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Success Mantra: जीवन का 'एक-चौथाई सिद्धांत', जिसने बनाया वेदांता चेयरमैन को सक्सेसफुल

माइनिंग एंड मेटल मैग्नेट के रूप में पहचान बनाने वाले वेदांता चेयरमैन अनिल अग्रवाल सोशल मीडिया पर इन दिनों अपने जीवन की कहानियां साझा कर रहे हैं. ताजी कड़ी में उन्होंने जीवन के 'एक-चौथाई सिद्धांत' की कहानी बताई है, जिसके दम पर वह ब्रिटेन में वेदांता की जड़ें जमाने में कामयाबी हासिल की. इससे पहले वह लंदन स्टॉक एक्सचेंज पर लिस्टिंग की कहानी बता चुके हैं.

अनिल अगवाल ने दिया सफलता का मंत्र अनिल अगवाल ने दिया सफलता का मंत्र
aajtak.in
  • नई दिल्ली,
  • 07 सितंबर 2022,
  • अपडेटेड 2:56 PM IST

वेदांता चेयरमैन अनिल अग्रवाल (Vedanta Chairman Anil Agarwal) का नाम आज कौन नहीं जानता. बिहार की राजधानी पटना से सफर शुरू करने वाले अनिल अग्रवाल अभी तक कई सफलताएं हासिल कर चुके हैं. उनके नाम लंदन स्टॉक एक्सचेंज (London Stock Exchange) में पहली भारतीय कंपनी को लिस्ट कराने का कीर्तिमान दर्ज है. मेटल और माइनिंग की दुनिया में उनकी हैसियत से दुनिया वाकिफ है. उन्होंने यह मुकाम कड़ी मेहनत के दम पर हासिल की है. आज कल वह खुद सोशल मीडिया पर पोस्ट-दर-पोस्ट लिखकर अनी सफलता की कहानियां साझा कर रहे हैं. ताजी कड़ी में उन्होंने युवाओं को सफलता का एक नायाब मंत्र दिया है.

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ब्रिटेन में सामने आईं कई मुश्किलें

अनिल अग्रवाल लिखते हैं, 'पिछले दिनों अलग-अलग मौकों पर मेरा युवाओं से मिलना हुआ और हर बार की तरह, मुझे उनसे बहुत कुछ सीखने को मिला. युवाओं से बातचीत के दौरान मैं उनसे कहता हूं कि कड़ी मेहनत का कोई विकल्प नहीं है. आज, मैं आपको उस "एक चौथाई के सिद्धांत" के बारे में बताता हूं जिसने UK में पैर जमाने में मेरी बहुत मदद की... UK जाने के बाद शुरुआती कुछ महीने मेरे लिए काफी कठिन थे. मैं नए अवसरों को लेकर उत्साहित था, लेकिन विदेशी धरती पर कामयाबी को लेकर आशंकित भी था. फिर उन्हीं दिनों, Manchester जाने वाली एक ट्रेन से यात्रा के दौरान, मैंने सुना कि Duratube कंपनी दिवालिया हो गई है. मैं उसे हासिल करने के बारे में सोचने लगा.'

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रास्ते का रोड़ा बनी कमजोर अंग्रेजी

वेदांता चेयरमैन को जीवन के इस मुकाम पर भी मुश्किलों का सामना करना बाकी था. खासकर अंग्रेजी कमजोर होने के चलते उन्हें दिक्कतें हो रही थीं. इस बारे में वह बताते हैं, 'मैंने तुरंत HSBC के एक बैंकर को फोन किया और उनसे कंपनी के बारे में सवाल किए. मुझे पता चला कि उस समय Duratube ब्रिटिश दूरसंचार का एकमात्र सप्लायर था और वह Feltham में स्थित था. हमारी बातचीत के बीच में एक रोचक क्षण भी आया जब उस बैंकर ने मुझे कहा, आई बेग योर पार्डन. मैं मूर्तिवत हो गया क्योंकि मुझे नहीं पता था कि उसके इस वाक्य का क्या मतलब है. मैं बाद में समझ पाया कि वो चाहते हैं कि मैं अपने मोटे भारतीय लहजे के कारण अपना प्रश्न दोहराऊं. लेकिन उस समय, हम दोनों अजीब तरह से चुप थे और समान रूप से कन्फ्यूज्ड भी थे! वो मुझसे, और मैं उससे.'

बेटी को दिए मंत्र से मिली नई राह

अनिल अग्रवाल ने अपनी बेटी को दिए एक मंत्र से इस अड़चन को दूर करने में सफलता हासिल की. बकौल वेदांता चेयरमैन, 'जल्द ही मुझे एहसास हुआ कि मेरी बेटी, प्रिया भी एक नए देश में जाने के जुड़ी समस्याओं से गुजर रही थी, और उसके मामले में, उसे एक नए स्कूल में भी एडजस्ट होना था. किसी भी नए स्टूडेंट की तरह, प्रिया को फिर से दोस्त बनाने थे और एक नई संस्कृति में घुलना-मिलना थे. एक पिता के रूप में, मुझे अपनी बेटी को अपने फैसलों के कारण संघर्ष करते हुए देखकर दुख हुआ, लेकिन मुझे विश्वास था कि हमारे थोड़े से सहयोग के साथ, वो अपने रास्ते में आने वाली हर नई चीज को अपनाने और हर बाधा को दूर करने में सक्षम होगी. मैंने उससे कहा था कि बेटी, तुम बहुत हिम्मती हो और किसी भी चुनौती को पार कर सकती हो. तुम्हें अपने आप को बदलने की जरूरत नहीं है. बस अपने सामान्य प्रयासों को हर दिन थोड़ा मजबूत करने पर ध्यान केंद्रित करो. भले ही सिर्फ 25 प्रतिशत यानी एक चौथाई ही क्यों न हो. जल्दी ही लोग तुम्हारी तारीफ करने लगेंगे.'

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इस तरह खरीदी पहली ब्रिटिश कंपनी

तब से, प्रिया कोई एक काम करती तो उसमें बेहतर होने की कोशिश करती - चाहे वह तैराकी हो, घुड़सवारी हो या फिर स्वयंसेवा यानी वॉलंटियर वर्क हो. जल्दी ही उसने यूके में अपना पहला दोस्त बना लिया, जो जल्द ही कई दोस्तों में बदल गए... अनजाने में, मेरी बिटिया ने मुझे हर दिन जुटे रहने और कोशिश करते रहने का सबक सिखाया, भले ही वह सिर्फ एक चौथाई ही क्यों न हो. नई जगह पर संवाद को प्रभावी बनाने के लिए मैंने अपनी अंग्रेजी सुधारने के अलावा उनके रंग ढंग सीखने और उनके बिजनेस करने के तरीके सीखने के लिए अतिरिक्त प्रयास करने शुरू किए. हर दिन, मैं या तो स्पोकन इंग्लिश की प्रैक्टिस करने के लिए या उनकी कल्चर के बारे में अधिक जानने के लिए एक अतिरिक्त घंटा मेहनत करता. जिस दिन थकान के कारण मैं ऐसा करने से चूक जाता तो अगले दिन एक्स्ट्रा मेहनत करके उसकी भरपाई करता. धीरे-धीरे, मैं एक दिनचर्या विकसित करने में सफल हुआ. जो पहले एक टास्क जैसा लगता था वो मेरी आदत बन चुका था. परिणामस्वरूप, मैं बैंक से 3 मिलियन पाउंड की फंडिंग हासिल करने में कामयाब रहा और Duratube का अधिग्रहण कर लिया!

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कहने का मतलब ये कि हम सिर्फ इतना ध्यान में रखें: आपको कड़ी मेहनत को अपने दोस्त के रूप में देखना चाहिए न कि अपने मालिक के रूप में. किसी भी दूसरी दोस्ती की तरह, इसे आप हर दिन थोड़ा बढ़ने दें. और जब आप कड़ी मेहनत से एक दोस्ताना संबंध बनाते हैं, तो ऐसा कुछ भी नहीं है जिसे आप हासिल नहीं कर सकते! सभी अपना ख्याल रखिए, और अपने सपनों का भी!

 

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