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इस्लामिक बैंकिग के लिए देश में कोई समयसीमा तय नहीं: RBI

भारतीय रिजर्व बैंक के मुताबिक देश में शरिया (इस्लामिक बैंकिग) या ब्याज मुक्त बैंकिंग शुरू करने के लिए कोई समयसीमा तय नहीं की गई है. इस्लामिक या शरिया बैंकिंग ऐसी वित्तीय व्यवस्था है जो ब्याज नहीं लेने के सिद्धान्तों पर आधारित है. इस्लाम में ब्याज पर पाबंदी है.

ब्याज मुक्त बैंकिंग के लिए करें इंतजार ब्याज मुक्त बैंकिंग के लिए करें इंतजार
राहुल मिश्र
  • नई दिल्ली,
  • 10 अप्रैल 2017,
  • अपडेटेड 9:27 AM IST

भारतीय रिजर्व बैंक के मुताबिक देश में शरिया (इस्लामिक बैंकिग) या ब्याज मुक्त बैंकिंग शुरू करने के लिए कोई समयसीमा तय नहीं की गई है. इस्लामिक या शरिया बैंकिंग ऐसी वित्तीय व्यवस्था है जो ब्याज नहीं लेने के सिद्धान्तों पर आधारित है. इस्लाम में ब्याज पर पाबंदी है.

रिजर्व बैंक ने इससे पहले परंपरागत बैंकों में शरिया खिड़की खोलने के प्रस्ताव का विरोध किया था. सूचना के अधिकार (आरटीआई) आवेदन के जवाब में रिजर्व बैंक ने कहा कि उसने अभी बैंकों में इस्लामिक खिड़की खोलने के लिए कोई कदम नहीं उठाया है. इस कदम से भारत में शरिया अनुपालन वाली ब्याज मुक्त बैंकिंग की धीरे-धीरे शुरआत होगी.

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केंद्रीय बैंक ने आरटीआई के तहत मांगी गई जानकारी के जवाब में कहा कि रिजर्व बैंक ने ब्याज मुक्त बैंकिंग शुरू करने के लिए कोई समयसीमा तय नहीं की है. हालांकि केन्द्र सरकार के निर्देश पर रिजर्व बैंक में एक अंतर विभागीय समूह (आईडीजी) स्थापित किया गया है, जिसने देश में ब्याज मुक्त बैंकिंग शुरू करने के कानूनी, तकनीकी और नियामकीय पहलुओं की समीक्षा करने के बाद अपनी रिपोर्ट सरकार को सौंपी है.

रिजर्व बैंक ने पिछले साल फरवरी में आईडीजी की प्रति वित्त मंत्रालय को सौंपी है. केन्द्रीय बैंक ने वित्त मंत्रालय को पत्र में कहा है कि हमारा मानना है कि इस्लामिक वित्त और विभिन्न नियामकीय और निगरानी से संबंधित चुनौतियों, भारतीय बैंकों के पास इस क्षेत्र का अनुभव नहीं होने की वजह से देश में इस्लामिक बैंकिंग को धीरे-धीरे शुरू किया जाना चाहिए.

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इस्लामिक बैंक से कर्ज की खास बात
इस्लामिक बैंक के कर्ज की खास बात यह है कि यदि आप समय से अपनी पूरी ईएमआई का भुगतान कर देतें हैं तो बैंक आपको अपने मुनाफे से कुछ राशि निकालकर बतौर ईनाम दे देगा. इस कर्ज में चूंकि किसी तरह का ब्याज नहीं रहता तो आप की ईएमआई शुरू से अंत तक एक रहती है और इस कर्ज अदायगी की समय सीमा में कोई हेरफेर नहीं होता.

अब दोनों बैंकों के कर्ज देने की प्रक्रिया को जानकर आपको समझ आ गया होगा कि आखिर कैसे इस्लामिक बैंक शरियत के नियम के मुताबिक बिना ब्याज के काम कर लेते हैं.

गौरतलब है कि भारत में मुसलमानों की बड़ी संख्या और कम साक्षरता के चलते कई गरीब मुसलमान परिवार इस्लामिक कानून के कारण बैंकिंग व्यवस्था से नहीं जुड़ पाते. खाड़ी देशों समेत अमेरिका और यूरोप के कुछ देशों में भी मुसलमानों को बैंकिग से जोड़ने के लिए ऐसे बैंकों को खोला गया है. भारत में केन्द्रीय रिजर्व बैंक पहले ही ऐसे बैंकों की स्थापना के लिए हरी झंड़ी दे चुका है. अब वह इसे हकीकत में लाने की कोशिश में लगा है.

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