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नहीं दोहराई जाएगी सुखोई वाली 'गलती', लड़ाकू विमान डील में सिर्फ 'मेक इन इंडिया'

रूस से हजारो करोड़ में सुखोई लड़ाकू विमान खरीदने के बाद भी भारत इस विमान को खुद मैन्यूफैक्चर नहीं कर पाया. वजह इस डील में रूस ने भारत को इस लड़ाकू विमान की मैन्यूफैक्चरिंग के लिए जरूरी टेक्नोलॉजी नहीं दी थी.

सुखोई की विफलता से सबक, डिफेंस डील में मेक इन इंडिया सुखोई की विफलता से सबक, डिफेंस डील में मेक इन इंडिया
राहुल मिश्र
  • नई दिल्ली,
  • 09 मार्च 2017,
  • अपडेटेड 10:29 AM IST

रूस से हजारो करोड़ में सुखोई लड़ाकू विमान खरीदने के बाद भी भारत इस विमान को खुद मैन्यूफैक्चर नहीं कर पाया. वजह इस डील में रूस ने भारत को इस लड़ाकू विमान की मैन्यूफैक्चरिंग के लिए जरूरी टेक्नोलॉजी नहीं दी थी.

अब अपनी रक्षा जरूरतों के लिए भारत को रूस से नवीनतम पांचवे जनरेशन का लड़ाकू विमान खरीदना है. भारत सरकार ने फैसला लिया है कि इस बार रूस के साथ डील इस बात पर निर्भर करेगी कि वह भारत में मैन्यूफैक्चरिंग के लिए जरूरी सभी टेक्नोलॉजी लड़ाकू विमान के साथ देगी.

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क्यों जरूरी है मेक इन इंडिया
भारत के लिए नए लड़ाकू विमान की डील बेहद जरूरी है. चौथे जेनरेशन के सुखोई विमान को भारत ने रूस सरकार से 55,717 करोड़ रुपये खर्च कर खरीदे थे. रूस से खरीदे गए 272 सुखोई विमान में 240 विमान की एसेंब्ली का काम सरकारी डिफेंस मैन्यूफैक्चरर हिंदुस्तान एरोनॉटिक्स ने किया.

लेकिन पूरी टेक्नोलॉजी न मिलने के कारण एचएएल पूरी तरह से विदेशी पुर्जो निर्भर रहे. इसका अंदाजा इसी बात से लगता है कि एचएएल द्वारा एसेंबल किए गए सुखोई विमान पर लागत 450 करोड़ रुपये आती है और रूस में बने सुखोई को भारत 350 करोड़ में खरीद सकता है.

 

 

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