
डिमॉनेटाइजेशन अर्थव्यवस्था के लिए कमरतोड़ कसरत है. इस प्रक्रिया के शुरू होते ही असर पड़ना शुरू हो जाता है. आम आदमी से लेकर देश की सरकार और बड़ी से बड़ी कंपनी पर इसके असर से नहीं बचती हैं. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने नवंबर के दूसरे हफ्ते में डिमॉनेटाइजेशन की प्रक्रिया का ऐलान किया और देश की अर्थव्यवस्था में संचालित हो रही 14 लाख करोड़ की करेंसी (500 और 1000 की नोट में) को गैरकानूनी करार दे दिया. इस ऐलान का वक्त देश के शेयर बाजार में लिस्टेड कंपनियों के लिए बड़ी मुसीबत बनकर सामने खड़ा है.
डिमॉनेटाइजेशन और लिस्टेड कंपनियां
ऐलान के तुरंत बाद आम आदमी के साथ-साथ देश के सभी कारोबार में गैरकानूनी नोटों को बदलवाने की मुहिम शुरू हो चुकी है. इसका सीधा असर शेयर बाजार पर भी पड़ रहा है. ज्यादातर कंपनियों के शेयर भाव
में लगातार गिरावट दर्ज हो रही है. इस गिरावट के अलावा भी शेयर बाजार में लिस्टेड कंपनियों के लिए यह प्रक्रिया बेहद गंभीर नतीजे देने जा रही है.
दरअसल, नवंबर का महीना लिस्टेड कंपनियों की तीसरी तिमाही (अक्टूबर, नवंबर और दिसंबर) के मध्य में है. दिसंबर खत्म होते ही सभी कंपनियों को 45 दिन के भीतर अपना तिमाही नतीजा शेयर बाजार से साझा करना होगा. अब कंपनियों की सबसे बड़ी चिंता यही है कि तीसरी तिमाही के मध्य में शुरू हुआ करेंसी संकट उनके कारोबार को अगले कुछ महीनों तक परेशान करेगा और एक बात सभी को साफ है कि जनवरी की शुरुआत में आने वाले उनके तिमाही नतीजे औंधे मुंह गिरे होंगे.
क्यों कंपनियां देती हैं तिमाही नतीजा
शेयर बाजार में लिस्ट होने वाली कंपनियों के लिए प्रावधान है कि वह एक वित्त वर्ष में चार बार कंपनी का इनकम, एक्सपेंडीचर और मुनाफे का पूरा ब्यौरा साझा करें. देश में वित्त वर्ष अप्रैल से शुरू होता है और नए साल
की मार्च में खत्म होता है. लिहाजा कंपनियों के लिए पहली तिमाही अप्रैल-मई-जून, दूसरी तिमाही जुलाई-अगस्त-सितंबर, तीसरी तिमाही अक्टूबर-नवंबर-दिसंबर और चौथी तिमाही जनवरी-फरवरी-मार्च होती है. इन तिमाही
नतीजों के जरिए कंपनियां शेयर बाजार को अपने फाइनेंनशियल स्वास्थ की पूरी जानकारी देती है. इस जानकारी के आधार पर ही बाजार में निवेशक किसी कंपनी के शेयर को खरीदने अथवा बेचने का फैसला लेता है.
किसी भी तिमाही का बेहतर नतीजा कंपनियों का शेयर भाव बढ़ा देता है. उसके शेयरों की खरीदारी बढ़ जाती हैं. वहीं खराब तिमाही नतीजों से कंपनियों को शेयर मार्केट में नुकसान उठाना पड़ता है क्योंकि निवेशक कंपनी
से मुंह मोड़ना शुरू कर देते हैं.
तीसरी तिमाही क्यों होती है सबसे महत्वपूर्ण
केन्द्र सरकार के बजट की तरह ही प्रत्येक वित्त वर्ष की शुरुआत में सभी कंपनियां अपना वार्षिक प्लान तैयार करती है. इस वार्षिक प्लान को लागू करने की तैयारी आमतौर पर पहली तिमाही में किया जाता है. मसलन,
कंपनी का विस्तार, विस्तार के लिए कर्ज आदि की व्यवस्था इत्यादि.
दूसरी तिमाही के दौरान कंपनी का पूरा जोर अपने वार्षिक प्लान को प्रभावी करने में रहता है. आमतौर पर इस तिमाही में कंपनी अपना खर्च बढ़ा देती है.
तीसरी तिमाही किसी भी कंपनी के वार्षिक प्लान के हिसाब से बेहद महत्वपूर्ण रहता है. विस्तार संबंधी सभी काम दूसरी तिमाही में पूरा किया जा चुका होता है. इस तिमाही में कंपनियों का पूरा जोर अपनी आय को बढ़ाने पर रहता है. फेस्टिव सीजन की शुरुआत से लेकर नए साल से, वहीं चौथी तिमाही शुरू होते ही एक बार फिर कंपनियों की प्राथमिकता वार्षिक हिसाब-किताब को पूरा करना और कर्ज इत्यादि को पाटने की हो जाती है.
करेंसी संकट जारी, पीक सीजन में गिरेगी कंपनियों की सेल
तीसरी तिमाही आते-आते देश में क्रय क्षमता बढ़ जाती है. साल की सबसे महत्वपूर्ण खरीफ फसल अक्टूबर के अंत तक तैयार होकर बाजार पहुंचना शुरू हो जाती है. अक्टूबर, नवंबर और दिसंबर के दौरान देश में किसानों
की जेब में पैसा पहुंच जाता है. इसके चलते कंपनियों की नजर देश की रूरल मार्केट पर रहती है. वहीं अर्बन मार्केट की क्रय क्षमता इन महीनों में दीपावली, दुर्गा पूजा और न्यू ईयर के फेस्टिव सीजन में बढ़ जाती है.
लेकिन डिमॉनेटाइजेशन के असर से नवंबर की शुरुआत में ही देश में करेंसी संकट शुरू हो गया है. इस संकट में जहां घर पर रखा कैश बदले जाने का इंतजार कर रहा है वहीं देशभर में खरीदारी केवल जरूरत मात्र की हो
रही है. अब कंपनियों को खतरा इस बात का सता रहा है कि यदि मार्केट में करेंसी संकट जल्द नहीं खत्म हुआ तो अर्बन और रूरल मार्केट में खरीदारों में सुस्ती रहेगी और साल की सबसे महत्वपूर्ण तिमाही उनके लिए
पूरी ध्वस्त हो जाएगी.