उर्जित पटेल को मिली नई जिम्मेदारी, RBI गवर्नर पद से दिया था इस्तीफा

रिजर्व बैंक के पूर्व गवर्नर उर्जित पटेल नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ पब्लिक फाइनेंस एंड पॉलिसी (एनआईपीएफपी) के चेयरमैन नियुक्त किए गए हैं.

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साल 2018 में दिया था इस्तीफा साल 2018 में दिया था इस्तीफा

aajtak.in

  • नई दिल्ली,
  • 19 जून 2020,
  • अपडेटेड 8:37 PM IST

  • उर्जित पटेल ने आरबीआई गवर्नर पद से इस्तीफा दे दिया था
  • पटेल का 3 साल का कार्यकाल सितंबर, 2019 में पूरा होना था

रिजर्व बैंक के पूर्व गवर्नर उर्जित पटेल को नई जिम्मेदारी मिली है. दरअसल, उर्जित पटेल नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ पब्लिक फाइनेंस एंड पॉलिसी (एनआईपीएफपी) के चेयरमैन नियुक्त किए गए हैं. उर्जित पटेल से पहले इस पद पर विजय केलकर थे. केलकर ने 2014 में पद संभाला था. बहरहाल, उर्जित पटेल 22 जून को एनआईपीएफपी के चेयरमैन पद को संभालेंगे.

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इसकी जानकारी देते हुए ​एनआईपीएफपी ने बयान में कहा, ‘‘हमें इस बात की खुशी है कि रिजर्व बैंक के पूर्व गवर्नर उर्जित पटेल 22 जून, 2020 से चार साल के लिए संस्थान के चेयरपर्सन के रूप में हमसे जुड़ रहे हैं.’’ आपको बता दें कि एनआईपीएफपी का मुख्य उद्देश्य सार्वजनिक अर्थशास्त्र से संबंधित क्षेत्रों में नीति निर्माण में योगदान देना है. इस संस्था को वित्त मंत्रालय, भारत सरकार के अलावा और विभिन्न राज्य सरकारों से वार्षिक अनुदान सहायता मिलता है.

उर्जित पटेल ने दिया था इस्तीफा

साल 2018 के दिसंबर महीने में उर्जित पटेल ने आरबीआई गवर्नर के कार्यकाल पूरा होने से पहले ही इस्तीफा दे दिया था. उन्होंने अपना इस्तीफा केंद्रीय बैंक के बोर्ड की महत्वपूर्ण बैठक से पहले दिया था. इस बैठक में सरकार के साथ मतभेदों को दूर करने पर बातचीत होनी थी.

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पटेल का तीन साल का कार्यकाल सितंबर, 2019 में पूरा होना था. वह दूसरे कार्यकाल के लिए भी पात्र थे. हालांकि, उर्जित पटेल ने इस्तीफा देने के पीछे निजी कारण बताया था. उर्जित पटेल के इस्तीफे के बाद शक्तिकांत दास ने रिजर्व बैंक के गवर्नर का पद संभाला है.

नोटबंदी के फैसले पर भी उठाए थे सवाल!

उर्जित पटेल जब रिजर्व बैंक के गवर्नर नियुक्त किए गए थे. उसके 3 महीने के भीतर नोटबंदी का फैसला लिया गया. बीते साल आरटीआई में ये खुलासा हुआ कि नोटबंदी के फैसले को लेकर रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया ने मोदी सरकार को आगाह किया था. दरअसल, आरबीआई इस तर्क से सहमत नहीं था कि काले धन का लेनदेन कैश के जरिए होता है.

आरबीआई का मानना था कि काला धन कैश के बजाए सोना और रियल एस्‍टेट जैसी संपत्तियों में लगा है. यह जानकारी सूचना के अधिकार कानून के तहत आरटीआई कार्यकर्ता वेंकटेश नायक को मिली थी. उन्‍होंने यह जानकारी कॉमनवेल्थ ह्यूमन राइट इनिशिएटिव (सीएचआरआई) की वेबसाइट पर डाली थी.

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