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मंदसौर किसान आंदोलन का नोटबंदी कनेक्शन, कैश की किल्लत वजह तो नहीं?

मंदसौर में बीते हफ्ते पुलिस फायरिंग में 5 किसानों की मौत हो गई थी. पुलिस फायरिंग उस वक्त की गई जब वह अपनी 20 सूत्रीय मांगों के लिए उग्र प्रदर्शन कर रहे थे.

मंदसौर के किसानों का नोटबंदी कनेक्शन मंदसौर के किसानों का नोटबंदी कनेक्शन
राहुल मिश्र/सुप्रिया भारद्वाज
  • नई दिल्ली,
  • 12 जून 2017,
  • अपडेटेड 5:42 PM IST

मंदसौर में बीते हफ्ते पुलिस फायरिंग में 5 किसानों की मौत हो गई थी. पुलिस फायरिंग उस वक्त की गई जब वह अपनी 20 सूत्रीय मांगों के लिए उग्र प्रदर्शन कर रहे थे. किसानों की मांग में कर्ज माफी, गल्ला मंडियों पर उचित दर मिलना और सरकार द्वारा फसल न बिकने पर उचित समर्थन मूल्य दिया जाना शामिल था.

लिहाजा, सवाल है कि आखिर मंदसौर में किसानों का प्रदर्शन उग्र कैसे हुआ? क्या किसानों को किसी ने भड़काया? या फिर बीते कुछ महीनों या वर्षों से उनके सामने खड़ी चुनौतियों उन्हें उग्र प्रदर्शन के लिए मजबूर कर रही थीं? इस सवाल का जवाब मंदसौर में गल्ला मंडी के कारोबारी, किसान और वित्तीय मामलों के जानकारों की जुबानी समझा जा सकता है.

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किसान मांगे कैश
दासपुर मंडी व्यापारी संघ के कन्हैया लाल कुमावत कहते हैं कि इनकम टैक्स के नए नियमों के चलते उन्हें बैंक से पर्याप्त कैश नहीं मिल पा रही है. वहीं कुमावत का कहना है कि किसान कैश के बदले अपना गल्ला बेचने पर जोर देते हैं. लेकिन नोटबंदी के बाद पैदा हुई कैश की किल्लत में किसानों को अधिकांश हिस्सा चेक के जरिए दिए जा रहा है. इनकम टैक्स नियमों के चलते कारोबारियों को बैंक से महज 10 हजार रुपये दिए जा रहे हैं.

किसान को कैश पसंद है
इलाके के एक अन्य कारोबारी संदीप जैन कहते हैं कि वह नहीं चाहते कि किसानों को कोई दिक्कत हो. मार्केट में कैश नहीं होने के कारण ज्यादातर किसान अपनी फसल को बेचने के लिए बाजार नहीं ला रहे हैं. वहीं इनकम टैक्स विभाग की नोटबंदी के बाद शुरू हुई कड़ाई के बाद बैंक से 10 हजार रुपये से अधिक की निकासी नहीं हो पा रही है.

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ये है किसानों का डिजिटल इंडिया
पटिधार किसान संघ से जुड़े मुकेश पटिधार का कहना है कि ज्यादातक किसानों को बैंक से चेक भुनाने की प्रक्रिया का कुछ भी पता नहीं है. वहीं किसानों को चेक के जरिए भुगतान लेने के बाद चेक क्लियर होने के लिए 15-20 दिन का इंतजार करना होता है. लिहाजा, यदि किसान अपनी फसल चेक के बदले मंडी पर बेचता हैं तो पैसे मिलने के लिए उसे 15-20 दिन का इंतजार करना पड़ता है यदि उसके पास बैंक अकाउंट मौजूद है. वहीं, यदि किसान के पास अपना बैंक खाता नहीं है और वह बैंकिंग व्यवस्था से अभी जुड़ नहीं पाया है तो चुनौती गंभीर है.

ये रहा नोटबंदी इफेक्ट
गौरतलब है कि मध्यप्रदेश में कृषि क्षेत्र में बीते एक दशक के दौरान डबल डिजिट ग्रोथ से अच्छी आय मौजूद थी. पहले ऐसे किसानों को 8 नवंबर 2016 को नोटबंदी की चपत लगी और उन्हें अपनी कमाई बैंक में जमा कराने के लिए कतार में लगना पड़ा. उनपर नोटबंदी का असर खत्म भी नहीं हुआ था कि उन्हें एक बार फिर बाजार में अपनी फसल बेचने में दिक्कत हो रही है. एक बार किसानों के सामने कैश का संकट है. जहां नवंबर 2016 में किसान के पास रखा कैश बेमानी हो गया था वहीं आज उसे अपनी फसल के बदले कैश नहीं मिल रहा है.

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