
पब्लिक सेक्टर कंपनियों, बैंकों और बीमा कंपनियों में काम कर रहे पिछड़े वर्ग के अधिकारियों के लिए बुरी खबर है. अब उनके बच्चों को सरकारी नौकरियों और एडमिशन में आरक्षण का फायदा नहीं मिल सकेगा. सरकार ने बुधवार को कैबिनेट की बैठक में ओबीसी आरक्षण के नियमों में अहम बदलाव कर दिया है जिसके बाद अब क्रीमी लेयर में आने वाले लोगों में पीएसयू, बैंक और बीमा कंपनियों के अधिकारी भी शामिल हो गए हैं.
क्रीमी लेयर में आने वाले लोगों को आरक्षण नहीं मिलता है. अभी तक क्रीमी लेयर का नियम सिर्फ केन्द्र सरकार की नौकरियों में लागू होता था. देश में करीब 300 सरकारी कंपनियां हैं. अगर सरकारी बैंकों और बीमा कंपनियों को भी इसमें शामिल किया जाए तो इस फैसले का असर लाखों परिवारों पर पड़ेगा.
इस फैसले के बारे में बताते हुए वित्त मंत्री अरुण जेटली ने कहा कि ये फैसला पिछले 24 सालों से लटका हुआ था और इन संस्थानों में काम करने वाले ऐसे वरिष्ठ अधिकारियों के बच्चे भी आरक्षण का गलत फायदा उठा रहे थे जिन्हें दरअसल क्रीमी लेयर में आना चाहिए. इसका नतीजा ये होता था कि जिन निचले स्तर के कर्मचारियों के बच्चे आरक्षण पाने के असल में हकदार थे उनका हक मारा जा रहा था. अब नियमों में बदलाव करके इस गलती को सुधार लिया गया है.
लेकिन सरकारी कंपनियों, बैंकों और बीमा कंपनियों में पिछले 24 साल से उन पदों की पहचान ही नहीं हो पाई थी जिन्हें क्रीमी लेयर के लायक माना जाए. इसलिए इनमें काम करने वाले तमाम पिछले वर्ग के अधिकारियों के बच्चे भी इसका फायदा उठा रहे थे.
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अब सरकार ने उन पदों की पहचान कर ली है उनकी आमदनी चाहे कुछ भी हो, क्रीमी लेयर का हिस्सा माना जाएगा और उनके बच्चों को आरक्षण नहीं मिलेगा. जैसे सरकारी कंपनियों में काम करने वाले मैनेजर, एक्जीक्यूटिव लेवल के अधिकारी अब ए ग्रेड के अधिकारी माने जाएंगे और आरक्षण नहीं मिलेगा. बैंकों, वित्तीय संस्थानों और बीमा कंपनियों में जूनियर मैनेजमेंट ग्रेड स्केल 1 और इसके ऊपर के अधिकारियों के बच्चों को अब आरक्षण का लाभ नहीं मिलेगा.
कैबिनेट ने पिछले हफ्ते ही फैसला किया था कि क्रीमी लेयर की सीमा 6 लाख सलाना से बढ़ाकर 8 लाख रुपये कर दी गई है. यानी जिन लोगों की सलाना आय 8 लाख से ऊपर है वो अब क्रीमी लेयर में आएंगे और उनके बच्चों को आरक्षण का लाभ नहीं मिलेगा.
साथ ही यह फैसला भी किया था कि ओबीसी आरक्षण के कोटे के भीतर कोटा तय करने के लिए एक समिति बनाई जाएगी. यानी वहां भी इरादा यही है कि जो जातियां ओबीसी आरक्षण का सबसे ज्यादा हिस्सा हड़प जा रही हैं उनपर अंकुश लगाया जाए.