
वित्त मंत्री अरुण जेटली शनिवार को मुंबई में हुई नेशनल कॉंन्फ्रेंस में शामिल हुए. वित्त मंत्री ने कहा कि दिवालिया एवं शोधन अक्षमता संहिता आईबीसी के तहत 'न्यू इंसोलवेंसी लॉ' कानून आने के बाद कर्जदार और लेनदार के रिश्तों में व्यापक बदलाव आया है. उन्होंने कहा, हम कई सालों से एक ऐसी व्यवस्था में रह रहे हैं जिसमें कर्जदार को संरक्षण मिला हुआ था और परिसंपत्तियों को बेकार रखकर जंग लगने दिया गया.
दरअसल पहले, कर्जदार कंपनियों से पैसा वापसी लेने के लिए कई सालों तक अदालत के चक्कर काटने पड़ते थे, अब नए कानून की वजह से पुरानी व्यवस्था का समापन हो गया है. अब से यदि कर्ज लेने वाले को व्यवसाय में बने रहना है तो उसे अपने कर्ज की किस्त-ब्याज को समय पर चुकाना होगा अन्यथा उसे दूसरे के लिये रास्ता छोड़ना पड़ेगा चूंकि कोई भी कारोबार करने का यही सही तरीका हो सकता है अब लेनदारों को आसानी होगी पहले की तरह केवल क़ानूनी कार्यवाही से आखिर में खाली हाथ नहीं रहना लौटना पड़ेगा.यह संदेश स्पष्ट रूप से सभी तक पहुंच जाना चाहिए.
विभिन्न काम धंधों और उद्योगों में फंसे पुराने कर्ज की समस्या का तेजी से और समयबद्ध समाधान करने पर जोर देते हुए जेटली ने उम्मीद जाहिर की कि जो समय सीमा तय की गईं हैं उनका पालन किया जाएगा तभी इसका प्रभावी क्रियान्वयन हो सकेगा.
जेटली ने कहा कि डेट्स रिकवरी ट्रिब्यूनल (डीआरटी) कुछ हद तक तेज होने के बावजूद अनुमानित रूप से प्रभावी नहीं था, जबकि सिक इंडस्ट्रियल कंपनी एक्ट (एसआईसीए) भी विफल रहा और वित्तीय आस्तियों के प्रतिभूतिकरण और पुनर्निर्माण और सुरक्षा ब्याज अधिनियम (एसएआरएफईएसआई) के प्रवर्तन ने सीमित उद्देश्य से सेवा की. चूंकि स्वाभाविक रूप से लेनदार होने के नाते से नुकसान हुआ.
एनपीए इस समय नियामकीय संस्थाओं के लिए बड़ी समस्या बन चुका है. मार्च 2017 की स्थिति के अनुसार विभिन्न बैंकों के कुल कर्ज में से 9.6 प्रतिशत राशि की वापसी नहीं हो रही है जबकि दबाव में आया कुल कर्ज 12 प्रतिशत तक पहुंच गया है. बता दें कि जून के महीने में आर बी आई ने 500 कर्जदार कंपनियों में से केवल 12 कंपनियों के ऊपर कुल मिलाकर 2,500 अरब रुपये के कर्जे का दावा किया हैं. इनमें से करीब करीब सभी मामले अब राष्ट्रीय कंपनी कानून न्यायाधिकरण के दायरे में हैं.