
अनिल अंबानी की एक और कंपनी दिवालिया होने की कगार पर है. डिफेंस के क्षेत्र में कार्यरत रिलायंस नेवल एंड इंजीनियरिंग के ऊपर 9,000 करोड़ रुपये से ज्यादा का कर्ज है. कई महीने से कंपनी इसका ब्याज नहीं दे पा रही और आईडीबीआई बैंक ने इसके लिए कंपनी द्वारा प्रस्तावित समाधान योजना को मानने से इंकार कर दिया है.
कंपनी को कर्ज देने वाले बैंक कंपनी के खिलाफ दिवालिया प्रक्रिया के लिए आवेदन करेंगे. इकोनॉमिक टाइम्स ने इस मामले से जुड़े एक बैंकिंग सूत्र के हवाले से यह खबर दी है. कर्जदाताओं ने अब कंपनी के कर्ज के रेजोल्युशन यानी समाधान निकालने की संभावना से इंकार किया है.
बैंक का मानना है कि अब इस कंपनी को दिवालिया कर उसकी परिसंपत्तियों को बेचना ही एकमात्र रास्ता है. एक बैंक अधिकारी ने अखबार से कहा, 'परेशान कंपनियों के लिए रेजोल्युशन प्लान तैयार करने की रिजर्व बैंक की डेडलाइन जुलाई की शुरुआत में ही खत्म हो चुकी है और रिलायंस नेवल ने जो प्रस्ताव भेजा था उसे कर्जदाताओं ने स्वीकार नहीं किया. रिलायंस नेवल किसी तरह का एकमुश्त भुगतान नहीं करना चाहती और यह चाहती है कि रेजोल्युशन के तहत बैंक कर्ज के बदले कंपनी में हिस्सा ले लें.'
गौरतलब है कि राफेल विमान का ऑफसेट सौदा डिफेंस सेक्टर के जिस अनुभव के आधार पर रिलायंस एडीएजी को मिला है उसमें से एक रिलायंस नेवल भी है. इसके अलावा समूह की डिफेंस सेक्टर से जुड़ी अन्य कंपनियों में रिलायंस डिफेंस और रिलायंस इन्फ्रास्ट्रक्चर शामिल है. राफेल का ऑफसेट सौदा हासिल करने के बाद रिलायंस एडीएजी और फ्रांस की कंपनी दसॉ ने मिलकर एक संयुक्त उद्यम दसॉ रिलायंस एयरोस्पेस लिमिटेड (DRAL) का गठन किया है.
गौरतलब है कि कुल मिलाकर 3.8 लाख करोड़ रुपये के 70 लोन खातों का समाधान निकालने के लिए रिजर्व बैंक ने 30 दिन का समय दिया था. समाधान न निकलने पर बैंक ऐसे मामलों को दिवालिया कार्यवाही के लिए नेशनल कंपनी लॉ ट्राइब्यूनल के पास भेज सकते हैं.
रिलायंस नेवल का पहले नाम पीपावाव डिफेंस ऐंड ऑफशोर इंजीनियरिंग था और यह जब एसकेआईएल ग्रुप के हाथ में थी, तब भी 2013 से ही वित्तीय संकट का सामना कर रही थी, इसके बावजूद अनिल धीरूभाई अंबानी समूह (ADAG) ने इसे खरीदा था. इसके पहले मार्च 2015 में कंपनी के कर्ज की रीस्ट्रक्चरिंग की गई थी.
रीस्ट्रक्चरिंग का मतलब कर्ज वापसी की शर्तों में बदलाव या रियायत देना होता है. ADAG ने जनवरी 2016 में इस कंपनी का नियंत्रण अपने हाथ में लिया था. ADAG को कंपनी का बकाया कर्ज चुकाने में काफी रकम खर्च करनी पड़ी.
आईडीबीआई बैंक ने पिछले साल ही आवेदन कर कहा था कि कंपनी के खिलाफ इनसाल्वेंसी और बैंकरप्शी की प्रक्रिया शुरू की जाए. वित्त वर्ष 2018-19 में रिलायंस नेवल को 9,399 करोड़ रुपये का शुद्ध घाटा हुआ है. इसके पिछले वित्त वर्ष में भी कंपनी को 406 करोड़ रुपये का नुकसान हुआ था. रिलायंस नेवल जहाज निर्माण कंपनी है और उसके पास युद्धपोत बनाने का लाइसेंस और ठेका है.