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GST के दायरे में नहीं आएगा पेट्रोल-डीजल? इन वजहों से फैसला टालेगी सरकार

बढ़ती कीमतों के बीच एकबार फिर पेट्रोल और डीजल को जीएसटी के तहत लाने की मांग उठाई जा रही है. हालांकि पेट्रोल और डीजल के जीएसटी के दायरे में आने से मुसीबत कम होने की बजाय काफी बढ़ सकती है.

पेट्रोल जीएसटी के तहत लाना आसानी नहीं पेट्रोल जीएसटी के तहत लाना आसानी नहीं
विकास जोशी
  • नई दिल्ली,
  • 25 जनवरी 2018,
  • अपडेटेड 5:04 PM IST

पेट्रोल और डीजल की कीमतों में लगातार बढ़ोतरी हो रही है. अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कच्चे तेल की कीमतें 3 साल के टॉप पर पहुंच गई है. इसका सीधा असर देश में पेट्रोल और डीजल की कीमतों पर पड़ा है. बढ़ती कीमतों के बीच एकबार फिर पेट्रोल और डीजल को जीएसटी के तहत लाने की मांग उठाई जा रही है. हालांकि पेट्रोल और डीजल के जीएसटी के दायरे में आने से मुसीबत कम होने की बजाय काफी बढ़ सकती है.

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गुरुवार को मुंबई में एक लीटर पेट्रोल की कीमत 80.36 पर पहुंच गई है. डीजल की कीमतें भी 67 रुपये का आंकड़ा पार कर चुकी है. इस बीच पेट्रोल और डीजल की कीमतों से राहत दिलाने के लिए बजट में एक्साइज ड्यूटी घटाने की बात कही जा रही है. दूसरी तरफ, इसे जीएसटी के तहत लाने का आश्वासन भी दिया जा रहा है. लेक‍िन सरकारी सूत्रों का कहना है कि फिलहाल ये होना संभव नहीं लग रहा है.

बढ़ जाएंगी कीमतें

पेट्रोल और डीजल को जीएसटी के तहत लाने की पैरवी करने वालों का कहना है कि इससे पेट्रोल और डीजल की कीमतें कम हो जाएंगी, लेकिन होगा इसके उलट. दरअसल मौजूदा व्यवस्था में महाराष्ट्र जैसे कई राज्य जहां 40 फीसदी तक वैट वसूलते हैं, तो वहीं अंडमान और निकोबार जैसे राज्य 6 फीसदी तक टैक्स पेट्रोल और डीजल पर लगाते हैं.

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कई राज्यों में बढ़ जाएंगे दाम

जीएसटी परिषद के वरिष्ठ  सूत्रों का कहना है कि अगर पेट्रोल-डीजल को जीएसटी के दायरे में लाया जाता है, तो इससे देशभर में अलग-अलग सेल्स टैक्स की बजाय एक ही टैक्स हो जाएगा. इससे भले ही महाराष्ट्र जैसे कुछ राज्यों में थोड़ी राहत मिलेगी, लेक‍िन कम वैट वसूलने वाले राज्यों में पेट्रोल और डीजल की कीमतों में बहुत बड़े स्तर पर बढ़ोतरी हो जाएगी. ऐसे में कोई राजनीतिक पार्टी नहीं चाहेगी कि वह ऐसा कोई कदम उठाए.  

राज्यों में नहीं बनेगी सहमति

अंतरराष्ट्रीय स्तर पर जब भी कच्चे तेल की कीमतों में इजाफा होता है, तो इससे राज्यों का राजस्व भी बढ़ता है. राज्यों के राजस्व की एक बड़ी रकम पेट्रोल और डीजल पर लगने वाले वैट से आती है. इसके साथ ही कम वैट लगाने वाले राज्य की सरकारें अपने राजनीतिक लाभ को देखते हुए पेट्रोल और डीजल को जीएसटी के तहत लाने पर सहम‍त नहीं होंगे.क्योंकि उनके सामने जीएसटी की वजह से कीमतें बढ़ने का खतरा होगा.

केंद्र से भी राहत की उम्मीद नहीं

पेट्रोल और डीजल की बढ़ती कीमतों से राहत दिलाने के लिए तेल मंत्रालय ने बजट में एक्साइज ड्यूटी घटाने  का सुझाव दिया है. हालांकि सरकार की तरफ से ऐसी कोई घोषणा होने की संभावना भी ना के बराबर है. बढ़ती कीमतों और लोगों के गुस्से को देखते हुए केंद्र सरकार ने अक्टूबर में पेट्रोल और डीजल पर 2 रुपये की एक्साइज ड्यूटी घटा दी थी.

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राजकोषीय घाटा बढ़ने का खतरा

हालांकि अब ऐसा कदम उठाने का मतलब होगा कि सरकार अपना राजकोषीय घाटा बढ़ाने का खतरा पैदा करेगी. एक्साइज ड्यूटी घटाने का मतलब है कि राजकोषीय घाटे को 3.2 फीसदी रखने का लक्ष्य सरकार के लिए हासिल करना मुश्‍किल हो जाएगा. ऐसे में केंद्र की तरफ से फौरी राहत मिलने की संभावना लगभग ना के बराबर है.

तेल कंपनियों से भी राहत की उम्मीद कम

दूसरी तरफ, तेल कंपनियों से भी इस मोर्चे पर राहत मिलने की उम्मीद कम ही है. अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कच्चे तेल की कीमतें लगातार बढ़ रही हैं. इसकी वजह से कंपनियों का खर्च भी लगातार बढ़ता जा रहा है. ऐसे में इन कंपनियों की तरफ से भी पेट्रोल और डीजल की कीमतों को लेकर राहत मिलना असंभव सा है. ऐसे में आम आदमी कच्चे तेल की कीमतों में गिरावट आने का इंतजार करने के अलावा कुछ नहीं कर सकता.

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