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नीति आयोग के सदस्‍य ने की 2 जीएसटी स्‍लैब की मांग, दिए ये सुझाव

नीति आयोग के सदस्य रमेश चंद ने कहा है कि जीएसटी के तहत सिर्फ दो स्लैब होने चाहिए. इसके साथ ही उन्होंने कहा कि जीएसटी की दरों में बार-बार बदलाव नहीं किया जाना चाहिए.

जीएसटी के दो स्‍लैब की हो रही मांग जीएसटी के दो स्‍लैब की हो रही मांग
aajtak.in
  • नई दिल्‍ली,
  • 26 दिसंबर 2019,
  • अपडेटेड 9:30 AM IST

  • नीति आयोग के सदस्य रमेश चंद ने की 2 स्‍लैब की मांग
  • जीएसटी स्‍लैब में बार-बार बदलाव नहीं करने की सलाह

बीते कुछ दिनों से माल एवं सेवा कर (जीएसटी) स्‍लैब में बदलाव को लेकर तरह-तरह की मांग हो रही है. इस बीच, केंद्र सरकार के थिंक टैंक नीति आयोग की ओर से भी जीएसटी स्‍लैब में बदलाव की मांग की गई है. न्‍यूज एजेंसी पीटीआई के मुताबिक नीति आयोग के सदस्य रमेश चंद ने कहा है कि जीएसटी के तहत सिर्फ दो स्लैब होने चाहिए. इसके साथ ही उन्होंने जीएसटी स्‍लैब में बार-बार बदलाव नहीं करने की सलाह दी है.

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रमेश चंद ने जीएसटी की स्‍लैब में बार-बार बदलाव पर आपत्ति जताते हुए कहा कि प्रत्येक क्षेत्र द्वारा जीएसटी के स्‍लैब कम करने की मांग प्रवृत्ति बन गई है, जिससे समस्याएं पैदा होती हैं. उन्‍होंने कहा, ‘‘मेरा मानना है कि जीएसटी के मुद्दे स्‍लैब को कम करने से कहीं बड़े हैं.’’रमेश चंद ने आगे कहा कि हमें अधिक स्‍लैब नहीं रखने चाहिए. सिर्फ दो स्‍लैब होने चाहिए.

रमेश चंद ने कहा कि हमें स्‍लैब में बदलाव के बजाए अपना ध्यान नई इनडायरेक्‍ट टैक्‍स व्यवस्था से रेवेन्‍यू कलेक्‍शन बढ़ाने पर लगाना चाहिए. उन्होंने कहा कि अगर स्‍लैब में बदलाव करने की जरूरत है भी, तो यह वार्षिक आधार पर होना चाहिए. इसके साथ ही उन्‍होंने डेयरी उत्पादों पर जीएसटी की दरें घटाने की मांग पर कहा कि ऐसे उत्पादों पर 5 फीसदी की दर बेहद सही है. बता दें कि नीति आयोग के सदस्य रमेश चंद कृषि अर्थशास्त्री हैं.

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जीएसटी के अभी चार स्‍लैब

अभी जीएसटी के तहत चार स्लैब....5 प्रतिशत, 12 प्रतिशत, 18 प्रतिशत और 28 प्रतिशत हैं.कई उत्पाद ऐसे हैं जिनपर जीएसटी नहीं लगता. वहीं पांचे ऐसे उत्पाद हैं जिनपर जीएसटी के अलावा सेस भी लगता है. बता दें कि जीएसटी को एक जुलाई, 2017 को लागू किया गया. सभी अप्रत्यक्ष कर इसमें समाहित हो गए. उस समय से जीएसटी की दरों में कई बार बदलाव किया जा चुका है. केंद्रीय वित्त मंत्री की अगुवाई वाली जीएसटी काउंसिल वस्तुओं और सेवाओं पर टैक्‍स की दर तय करती है. इस काउसिंल में सभी राज्यों के वित्त मंत्री भी शामिल होते हैं.

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