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छोटी और मध्यम इंडस्ट्रीज पर क्वालिटी काउंसिल ऑफ इंडिया (क्यूसीआई) की रिपोर्ट से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के ड्रीम प्रोजेक्ट मेक इन इंडिया को झटका लगना तय है.
72 फीसदी कंपनियां मानकों पर खरी नहीं उतरीं
इस रिपोर्ट के मुताबिक, 72 फीसदी सूक्ष्म, छोटे और मध्यम दर्जे की पुरानी फैक्ट्रियां मेक इन इंडिया के मानकों पर खरे नहीं उतरते. इनमें से सिर्फ 28 फीसदी उपक्रमों को ब्रॉन्ज, सिल्वर और गोल्ड मार्किंग्स
मिली हैं. चिंता की बात यह है कि कोई एक कंपनी भी इसमें डायमंड या प्लेटिनम कैटेगिरी में क्वालिफाई नहीं कर पाई.
ZED मॉडल लागू करने के लिए बनाई रिपोर्ट
रिपोर्ट बताती है कि ज्यादातर कंपनियों की हालत इतनी खराब है कि बेसिक इंफ्रास्ट्रक्चर न होने के चलते ये रेटिंग चार्ट के आधारभूत पैमानों पर भी खरी नहीं उतरतीं. क्यूसीआई ने यह रिपोर्ट
सूक्ष्म, छोटी और मध्यम श्रेणी की इंडस्ट्रीज में जीरो इफेक्ट और जीरो डिफेक्ट (जेडईडी) मॉडल लागू करने के लिए तैयार की थी.
PM चाहते हैं जीरो इफेक्ट, जीरो डिफेक्ट मॉडल
जेडईडी का आइडिया सबसे पहले प्रधानमंत्री मोदी ने दिया था. उन्होंने कहा था, 'हमारी मैन्युफैक्चरिंग में जीरो डिफेक्ट होना चाहिए ताकि हमारा सामान अंतरराष्ट्रीय बाजार से वापस न आए.
हमारी मैन्युफैक्चरिंग जीरो इफेक्ट भी होनी चाहिए, ताकि पर्यावरण पर इंडस्ट्रीज का कोई नकारात्मक असर न हो.'
मेक इन इंडिया की रीढ़ बहुत कमजोर
जेडईडी मॉडल लागू करने के लिए 43 वर्कशॉप बनाई गई थीं, जिन्होंने 30 शहरों के सूक्ष्म, छोटी और मध्यम श्रेणी के 1851 उपक्रमों को कवर किया था. मेक इन इंडिया की रीढ़ मानी जाने
वाली इन कंपनियों से मिले फीडबैक से पता चला कि इन्हें पुरानी तकनीक और इंस्पेक्टर राज जैसी समस्याओं से अब भी जूझना पड़ रहा है. इन कंपनियों की समस्या की सूची बहुत लंबी है
और सरकार की चिंता बढ़ाने वाली भी है.