
भारत में मंदी (Recession) का असर कम रहने की सबसे बड़ी वजह है यहां की घरेलू डिमांड और घरेलू उत्पादन. यहां पर जितना घरेलू उत्पादन होता है उसी हिसाब से देश में ही डिमांड मौजूद है. ऐसे में ग्लोबल मंदी (Global Recession) यहां पर असर तो जरूर डालेगी, लेकिन उससे हालात बिगड़ेंगे तो कतई नहीं. फिलहाल तो भारत में डिमांड भरपूर बनी हुई है. खासकर, महंगाई के बावजूद भारत में मांग के बने रहने से अर्थव्यवस्था किसी भी तरह की आफत से कोसों दूर नजर आती है. इस घरेलू डिमांड से उन सेक्टर्स में सबसे ज्यादा उत्साह है जहां पर नौकरियों के सबसे ज्यादा मौके पैदा होते है. ये सेक्टर अब बैंकों से बड़ी रकम बतौर कर्ज लेकर अपनी मैन्यूफैक्चरिंग क्षमता को बढ़ाने में इस्तेमाल कर रहे हैं.
RBI और SBI रिसर्च की रिपोर्ट का दावा
RBI और SBI रिसर्च की रिपोर्ट के अनुसार इस साल सितंबर में इंडस्ट्रियल क्रेडिट सितंबर 2021 के मुकाबले 12.6 फीसदी बढ़ा है. ये ग्रोथ इस मायने में खास है कि काफी समय से क्रेडिट ग्रोथ में सुस्ती बनी हुई थी. जो थोड़ी बहुत तेजी देखी भी जा रही थी वो रिटेल लोन यानी होम, कार, कंज्यूमर और पर्सनल लोन की बदौलत देखने को मिल रही थी. वहीं, सितंबर 2021 में औद्योगिक लोन में सितंबर 2020 के मुकाबले महज 1.7 फीसदी की बढ़ोतरी हुई थी.
क्रेडिट ग्रोथ 9 साल के हाई पर पहुंची
SBI इकोरैप की हालिया रिपोर्ट के मुताबिक क्रेडिट ग्रोथ रेट 9 साल के उच्चतम स्तर पर पहुंच गया है. रिपोर्ट के अनुसार, इस साल सितंबर में पिछले साल के इसी महीने के मुकाबले सभी तरह के लोन की दर 17.9 फीसदी बढ़ी है. हालांकि, इस दौरान बैंकों में डिपॉजिट ग्रोथ केवल 9.5 फीसदी की दर से बढ़ी है. रिपोर्ट के अनुसार सर्विस सेक्टर के बाद पर्सनल लोन में 19.6 परसेंट का इजाफा हुआ है. वहीं कृषि और इससे जुड़े सेक्टर्स के लोन में पिछले साल के मुकाबले 13.4 फीसदी का इजाफा हुआ है. SBI इकोरैप की रिपोर्ट के अनुसार बैंक अपने डिपॉजिट ग्रोथ रेट को बढ़ाने के लिए अलग अलग तरह की स्कीम्स लाकर ग्राहकों को लुभाने में लगे हैं, जिनमें सबसे लोकप्रिय स्कीम पर सात फीसदी से भी ज्यादा ब्याज का ऑफर है.
उत्पादन क्षमता में बढ़ोतरी का दावा
इंडस्ट्री चैंबर फिक्की की रिपोर्ट के अनुसार 2022-23 की मौजूदा तिमाही यानी अक्टूबर-दिसंबर में 61 फीसदी मैन्यूफैक्चरर्स दूसरी तिमाही (जुलाई-सितंबर) के मुकाबले ज्यादा उत्पादन क्षमता का इस्तेमाल कर रहे हैं. फिक्की की रिपोर्ट में कहा गया है कि ऑटोमोटिव और ऑटो पार्ट्स की यूनिट 90 फीसदी उत्पादन क्षमता पर काम कर रही हैं. वहीं कैपिटल गुड्स, सीमेंट और केमिकल्स की मैन्यूफैक्चरिंग यूनिट्स भी अपनी 70 परसेंट से ज्यादा उत्पादन क्षमता का उपयोग कर रही हैं
किन सेक्टर्स में बढ़ी लोन की मांग?
इस साल सितंबर में फूड प्रोसेसिंग, पेय पदार्थ, टेक्सटाइल, लेदर और लेदर प्रॉडक्ट्स, लकड़ी और लकड़ी उत्पाद, टेलीकम्युनिकेशंस जैसे सेक्टर्स में लोन की डिमांड बढ़ी है. इस दौरान सर्विस सेक्टर के लोन में पिछले साल के मुकाबले 20 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है. सर्विस सेक्टर में तेजी आने से टूरिज्म और होटल, रेस्त्रां जैसे सेक्टर्स में तेजी आएगी जिससे रोजगार में इजाफा होने का अनुमान है.
अलग अलग सेक्टर्स में सितंबर में हुई क्रेडिट ग्रोथ
उच्चतम स्तर पर मैन्युफैक्चरिंग में रोजगार
अब इस लोन ग्रोथ के बढ़ने का असर पिछले महीने ही देखने को मिल गया था. अक्टूबर में मैन्युफैक्चरिंग का परचेजिंगग मैनेजर्स इंडेक्स सितंबर के 55.1 से मामूली बढ़कर 55.3 हो गया था. इस मामूली बढ़ोतरी के बावजूद मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर में रोजगार के मौके 33 महीनों के उच्चतम स्तर पर पहुंच गए थे. ये इस लिहाज से महत्वपूर्ण है कि ये मौके प्री-कोविड स्तर के मुकाबले भी ज्यादा है. भारत में जबसे मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर में प्रॉडक्शन लिंक्ड इंसेंटिव (PLI) स्कीम आई है तबसे भारत में मैन्युफैक्चरिंग की ताकत लगातार बढ़ रही है. हाल ही में आई एक रिपोर्ट में तो भारत को दुनिया में सबसे सस्ती मैन्युफैक्चरिंग लागत वाला देश तक करार दिया गया है जो इस मामले में चीन और वियतनाम तक से आगे है.