
सऊदी अरब में आरामको के तेल संयंत्र पर ड्रोन हमले से वैश्विक बाजार में कच्चे तेल की कीमतों में आग लग गई है. लंदन का ब्रेंट क्रूड फ्यूचर 19.5 फीसदी बढ़कर 71.95 डॉलर प्रति बैरल तक पहुंच गया. यह 14 जून 1991 के बाद कच्चे तेल की कीमतों में सबसे बड़ा उछाल है. इससे वैश्विक अर्थव्यवस्था को तो नुकसान होगा ही, सुस्ती का पहले से सामना कर रही भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए भी यह बड़ा झटका है.
अमेरिकी वेस्ट टेक्सास इंटरमीडिएट फ्यूचर 15.5 फीसदी चढ़कर 63.34 अरब प्रति बैरल तक पहुंच गया जो 22 जून, 1998 के बाद का सबसे ऊंचा स्तर है. जानकारों का मानना है कि सऊदी अरब के प्लांट में तेल आपूर्ति सामान्य होने में कई हफ्ते लग सकते हैं. इस हमले से करीब 5 फीसदी ग्लोबल सप्लाई पर असर पड़ा है. अगले एक हफ्ते में ही कच्चे तेल की कीमतों में 15 से 20 डॉलर प्रति बैरल की बढ़त हो सकती है.
100 डॉलर तक जाएगा क्रूड!
एक महीने के भीतर कच्चे तेल के 100 डॉलर प्रति बैरल के स्तर तक पहुंच जाने की आशंका है. आपूर्ति में बाधा की वजह से इस बात की आशंका भी है कि बाकी तेल कंपनियां जमाखोरी को बढ़ावा देंगी और काफी पैनिक सेंटिमेंट बन जाएगा. इसके पहले जुलाई 2008 में कच्चे तेल की अंतरराष्ट्रीय कीमत रेकॉर्ड 147 डॉलर प्रति बैरल तक पहुंच चुकी है.
आरामको दुनिया की सबसे बड़ी तेल कंपनी है
आरामको दुनिया की सबसे बड़ी तेल उत्पादक कंपनी है. शनिवार को सऊदी अरब में आरामको के अबक्वाइक और खुराइस तेल संयंत्र पर करीब 10 ड्रोन से हमले किए गए. इससे सऊदी अरब के कुल तेल उत्पादन क्षमता का करीब आधे हिस्से यानी 57 लाख प्रति बैरल प्रति दिन का उत्पादन बाधित हो गया. गौरतलब है कि दुनिया भर में कच्चे तेल का प्रति दिन 100 एमपीबीडी या 10 करोड़ बैरल प्रति दिन का उत्पादन होता है, जिसका करीब 10 फीसदी हिस्सा सऊदी अरब में उत्पादित होता है. ऐतिहासिक रूप से यह काफी बड़ा हमला है, इसलिए इसका असर भी ज्यादा होगा. तेहरान के हूती विद्रोहियों ने इस हमले की जिम्मेदारी ली है. इससे खाड़ी देशों में तनाव बढ़ गया है.
क्या होगा भारत पर असर
आरामको ने कहा है कि वह भारत सहित दुनिया के अन्य देशों को अपने तेल की आपूर्ति पर असर नहीं पड़ने देगी, लेकिन भारत के लिए खतरा असल में तेल की आपूर्ति बाधित होना नहीं, बल्कि अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की कीमतों में उछाल का आना है. भारत पिछली मंदी के दौर में भी इससे अपने हाथ जला चुका है. भारत में तेल की कीमतें अंतरराष्ट्रीय कच्चे तेल की कीमतों पर निर्भर होती हैं. इसका भारतीय अर्थव्यवस्था पर गहरा असर होता है. भारतीय अर्थव्यवस्था पहले से ही सुस्ती का सामना कर रही है, ऐसे में तेल की कीमतों से इस पर और गहरा असर होगा.
एक अनुमान के अनुसार तेल की कीमतों में प्रति डॉलर बढ़त से भारत का सालाना आयात बिल 10,700 करोड़ रुपये बढ़ जाता है. साल 2018-19 में भारत ने 111.9 अरब डॉलर मूल्य के तेल का आयात किया था. भारत पर ऐसे हमलों का खासतौर से असर इसलिए होता है, क्योंकि भारत अपनी कच्चे तेल की जरूरतों का 80 फीसदी और प्राकृतिक गैस की जरूरतों का 18 फीसदी आयात करता है. अमेरिका- चीन ट्रेड वॉर और वैश्विक मंदी के असर से पहले से ही तेल की कीमतों में उतार-चढ़ाव रहा है. तेल की कीमतें बढ़ने से भारतीय मुद्रा रुपये में भी भारी गिरावट आ सकती है.
वैश्विक हालात पर असर
इस हमले से जियो-पॉलिटिकल हालात भी तनावपूर्ण हो गए हैं, क्योंकि अमेरिका ने इस हमले के लिए ईरान को जिम्मेदार ठहराया है. लेकिन ईरान ने इससे साफ इंकार किया है. असल में यमन के हूती विद्रोहियों ने ही इस हमले की जिम्मेदारी ली है, लेकिन अमेरिका का कहना है कि यमन से यह हमला होने के सबूत नहीं हैं और हूती लोगों की तरफ से ईरान ने यह हमला किया है ताकि तेल की आपूर्ति बाधित किया जा सके. इस पर ईरान ने धमकी दी है कि वह जंग के लिए तैयार है. यूरोपीय संघ ने चेतावनी दी है कि इससे वैश्विक तनाव बढ़ेगा.
दुनिया में कच्चे तेल के ये हैं बड़े उत्पादक देश (मिलियन बैरल प्रति दिन या MPBD)
अमेरिका | 12.4 |
रूस | 11.3 |
सऊदी अरब | 9.8 |
कनाडा | 5.4 |
इराक | 4.8 |
ईरान | 2.2 |
तेल आपूर्ति पर कितना असर
आरामको के प्लांट पर इस हमले से तेल आपूर्ति में बहुत बाधा नहीं आने वाली. न्यूज एजेंसी रॉयटर्स के मुताबिक आरामको ने एक भारतीय इंडियन रिफाइनर को बताया है कि कच्चे तेल की आपूर्ति में कोई अवरोध नहीं आएगा और वह अन्य स्रोतों से लेकर कच्चे तेल की आपूर्ति करेगी. कंपनी ने कहा कि उसके पास पर्याप्त इन्वेंट्री है.
सऊदी अरब भारत में तेल एवं गैस का दूसरा सबसे बड़ा निर्यातक है, लेकिन भारत अब तेल के लिए अमेरिका पर ज्यादा निर्भर करता है और पिछले वर्षों में अमेरिका से भारत को कच्चे तेल का निर्यात तीन गुना बढ़ गया है.
सऊदी अरब के सबसे बड़े आयातक (मिलियन बैरल प्रति दिन या MPBD)
चीन | 1.88 |
जापान | 1.02 |
दक्षिण कोरिया | 0.89 |
भारत | 0.74 |
अमेरिका | 0.58 |
जानकारों का मानना है कि आरामको के उत्पादन में बाधा आने का भारत पर असर बहुत कम होगा. खासकर सरकारी तेल कंपनियों पर इसका ज्यादा असर नहीं होने वाला है. भारतीय तेल कंपनियां खरीद के मामले में काफी विविधता की रणनीति अपनाती हैं. भारत दुनिया का तीसरा सबसे तेल उपभोक्ता है .
भारत के पास है करीब 77 दिन का रिजर्व
एक अनुमान के अनुसार, भारत के पास कुल 77 दिन का कच्चे तेल का रिजर्व होता है. इंडियन स्ट्रेटेजिक पेट्रोल रिजर्व के पास 12 दिन के कच्चे तेल जरूरत का रिजर्व (करीब 5.33 मिलियन मीट्रिक टन) विशाखापत्तनम, मंगलुरु और पदुर बंदरगाह पर होता है. इसके अलावा भारतीय रिफाइनरी कंपनियां करीब 65 दिन का कच्चे तेल का रिजर्व रखती हैं.
भारत में रिलायंस से हुआ है आरामको का करार
दुनिया की सबसे बड़ी तेल कंपनी सऊदी आरामको ने रिलायंस इंडस्ट्रीज के केमिकल बिजनेस में 20 फीसदी हिस्सा $15 अरब में खरीदने का सौदा किया है. रिलायंस इंडस्ट्रीज ( RIL) को कंपनी के इतिहास का सबसे बड़ा निवेश मिला है.