
डीजल की कीमत दिल्ली में पेट्रोल से ज्यादा हो गई है. इसके साथ ही इस पर राजनीतिक टीका-टिप्पणी भी शुरू हो गई. पेट्रोलियम मंत्रालय का कहना है कि दिल्ली में पेट्रोल की तुलना में डीजल के अधिक महंगे होने का कारण मई 2020 में दिल्ली की केजरीवाल सरकार द्वारा डीजल पर वैल्यू एडेड टैक्स (वैट) में की गई बेतहाशा वृद्धि है. लेकिन सच क्या है? पेट्रोल-डीजल से किसका भर रहा खजाना? आइए पड़ताल करते हैं.
25 जून यानी गुरुवार को दिल्ली में पेट्रोल की कीमत 79.92 रुपये रही. वहीं, डीजल के भाव 79.88 रुपये से बढ़कर 80.02 रुपये प्रति लीटर हो गए है. भारतीय इतिहास में पहली बार डीजल ने 80 रुपये के भाव को पार किया है.
इसे भी पढ़ें: जनता पर पड़ेगी महंगाई की मार, अबकी बार पेट्रोल-डीजल जा सकता है 100 के पार!
पेट्रोल-डीजल सबके लिए कमाई के मोटे स्रोत
पेट्रोल-डीजल राज्य और केंद्र सरकारों के लिए कमाई के मोटे स्रोत होते हैं. दूसरी तरफ, पेट्रोलियम कंपनियां तो कारोबार ही मुनाफे के लिए कर रही हैं. तो वे भला कमाई क्यों न करें, तो इसीलिए पेट्रोल-डीजल के दाम बढ़ते जा रहे हैं. शराब और पेट्रोल पर लगने वाले टैक्स कई राज्यों का राजस्व का एक-तिहाई से ज्यादा हिस्सा होता है. इसकी वजह से जब लॉकडाउन में राजस्व की भारी तंगी हो गई तो राज्य सरकारों ने पेट्रोल-डीजल पर वैट बढ़ाना शुरू किया और कई राज्यों में शराब की बिक्री खोल दी गई. पिछले महीने यानी मई के पहले हफ्ते में दिल्ली, हरियाणा, उत्तर प्रदेश जैसे कई राज्यों ने डीजल पर वैट बढ़ाया था.
इसके अलावा यह केंद्र सरकार के लिए भी कमाई का मोटा स्रोत है. मई में ही केंद्र सरकार ने भी पेट्रोल पर एक्साइज में 10 रुपये लीटर और डीजल पर एक्साइज में 13 रुपये लीटर की सीधे बढ़त कर दी थी. इसके पहले केंद्र सरकार ने 14 मार्च को पेट्रोल-डीजल दोनों पर उत्पाद शुल्क में तीन रुपये प्रति लीटर की बढ़ोतरी की थी. हालांकि इसका पूरा बोझ पेट्रोलियम कंपनियों ने ग्राहकों पर नहीं डाला था. लेकिन अब तेल कंपनियों के मार्जिन पर चोट पड़ रही है और रुपये में भी गिरावट आ रही है. इससे तेल कंपनियों की चिंता बढ़ी है, क्योंकि इसका मतलब यह है कि अब उन्हें कच्चा तेल खरीदने के लिए ज्यादा रकम खर्च करनी पड़ेगी. इसलिए तेल कंपनियां लगातार इसका बोझ ग्राहकों पर डाल रही हैं. 16 मार्च के बाद से पेट्रोलियम कंपनियों ने जून के पहले हफ्ते तक रेट में कोई बढ़ोतरी नहीं की थी.
एक साल में 5 लाख करोड़ से ज्यादा की कमाई
केंद्र और राज्य सरकारों को पेट्रोलियम उत्पादों पर टैक्स लगाकर एक साल में 5 लाख करोड़ रुपये से ज्यादा का राजस्व मिलता है. पेट्रोलियम प्लानिंग ऐंड एनालिसिस सेल के मुताबिक वर्ष 2019-20 में पेट्रोलियम उत्पादों पर टैक्स से केंद्र सरकार ने कुल 3,34,315 करोड़ रुपये का राजस्व हासिल किया था. इसी दौरान पेट्रोलियम उत्पादों पर राज्यों के खजाने में कुल 2,20,810 करोड़ रुपये पहुंचे थे. इस प्रकार केंद्र और राज्य सरकारों की कुल 5,55,125 करोड़ रुपये की कमाई हुई थी.
दिल्ली में वैट से डीजल के दाम बढ़ने का अधूरा सच
यह कहना सही है कि दिल्ली में वैट बढ़ने से डीजल का दाम बढ़ गया है, लेकिन यह आधा सच ही है. दिल्ली सरकार ने पिछले महीने पेट्रोल और डीजल पर वैट काफी बढ़ा दिया था. दिल्ली में डीजल पर वैट 17 फीसदी से बढ़ाकर सीधे 30 फीसदी कर दिया गया था. इसकी वजह से दिल्ली में डीजल की कीमतें अचानक 7.10 रुपये लीटर बढ़कर 69.39 रुपये प्रति लीटर तक पहुंच गईं. इसी तरह दिल्ली सरकार ने पेट्रोल पर वैट 27 से बढ़ाकर 30 फीसदी कर दिया था जिसकी वजह से पेट्रोल का दाम तत्काल 1.67 रुपये लीटर बढ़कर 71.26 रुपये प्रति लीटर तक पहुंच गया था.
लेकिन डीजल की इस कीमत को करीब 70 रुपये से 80 रुपये तक पहुंचाने में काफी हद तक पेट्रोलियम कंपनियों का हाथ रहा है. पेट्रोलियम कंपनियों ने पिछले 19 दिन से जो लगातार रेट बढ़ाए हैं उसकी वजह से दिल्ली में डीजल 80 रुपये लीटर को पार कर कर गया है.
किसने कितना लिया टैक्स
इंडियन ऑयल ने डीजल की कीमत कैसे तय हो रही, इसका नवीनतम ब्योरा नहीं दिया है. लेकिन एक हफ्ते पहले के आंकड़े के मुताबिक जब दिल्ली में डीजल की कीमत 75 रुपये लीटर थी तब इस पर दिल्ली सरकार 17.60 रुपये प्रति लीटर का वैट ले रही थी और केंद्र सरकार 31.83 रुपये प्रति लीटर की एक्साइज ड्यूटी ले रही थी. यानी 75 रुपये लीटर डीजल में कुल करीब 50 रुपये का टैक्स. यह टैक्स न हो तो डीजल करीब 25 रुपये लीटर ही पड़े.
इसे भी पढ़ें: क्या वाकई शराब पर निर्भर है राज्यों की इकोनॉमी? जानें कितनी होती है कमाई?
सभी राज्यों ने बढ़ाए हैं वैट
उत्तर प्रदेश में पेट्रोल पर वैट में 2 रुपये लीटर और डीजल पर वैट में 1 रुपये लीटर की एकमुश्त बढ़त की गई थी.मध्य प्रदेश सरकार ने कोरोना संकट में नकदी की तंगी से बचने के लिए पेट्रोल और डीजल पर 1 रुपये लीटर का सेस लगा दिया था. राज्य में पेट्रोल-डीजल पर वैट पहले से काफी ज्यादा है. इससे सरकार को 570 करोड़ रुपये का अतिरिक्त राजस्व मिलने की उम्मीद है.
इसके पहले कमलनाथ की कांग्रेस सरकार ने सितंबर में ही पेट्रोल और डीजल पर वैट बढ़ा दिया था. इसके बाद एमपी में पेट्रोल पर 33 फीसदी और डीजल पर 23 फीसदी का वैट लगता है. महाराष्ट्र, कर्नाटक, पश्चिम बंगाल जैसे राज्य के इसके पहले 1 अप्रैल को ही वैट बढ़ा चुके हैं.
पंजाब सरकार ने भी डीजल पर वैट 11.80 फीसदी से बढ़ाकर 15.15 फीसदी कर दिया था और पेट्रोल पर वैट 20.11 फीसदी से बढ़ाकर 23.30 फीसदी कर दिया था. इसकी वजह से राज्य में पेट्रोल और डीजल की कीमतें 2 रुपये लीटर बढ़ गई थीं.
वैट बढ़ने से ये फर्क जरूर पड़ता है
मई में ही केंद्र सरकार ने भी पेट्रोल पर एक्साइज में 10 रुपये लीटर और डीजल पर एक्साइज में 13 रुपये लीटर की सीधे बढ़त कर दी थी, लेकिन इसका पूरा बोझ पेट्रोलियम कंपनियों ने ग्राहकों पर नहीं डाला था. दूसरी तरफ राज्य जब वैट बढ़ाते हैं तो उसका पूरा बोझ ग्राहकों पर ही पड़ता है. यानी कीमत में तत्काल उतनी बढ़त हो जाती है, क्योंकि ये टैक्स राज्य में लगते हैं. यानी केंद्र के टैक्स के बोझ से पेट्रोलियम कंपनियां बचा सकती हैं, लेकिन राज्यों के टैक्स बढ़ते ही उनका पूरा असर ग्राहकों पर आता है.