
नेशनल कंपनी लॉ अपीलेट ट्राइब्यूनल (NCLAT) ने साइरस मिस्त्री को फिर से टाटा सन्स के चेयरमैन पद पर बहाल कर दिया है. NCLAT ने मिस्त्री को तीन लिस्टेड कंपनियों टीसीएस, टाटा मोटर्स और टाटा स्टील के डायरेक्टर पद पर भी बहाल करने को कहा है. आइए जानते हैं कि आखिर क्या वजह रही कि NCLAT ने साइरस मिस्त्री के पक्ष को मजबूत माना और टाटा समूह के खिलाफ उसने निर्णय दिया.
साइरस मिस्त्री को चेयरमैन बनाने के आदेश के पालन को 18 जनवरी तक रोका गया है, क्योंकि तब तक टाटा सन्स को सुप्रीम कोर्ट की शरण लेने का अधिकार है. लेकिन बाकी तीन कंपनियों के डायरेक्टर बनाने के आदेश को तत्काल लागू करना होगा. गौरतलब है कि NCLAT का मुख्यालय नई दिल्ली में है और सुप्रीम कोर्ट के रिटायर्ड जज एस.जे. मुखोपाध्याय इसके चेयरमैन हैं.
कंपनी को फिर से पब्लिक बनाने का आदेश
एनसीएलएटी ने टाटा सन्स को 'पब्लिक' से 'प्राइवेट' बनाने को कंपनी अधिनियम 14 के खिलाफ बताया और यह टाटा सन्स के माइनॉरिटी सदस्यों के लिए 'पक्षपातपूर्ण' और 'दमनकारी' माना गया. एनसीएलएटी ने रजिस्ट्रार ऑफ कंपनीज को यह भी आदेश दिया है कि वह अपने रिकॉर्ड को सुधार कर उसमें टाटा सन्स को फिर से 'पब्लिक कंपनी' बनाए.
कोर्ट ने यह भी कहा कि पिछले वर्षों में कंपनी ने कई 'पक्षपातपूर्ण' और 'दमनकारी' निर्णय लिए हैं. जानकारों का यह भी कहा कि मिस्त्री काे हटाने के निर्णय के समय उनके खराब प्रदर्शन के बारे में कुछ नहीं कहा गया था. यह बात बाद में कही गई. साइरस मिस्त्री दिसंबर 2012 में टाटा समूह के चेयरमैन बने थे.
साइरस मिस्त्री को हटाने की कोई मजबूत वजह नहीं थी
टाटा सन्स बोर्ड के आदेश में पहले साइरस के खराब प्रदर्शन के बारे में कुछ नहीं कहा गया था और बाद में इस बारे में कंपनी ने बयान दिया. बुधवार के अपने आदेश में NCLAT ने कहा, 'निकट भविष्य में सभी शेयरधारकों के हितों की बेहतर रक्षा के लिए टाटा सन्स के एग्जिक्यूटिव चेयरमैन और डायरेक्टर की नियुक्ति में टाटा समूह के मेजॉरिटी शेयरधारकों को माइनॉरिटी ग्रुप लीडर (SP ग्रुप) और किसी भी ऐसे व्यक्ति का परामर्श लेना होगा, जिन पर दोनों समूह भरोसा करते हों.'
एनसीएलएटी ने कहा कि कंपनी को बिना समुचित प्रक्रिया के पब्लिक से प्राइवेट बना देने का मतलब यह है कि 'टाटा ट्रस्ट' के नॉमिनेटेड सदस्यों ने बोर्ड के सापूरजी पालोनजी ग्रुप सहित अन्य सदस्यों के साथ 'पक्षपातपूर्ण' तरीके से व्यवहार किया. इस तरह ट्राइब्यूनल ने माना कि साइरस को हटाने का टाटा समूह का निर्णय और नए चेयरमैन की नियुक्ति का निर्णय 'अवैध' था.
अक्टूबर 2016 में टाटा सन्स के बोर्ड से साइरस मिस्त्री को बाहर कराने में रतन टाटा की मुख्य भूमिका मानी जाती है. मिस्त्री को टाटा समूह की सभी कंपनियों के निदेशक पद से भी बाहर कर दिया गया था. मिस्त्री परिवार के शापूरजी पालोनजी (SP) समूह की टाटा सन्स में 18 फीसदी हिस्सेदारी थी, यानी वे मॉइनॉरिटी हिस्सेदार थे. इस वजह से यह परिवार कुछ खास नहीं कर पाया और मन मसोसकर रह गया.
दूसरी तरफ, टाटा ट्रस्ट जैसा दिग्गज था जिसकी टाटा सन्स में 66 फीसदी हिस्सेदारी थी. टाटा सन्स पूरे टाटा समूह की होल्डिंग कंपनी है.
क्या था विवाद
रतन टाटा कैम्प और कंपनी बोर्ड ने गलत आचरण का आरोप लगाकर साइरस मिस्त्री को बाहर कर दिया था. टाटा सन्स के बोर्ड ने 24 अक्टूबर, 2016 को साइरस मिस्त्री को चेयरमैन पद से हटा दिया था. इसके साथ ही उन्होंने साइरस को ग्रुप की अन्य कंपनियों से भी बाहर निकलने के लिए कहा था. इसके बाद साइरस ने ग्रुप की 6 कंपनियों के बोर्ड से अपना इस्तीफा दिया.
आर्टिकल 75 के इस्तेमाल का डर
मिस्त्री का टाटा ट्रस्ट जैसे मेजॉरिटी शेयरधारकों पर भरोसा नहीं है, इससे उन्होंने आशंका जाहिर की है कि कंपनी आगे आर्टिकल 75 का इस्तेमाल करते हुए माइनॉरिटी शेयरहोल्डर्स के प्रति और 'पक्षपातपूर्ण' और 'दमनकारी' कदम उठा सकती है.
हालांकि टाटा के वकील अभिषेक मनु सिंघवी ने इस तरह की आशंका को निराधार बताया. उन्होंने कहा कि अभी तक आर्टिकल 75 का इस्तेमाल कभी नहीं किया गया. टाटा सन्स के करीब एक शताब्दी पुराने आर्टिकल 75 में कंपनी को यह अधिकार दिया गया है कि वह ट्रांसफर की सामान्य प्रक्रिया के पालन किए बिना किसी भी समय किसी शेयरधारक के 'आर्डिनरी शेयर' को कंपनी में ट्रांसफर कर सके.
मिस्त्री के फर्म के वकीलों कहा था कि इस आर्टिकल का इस्तेमाल आगे भी उन्हें कंपनी से बाहर करने या घुटने टेकने को मजबूर करने के लिए किया जा सकता है. NCLAT ने कहा कि इस तरह के अधिकारों का इस्तेमाल सिर्फ असाधारण परिस्थितियों में ही कंपनी के हित में किया जा सकता है और इसके इस्तेमाल से पहले लिखित वजह भी बतानी होगी.