
देश में 8 नवंबर को नोटबंदी का ऐलान करने के बाद प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जापान के दौरे पर चले गए थे. खासबात है कि केन्द्र सरकार ने देश में नोटबंदी का ऐलान कर भारत को डिजिटल इकोनॉमी बनाने की कवायद की. लेकिन इस ऐलान के तुरंत बाद जापान की यात्रा पर पहुंचे पीएम मोदी वहां रुबरू हुए कैश इकोनॉमी से और वह भी टॉप गेयर में चलने वाली.
जापान की ज्यादातर दुकानें आज भी क्रेडिट कार्ड और डेबिट कार्ड के माध्यम से पैसे नहीं लेती. जिसके चलते वहां लोग अपने जेब में ढेरों कैश लेकर चलते हैं. इसके चलते न तो जापान की अर्थव्यवस्था में कोई दिक्कत होती है और न ही खरीदारी करने में किसी को फुटकर की समस्या झेलनी पड़ती है.
हालांकि बीते कुछ साल से ट्रांजैक्शन के नए कैशलेस माध्यमों (क्रेडिट और डेबिट कार्ड, एप्पल पे) ने जापान में जगह बनाई है लेकिन बीते 20 वर्षों के दौरान कैश ट्रांजैक्शन दोगुना हो चुका है. जापान के केन्द्रीय बैंक के आंकड़े कहते हैं कि अक्टूबर 2016 तक जापान की अर्थव्यवस्था में 101 ट्रिलियन येन कैश में मौजूद था. वहीं 2014 तक जापान में होने वाले कुल ट्रांजैक्शन में 80 फीसदी हिस्सा कैश का था.
कार्ड भी है लेकिन कैश इज किंग
इस कैश व्यवस्था में ऐसा नहीं है कि प्लास्टिक मनी या कैशलेस कार्ड मौजूद नहीं है. जापान ने सबसे पहले क्रेडिट कार्ड का इस्तेमाल 1960 में किया था जब मारुती डिपार्टमेंटल स्टोर ने खरीदारी के लिए ग्राहकों को यह कार्ड जारी किया था. आज जापान में लगभग 32 करोड़ ऐसे क्रेडिट कार्ड मौजूद हैं, यानी प्रति व्यस्क तीन क्रेडिट कार्ड.
इसे भी पढ़ें: नोटबंदी मूर्खतापूर्ण फैसला, 10 में से माइनस 10 नंबरः चिदंबरम
अंतरराष्ट्रीय प्लास्टिक मनी कंपनी मास्टर कार्ड के मुताबिक आज भी जापान में 38 फीसदी से ज्यादा ट्रांजैक्शन कैश में होता है. यह फ्रांस में कैश ट्रांजैक्शन का पांच गुना है. वहीं अमेरिका में 20 फीसदी और इंग्लैंड में महज 11 फीसदी कैश ट्रांजैक्शन होता है.
आखिर क्यों जापान में 'कैश इज किंग'
कैश के प्रचलन के पीछे सबसे बड़ा तर्क दिया जाता है कि यह सबसे सुरक्षित माध्यम है. जापान में चोरी, छीनाछपटी और डकैती न के बराबर है. लोग यहां अपनी जेब या बैग में ढ़ेरों कैश लेकर चलने में डरते नहीं हैं. आलम यह है कि यदि पैसों से भरा आपका पर्स कहीं गिर जाए तो बस इंतजार कीजिए, कोई न कोई जल्द उसे आपके पते पर पहुंचा देगा और पर्स में पता या आईडी न होने की सूरत में नजदीकी पुलिस स्टेशन पर वह निश्चित मिल जाएगा.
इसे भी पढ़ें: कांग्रेस का वार- नोटबंदी में छोटी मछलियां फंसी, मगरमच्छ निकलने में हुए कामयाब
छोटे दुकानदारों की मजबूरी है कैश
कैश का दूसरा महत्व देशभर में मौजूद छोटे किराना स्टोर और खाने-पीने की दुकानों के कारण है. ये छोटे और मझोले दुकानदार बैंकों द्वारा जारी क्रेडिट और डेबिट कार्ड के माध्यम से ट्रांजैक्शन पर फीस की शर्तों पर तैयार नहीं हो पाते, लिहाजा वह इन माध्यमों को पूरी तरह से निकार देते हैं. इसके अलावा ऐसे दुकानदारों को दूसरा बड़ा फायदा इनकम टैक्स में बचत के रूप में मिलता है क्योंकि आमतौर पर वह प्रति वर्ष कारोबार में घाटे का रिटर्न भरते हैं. लेकिन उनकी संख्या इतनी बड़ी है कि सरकार इनकम टैक्स थोपने से कतराती है.
एटीएम टेक्नोलॉजी में सबसे आगे जापान
टेक्नोलॉजी के मामले में जापान दुनिया का अग्रणी देश है. टेक्नोलॉजी की धमक जापान के सभी बड़े शहरों में साफ तौर पर देखी जा सकती है. इसी का नतीजा है कि जापान की राजधानी समेत देश के बड़े शहरों में मौजूद बैंकों की एटीएम मशीने कैश देने के साथ-साथ नोट और सिक्कों का आदान प्रदान भी करते हैं. आपको यदि किसी दुकानदार को पैसे अदा करने हों, स्वाभाविक है कि वह कैश की उम्मीद करेगा, और आपके पास सिर्फ डेबिट या क्रेडिट कार्ड है. तो परेशानी की बात नहीं है क्योंकि आप अपने कार्ड से किसी एटीएम से नोट और सिक्के निकाल सकते हैं. यदी आपके पास पैसे सिर्फ नोट में हैं तो आप एटीएम से मुफ्त में सिक्कों में फुटकर प्राप्त कर सकते हैं. इसके अलावा सिक्कों के एवज में ज्यादातर एटीएम मशीन आपको नोट भी प्रदान कर देगी और यह सभी व्यवस्था मुफ्त है क्योंकि जापान में कैश इज किंग.
अब आप ही बताएं जब जापान अपनी सैकड़ों साल पुरानी अर्थव्यवस्था को बिना बदले चला सकता है तो क्या प्रधानमंत्री मोदी को नोटबंदी के फैसले के बाद तुरंत की जापान यात्रा पर यह हुनर नहीं सीखना था. जापान के शहरों की तरह भारत के शहर भी अमेरिका और यूरोप हो चुके हैं. हालांकि शहरों से बाहर निकलते ही जैसे असली जापान शुरू होता है ठीक वैसे ही भारत के शहरों के बाहर गांवों का असली भारत शुरू होता है. मोदी जी क्या वाकई जरूरी था कि हजारों साल पुरानी गांवों की नोट और सिक्कों वाली विश्वास की अर्थव्यवस्था को खत्म कर क्रेडिट और डेबिट वाली उधार की व्यवस्था को लागू करना?