
ब्रिटेन आर्थिक मंदी (Britain Economic Recession) की चपेट में आ चुका. इसके बाद से पूरी दुनिया पर मंदी की आशंका के बादल गहरे होने लगे हैं. कुछ महीनों में मंदी को लेकर लगाए जा रहे कयास अब सच हो सकते हैं. आर्थिक मंदी (Economic Recession) जब भी आती है, जनजीवन पर गहरा असर छोड़ जाती है. कई बार तो मंदी से उबरने में वर्षों लगे हैं. मंदी के आने से किसी भी देश की सिर्फ जीडीपी की साइज नहीं घटती, बल्कि लोगों के खर्च में भी भारी इजाफा होता है. कंपनियों की आमदनी घटती है. इसलिए वो पैसों की बचत के लिए कर्मचारियों को नौकरी से निकालने लगती हैं. इस तरह लोगों की मुश्किलें बढ़ जाती हैं और मंदी अपना गहरा असर छोड़ जाती है.
कब आती है आर्थिक मंदी?
अगर किसी भी देश की GDP लगातार दो तिमाही में निगेटिव में रहती है, तो इकोनॉमिक्स में उसे आर्थिक मंदी के रूप में परिभाषित किया जाता है. आमतौर पर मंदी के दौरान कंपनियों की कमाई घट जाती है. इस वजह से कर्मचारियों के वेतन में कौटती होती है. मंदी के दौरान कंपनियां आर्थिक बोझ को कम करने के लिए लोगों को नौकरी से भी निकालती हैं. इस वजह से बेरोजगारी बढ़ जाती है. इसका मतलब साफ तौर पर ये है कि सरकार को पब्लिक सर्विस पर खर्च करने के लिए टैक्स के रूप में कम पैसा मिलता है.
भारत ने दो बार झेली हैं मुश्किलें
आजादी के बाद भारत अब तक दो बार मंदी की चपेट में आया है. साल 1991 में भारत को पहली बार आर्थिक संकट का सामना करना पड़ा था. उस समय भारत के पास महज 3 सप्ताह के आयात के खर्चे भरे ही विदेशी मुद्रा बची थी. भारत कर्ज की किस्तों को चुकाने में असफल हो रहा था. देश का सोना बिक रहा था. लेकिन फिर भी हालात काबू में नहीं आ रहे थे. इस स्थिति में नरसिम्हा राव की सरकार ने आर्थिक उदारीकरण जैसे बड़े कदम उठाकर देश को संकट से बाहर निकाला था. दूसरी बार भारत को साल 2008 में आर्थिक मंदी की चुनौतियों का सामना करना पड़ा था. हालांकि, भारत में तब मंदी नहीं आई, लेकिन अमेरिका समेत अन्य देशों के संकट से भारत बच नहीं पाया.
'बंद करें कार और टीवी खरीदना'
अब अगर मौजूदा आर्थिक संकट की बात करें, तो एक्सपर्ट्स का मानना है कि भारत के ऊपर सीधे तौर पर मंदी का खतरा नहीं है. ब्रिटेन मंदी में फंस चुका है. अब अमेरिका, यूरोप और चीन जैसी अर्थव्यवस्थाओं का मंदी में फंसना लगभग तय माना जा रहा है.
मंदी की आशंका के चलते अमेजन के फाउंडर और पूर्व सीईओ जेफ बेजोस (Jeff Bezos) ने लोगों से कार और टीवी जैसी महंगी चीजों को खरीदने से मना किया है. उन्होंने एक इंटरव्यू में कहा कि ग्लोबल इकोनॉमी की हालत ठीक नहीं है. इस वजह से आने वाले दिनों में मंदी आ सकती है. बेजोस ने कहा कि मंदी का असर लंबे समय तक रह सकता है. इसलिए अमेरिका के लोगों को महंगी चीजों को खरीदने से बचना चाहिए.
मंदी से बचने के लिए करें ये काम
सेंटर फॉर इकोनॉमिक पॉलिसी एंड पब्लिक फाइनेंस (CEPPF) के इकोनॉमिस्ट डॉ सुधांशु कुमार कहते हैं कि मंदी के खतरे से बचने के लिए लोगों को अपने खर्च को कम करना चाहिए. पैसे बचाकर एक इमरजेंसी फंड तैयार करने की कोशिश करनी चाहिए. कम से कम छह महीने के सर्वाइवल के लिए तो फंड जरूर तैयार कर लेना चाहिए. इसके लिए महंगी चीजों की खरीदारी बंद कर देनी चाहिए. इसके अलावा मंदी के आने से पहले ही हेल्थ इंश्योरेंस जरूर ले लें. क्योंकि बीमारी एक ऐसी आपदा है, जो कब आ जाए, किसी को नहीं पता. इस वजह से आपके खर्च बढ़ सकते हैं और आपका बजट बिगड़ सकता है. इस स्थिति में अगर आपके पास हेल्थ इंश्योरेंस है, तो आपके लिए इलाज करवाना आसान होगा और इसके खर्च का बोझ भी आपके बजट पर नहीं पड़ेगा.
गोल्ड (Gold) में करें निवेश
मंदी की आशंका के बीच निवेशकों को गोल्ड में इन्वेस्टमेंट करना चाहिए. कहा जाता है कि सोना सकंट का साथी होता है. मंदी के दौर में रियल एस्टेट की वैल्यू गिरती है और अचानक से आए आर्थिक संकट के बीच आपके लिए ये फायदे का सौदा नहीं साबित होगा. दूसरी तरफ आर्थिक संकट के समय में गोल्ड की वैल्यू बढ़ती है. इसके साथ ही गोल्ड को मिनटों में कैश कराना संभव है. इसलिए गोल्ड आपको मंदी के दौर में संकट से बचा सकता है.