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Inflation Data: कल आए इस आंकड़े से अमेरिका का और बुरा हाल, टूट गया 41 साल का रिकॉर्ड

अमेरिका में ब्याज दरें बढ़ने का उभरते बाजारों यानी विकासशील अर्थव्यवस्थाओं (Emerging Economies) पर सीधा असर होता है. इसका मतलब है कि अमेरिका में महंगाई की दर बढ़ने का भारत जैसी अर्थव्यवस्थाओं पर भी बुरा असर होगा.

रिकॉर्ड स्तर पर महंगाई (Photo: Reuters) रिकॉर्ड स्तर पर महंगाई (Photo: Reuters)
aajtak.in
  • नई दिल्ली,
  • 14 जुलाई 2022,
  • अपडेटेड 12:04 PM IST
  • अमेरिका में रिकॉर्ड स्तर पर पहुंची महंगाई
  • भारत पर भी होंगे कई प्रतिकूल प्रभाव

इन दिनों महंगाई (Inflation) की मार से पूरी दुनिया परेशान है. भारत में भले ही महंगाई का असर धीरे-धीरे कम होने की राह पर लौट आया हो, लेकिन कई देशों में अभी भी इसकी दर बढ़ते जा रही है. दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था वाला देश अमेरिका (US Inflation) भी इनमें से एक है. अमेरिका में जून महीने में महंगाई की दर बढ़कर 9.1 फीसदी पर पहुंच गई, जो पिछले 41 सालों में सबसे ज्यादा है. इसके कारण मंदी (Recession) की आशंका और गंभीर हो गई है. इस बीच महंगाई पर एक प्रतिक्रिया देकर अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन मजाक और आलोचना के पात्र बन गए हैं.

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अनुमान से ज्यादा बढ़ी महंगाई

अमेरिका के लेबर डिपार्टमेंट ने बुधवार को महंगाई के आंकड़े जारी किए. आंकड़ों के अनुसार, जून महीने में महंगाई की दर साल 1981 के बाद सबसे ज्यादा रही. इससे पहले मई महीने में अमेरिका की महंगाई दर 8.6 फीसदी थी. वैसे तो अमेरिका में महंगाई दर के और बढ़ने के अनुमान पहले से लगाए जा रहे थे, लेकिन इतनी तेजी की किसी को आशंका नहीं थी. मार्केट को लग रहा था कि जून महीने में महंगाई दर बढ़कर 8.8 फीसदी पर पहुंच सकती है.

इस बयान पर हो रही बाइडन की आलोचना

महंगाई के आंकड़े आने के बाद जो बाइडन ने प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि यह डेटा तो पुराना हो गया है. उन्होंने कहा कि महंगाई दर काफी ज्यादा है, लेकिन इसके आंकड़े पुराने हो गए हैं. बाइडन ने कहा कि ये जो आंकड़े आए हैं, उनमें पिछले करीब 30 दिनों के दौरान गैस की कीमतों में आई गिरावट का असर नहीं दिखा है. उन्होंने कहा कि जून के मध्य से अब तक गैस की कीमतें 40 सेंट कम हो चुकी हैं. इसके अलावा गेहूं जैसे कमॉडिटीज भी सस्ते हुए हैं. इन कारणों से अमेरिकी परिवारों के लिए जीवन-यापन आसान हुआ है.

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अमेरिका में बढ़ेगी ब्याज दर

QuanEco के इकोनॉमिस्ट विवेक कुमार ने कहा, 'महंगाई की ऐसी ऊंची दर एक बार फिर से फेडरल रिजर्व (Federal Reserve) को आक्रामक मौद्रिक नीति अपनाने पर मजबूर कर सकती है. अनुमान है कि इस महीने होने वाली नीतिगत समीक्षा में फेडरल रिजर्व ब्याज दर को फिर से 0.75 फीसदी बढ़ा सकता है.' आपको बता दें कि फेडरल रिजर्व पहले ही इस महीने ब्याज दर 0.75 फीसदी बढ़ाने के संकेत दे चुका है. अमेरिका में 1980 के दशक के बाद अब सबसे तेजी से ब्याज दरें बढ़ाई जा रही हैं. दरअसल दशकों की सबसे ज्यादा महंगाई ने फेडरल रिजर्व के पास इसके अलावा और कोई उपाय नहीं छोड़ा है.

फेड रिजर्व के पास नहीं बचा विकल्प

इससे पहले फेडरल रिजर्व ने जून महीने में ब्याज दर को 0.75 फीसदी बढ़ाया था. वह पिछले 28 साल के बाद एक बार में ब्याज दर में की गई सबसे बड़ी बढ़ोतरी थी. तब फेडरल रिजर्व के चेयरमैन जेरेमी पॉवेल ने कहा था कि सेंट्रल बैंक ब्याज दरें बढ़ाने से तभी रुक सकता है, जब उसे महंगाई के थमने के साफ संकेत मिल जाएं. अब चूंकि महंगाई की दर थमने के बजाय रिकॉर्ड स्तर तक बढ़ी हैं, ऐसे में ब्याज दरें बढ़ने का रास्ता साफ हो गया है. कई जानकारों का भी कहना है कि अब फेडरल रिजर्व के सामने और कोई विकल्प बचा नहीं है.

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भारत पर होंगे ये तीन असर

अमेरिका में ब्याज दरें बढ़ने का उभरते बाजारों यानी विकासशील अर्थव्यवस्थाओं (Emerging Economies) पर सीधा असर होता है. इसका मतलब है कि अमेरिका में महंगाई की दर बढ़ने का भारत जैसी अर्थव्यवस्थाओं पर भी बुरा असर होगा. QuanEco के विवेक कुमार बताते हैं कि भारत पर इसका तीन तरीके से असर हो सकता है. सबसे पहला असर ये कि अमेरिका की तुलना में ब्याज दरें कम होने से भारतीय बाजार से विदेशी निवेशकों का मोहभंग होगा. दूसरा यह कि अमेरिकी डेट मार्केट (US Market Debt Market) में रिटर्न बढ़ने से भारतीय शेयर बाजार (Indian Share Market) में गिरावट आ सकती है. तीसरा असर भारतीय मुद्रा रुपया (INR) के ऊपर पड़ सकता है, यानी रुपया और कमजोर हो सकता है.

 

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