
सुपर पॉवर्स के लिए अफगानिस्तान हमेशा से चुनौती रही है. रूस ने 1979 में अफगानिस्तान पर कब्जा करने की कोशिश की लेकिन उसकी फौज के लिए अफगानिस्तान मौत का कुंआ साबित हुआ. फिर 9-11 हमले के बाद अमेरिका ने अफगानिस्तान में पनप रहे आतंकवाद पर लगाम लगाने के लिए अपनी फौज उतारी और बीते दो दशक से अफगानिस्तान उसके लिए दूसरा वियतनाम बन चुका है. अब नया 'सुपर पावर' बन रहे चीन की नजर अफगानिस्तान पर है. चीन इस रास्ते एशिया पर अपनी पकड़ बनाने की कवायद कर रहा है. क्या रूस और अमेरिका की तरह अब अफगानिस्तान में विफल होने की बारी चीन की है?
सीपीईसी में शामिल होगा अफगानिस्तान?
चीन की सरकारी न्यूज एजेंसी सिन्हुआ ने बोआओ फोरम फॉर एशिया की एक रिपोर्ट को आधार बनाते हुए अफगानिस्तान में चीन की एंट्री का दावा किया है. रिपोर्ट के मुताबिक चीन सरकार अपने वन बेल्ट वन रोड परियोजना के तहत चाइना पाकिस्तान इकोनॉमिक कॉरिडोर का दायरा बढ़ाते हुए अपने परियोजना का विस्तार अफगानिस्तान में करेगी. चीन सरकार को भरोसा है कि अफगानिस्तान इस परियोजना में शामिल होने के लिए तैयार है.
चीन के विदेश मंत्री वांग ई ने हाल ही में बयान दिया है कि दोनों चीन और पाकिस्तान का महत्वपूर्ण पड़ोसी अफगानिस्तान अपनी अर्थव्यवस्था को मजबूत करने के लिए चाइना पाकिस्तान इकोनॉमिक कॉरिडोर में जल्द से जल्द शामिल होना चाहता है. चीन सरकार का मानना है कि यदि अफगानिस्तान सीपीईसी में शामिल होता है तो उसके लिए सीपीईसी को सेंट्रल और वेस्टर्न इकोनॉमिक कॉरिडोर से जोड़ने का काम आसान हो जाएगा.
दुनिया पर कब्जा नहीं जोड़ने का काम हो रहा है: जिनपिंग
गौरतलब है कि मंगलवार को इसी बोआओ फोरम फॉर एशिया के मंच से राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने अमेरिका से जारी ट्रेड विवाद और दुनियाभर में उसकी आर्थिक विस्तार नीति के विरोध में उठ रही आवाज पर कहा कि मुक्त वैश्विक कारोबार की दिशा में चीन द्वारा उठाया गया कदम पूरी दुनिया को एक साथ बांधने का काम करेगा. वहीं चीन की आर्थिक नीतियों के बचाव में जिनपिंग ने दलील दी कि चीन ने अपनी ट्रेड पॉलिसी के तहत जिन देशों को एंट्री दी है उनके लिए चीन का रास्ता कभी बंद नहीं होगा और आने वाले दिनों में इस रास्ता का और विस्तार किया जाएगा.
पाकिस्तान जैसी डील चाहता है अफगानिस्तान
चीन और पाकिस्तान का मौजूदा आर्थिक रिश्ता अफगानिस्तान को सीपीईसी में लुभाने का काम कर रहा है. पाकिस्तान ने चीन को 1963 में पाक अधिकृत कश्मीर का हिस्सा देने का काम किया और इससे दोनों देशों की दोस्ती रंग लाई. पाकिस्तान के इस कदम के बाद लगातार चीन सरकार ने पाकिस्तान के इंफ्रा डेवलपमेंट में मदद करने का काम किया. यह इसी का नतीजा है कि बीते तीन साल से पाकिस्तान के आर्थिक विकास के लिए चीन ने 62 बिलियन डॉलर की सीपीईसी परियोजना में निवेश किया.
ट्रेड वॉर: तीसरे विश्व युद्ध के लिए तैयार चीन कर सकता है अमेरिका पर ये हमला भी
अब चीन सरकार पाकिस्तान में इंफ्रा डेवपलमेंट के सहारे अफगानिस्तान में जगह बनाने की तैयारी की है. दरअसल अफगानिस्तान एक लैंडलॉक्ड (बिना किसी समुद्री तट के) देश है जहां सांप्रदायिक कलह और आतंकवाद घर कर चुका है. हालांकि इसी सांप्रदायिक कलह और आंतकवाद के चलते 1970 के बाद के दशकों में रूस और अमेरिका के मंसूबे यहां विफल हो गए. नतीजा यह कि वैश्विक निवेशकों के लिए अफगानिस्तान दुनिया की सबसे खतरनाक जगहों की सूची में टॉप पर पहुंच गया.
भारत के लिए खतरे का संकेत
चीन अफगानिस्तान का सबसे बड़ा निवेशक है. चीन ने 2007 में 3 बिलियन डॉलर की डील के तहत अफगानिस्तान के अयनाक में कॉपर माइन को 30 साल की लीज पर लिया था. इस माइन से कॉपर को चीन पहुंचाने में लगभग 6 महीने का समय लगता था लेकिन दोनों देशों ने 2016 में रेलवे लाइन पर समझौता कर फ्रेट कॉरिडोर तैयार कर लिया और अब महज दो हफ्तों में कॉपर को चीन पहुंचाया जा रहा है. इस सफल प्रोजेक्ट के चलते चीन सरकार अफगानिस्तान को तेज आर्थिक विकास का खांका दे रही है. सीपीईसी में शामिल होने पर अफगानिस्तान में रोड और रेल नेटवर्क तैयार किया जाएगा जिससे वह अपने कारोबार को बढ़ाने के साथ-साथ सेंट्रल और वेस्टर्न एशिया के कारोबार में अपनी जगह बना सकेगा. वहीं चीन यह भी दावा कर रही है कि अफगानिस्तान का आर्थिक विकास ही उसे आतंकवाद से छुटकारा दिला सकता है.
गौरतलब है कि भारत ने चीन के वन बेल्ट बन रोड परियोजना में शामिल होने पर आपत्ति उठाई है. पाकिस्तान द्वारा अदिकृत कश्मीर का हिस्सा चीन को देने और सीपीईसी को पाक अधिकृत कश्मीर के अंदर ले जाने से भारत की संप्रभुता खतरे में है. हालांकि भारत ने महज इस मुद्दे को छोड़कर चीन के प्रोजेक्ट पर कोई सवाल नहीं खड़ा किया है. वहीं चीन भी लगातार कोशिश में है कि किसी तरह भारत को इसमें शामिल किया जाए. गौरतलब है कि अगले कुछ महीनों में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी चीन के दौरे पर जा रहे हैं और उम्मीद की जा रही है कि इस प्रोजेक्ट को लेकर अहम फैसले लिए जा सकते हैं.