
स्विट्जरलैंड को लगता है कि भारत के साथ जानकारियों के स्वत: साझीकरण का समझौता करने के लिए उसके आंकड़ा सुरक्षा और गोपनीयता कानून पर्याप्त हैं. उल्लेखनीय है कि इस समझौते के बाद भारत की पहुंच स्विस बैंकों में जमा कथित कालेधन की जानकारियों तक नियमित आधार पर हो जाएगी.
स्विट्जरलैंड सरकार ने अपने राजकीय गजट में इस संबंध में एक विस्तृत अधिसूचना में और तथ्य प्रकाशित किए हैं. सरकार ने कहा है कि वह भारत के साथ वित्तीय खातों की जानकारी का स्वत: साझाकरण करने के समझौता कर रही है.
उसने अन्य वित्तीय केंद्र लिंचेस्टाइन और बहमास का उदाहरण दिया है जो इसी तरह का समझौता करेंगे. सरकार ने यह जानकारी जर्मन भाषा में प्रकाशित की है और साथ ही भारतीय बाजार में अपनी संभावनाएं तलाशने के बारे में भी उसने इसमें बात की है जिसमें पुनर्बीमा और वित्तीय सेवा क्षेत्र शामिल है. उल्लेखलीय है कि जून मंक स्विस फेडरल काउंसिल ने भारत के साथ इस समझौते की पुष्टि की थी. यह काउंसिल यूरोपीय देशों की शीर्ष गवर्निंग इकाई है.
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कालेधन का मुद्दा भारत में सार्वजनिक चर्चा का एक बड़ा विषय बना हुआ है. लंबे समय से एक धारणा है कि बहुत से भारतीयों ने अपनी काली कमाई स्विट्जरलैंड के गुप्त बैंक-खातों में छुपा रखी है. भारत विदेशी सरकारों, स्विट्जरलैंड जैसे देशों के साथ अपने देश के नागरिकों के बैंकिंग सौदों के बारे में सूचनाओं के आदान प्रदान की व्यवस्था के लिए द्विपक्षीय और बहुपक्षीय मंचों पर जोरदार प्रयास करता आ रहा है. स्विट्जरलैंड ने जिस बहुपक्षीय एईओआई व्यवस्था का अनुमोदन किया है वह ऐसे प्रयासों का ही नतीजा है ताकि विदेश के रास्ते कालेधन को खपाने और मनी लांडरिंग पर कारगर अंकुश लगाया जा सके.
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सूचनाओं का आदान प्रदान इसके लिए एक सक्षम बहुपक्षीय प्राधिकरण हेतु समझौते (एमसीएए) के आधार पर किया जाएगा. सूचनाओं के आदान प्रदान केनियम पेरिस स्थित संगठन आर्थकि सहयोग एवं विकास संगठन (ओईसीडी) ने तैयार किए हैं.