कभी भारत सरकार ने खुद रुपये की वैल्यू को कम किया तो कभी वैश्विक परिस्थितियों के चलते ऐसा हुआ. दुनिया की सबसे पुरानी ट्रैवल कंपनियों में से एक और मनी एक्सचेंज सेक्टर में काम करने वाली बड़ी कंपनी Thomas Cook India के मुताबिक डॉलर और अन्य मुद्राओं के बीच तालमेल का इतिहास (Dollar vs Rupee History) 1944 से शुरू होता है. इसी साल Britton Woods Agreement पास हुआ था.
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इस समझौते ने दुनिया के सभी देशों की मुद्राओं की विनिमय दर का एक सिस्टम स्थापित किया. इस तरह रुपया और डॉलर कभी बराबर रहे ही नहीं, क्योंकि भारत को आजादी इस समझौते के बाद मिली. इसलिए उसे अंतरराष्ट्रीय व्यवस्था को अपनाना पड़ा और इसी के साथ रुपये की वैल्यू भी बदल गई. हां, अगर आप मॉर्डन कैलकुलेशन के हिसाब से जाएं तो 1913 के आसपास 1 डॉलर की वैल्यू करीब-करीब 90 पैसे की बैठती है.
1966 में 1 डॉलर 7.5 रुपये का
आजादी के बाद रुपये की वैल्यू में बड़ा बदलाव 1957 में आया, तब 1 रुपये को 100 पैसे की वैल्यू में बांट दिया गया. इससे हर भारतीय तक मुद्रा की पहुंच को सुनिश्चित किया गया. इसके बाद 1966 में जब देश को भीषण आर्थिक संकट का सामना करना पड़ा, तब फिर से रुपये की वैल्यू में बदलाव आया. तब भारत निर्यात की तुलना में आयात ज्यादा करता था. इसलिए ट्रेड बैलेंस को बनाए रखने के लिए सरकार ने डॉलर के मुकाबले रुपये की वैल्यू को कम (Devaluation) किया और 1 डॉलर 7.5 रुपये का हो गया.
आर्थिक उदारीकरण ने बदली रुपये की चाल
साल 1991 को भारत में आर्थिक सुधार या उदारीकरण वाला साल समझा जाता है. इस दौरान भारत एक आर्थिक संकट से गुजर रहा था और सरकार को आयात के लिए भुगतान करने में भी दिक्कत आ रही थी. तब दुनिया में तेज गति से आगे बढ़ने के लिए उदारीकरण का रास्ता चुना गया. उस दौरान 1 डॉलर 25 रुपये का था और उदारीकरण के लागू होते ही इसमें तेज गिरावट दर्ज की गई, क्योंकि रुपये की वैल्यू बाजार तय करने लगा और 1 डॉलर 35 रुपये तक का हो गया.
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नोटबंदी ने किया रुपया कमजोर
साल 2013 में रुपये की वैल्यू में अचानक से बड़ी गिरावट दर्ज की गई. इसकी वजह आयात के लिए डॉलर की डिमांड का बढ़ना और FII का भारतीय बाजारों से पैसा खींचना रहा. तब रुपया कुछ ही दिन में 55.48 रुपये प्रति डॉलर से घटकर 57.07 रुपये पर आ गया. फिर आई नोटबंदी (Demonetisation) की रात. नवंबर 2018 में जब सरकार ने 1000 रुपये और 500 रुपये पुराने नोट बंद करने का निर्णय किया, तब रुपये की वैल्यू में बड़ा बदलाव हुआ. 1 डॉलर का मूल्य 67 से 71 रुपये के बीच तक पहुंच गया.
आजादी से अब तक 1775% गिरा रुपया
डॉलर के मुकाबले रुपये का ये टूटना अभी भी जारी है. मौजूदा समय में 1 डॉलर की वैल्यू 78 रुपये से ज्यादा है. इस तरह देखें, तो आजादी से अब तक रुपये की वैल्यू 1775% प्रतिशत कम हुई है.
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